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चीन की आर्मी में शामिल होंगे गोरखा सैनिक! क्यों है जिनपिंग इसके लिए उतावले?

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं के बीच गोरखा रेजिमेंटों को विभाजित करने का निर्णय लिया गया। ऐसे में 10 में से छह रेजिमेंट ने भारतीय सेना में रहना पसंद किया जबकि चार रेजिमेंट अंग्रेजों के साथ ब्रिटेन चली गई।

Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published : May 05, 2023 23:50 IST, Updated : May 05, 2023 23:50 IST
चीन की आर्मी में शामिल होंगे गोरखा सैनिक! क्यों है जिनपिंग इसके लिए उतावले?
Image Source : PTI FILE चीन की आर्मी में शामिल होंगे गोरखा सैनिक! क्यों है जिनपिंग इसके लिए उतावले?

China-Nepal: गोरखा रेजीमेंट के अदमय साहस को दुनिया जानती है। भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की आन बान शान का लोहा सभी ने माना है। चीन भी भारत की सेना में गोरखाा सैनिकों की शौर्य को मानता है। यही कारण है कि चीन अब नेपाल में शासन कर रही कम्यूनिस्ट सरकर से गोरखाओं को चीन की सेना ‘पीएलए‘ में शामिल करने की मांग कर सकता हैै। गोरखा सैनिकों को चीन की सेना में शामिल करने को लेकर चीन काफी रुचि दिखा रहा है।

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस साल यानी 2023 में एक भी नेपाली गोरखा भारतीय सेना में शामिल नहीं हो पाएगा। क्योंकि नेपाल सरकार ने भारतीय सेना में शामिल होने के लिए गोरखाओं को इजाजत नहीं दी है। जबकि हर साल करीब 1300 गोरखाओं की भर्ती भारतीय सेना में होती रही है। दरअसल नेपाल की आपत्ति का कारण परोक्ष रूप से ‘अग्निपथ‘ योजना है।  नेपाल मानता है कि यह योजना 1947 में हुए त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन है। सवाल यह है कि चीन गोरखा सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती करने के लिए इतना उतावला क्यों है। 

गोरखा सैनिकों के साहस का ये है इतिहास

गोरखा जन्मजात लड़ाका होते हैं। पहाड़ी इलाकों में रहने की वजह से उनकी शारीरिक बनावट बड़ी गठीली होती है। वे मानसिक रूप से इतने मजबूत होते हैं कि अपने से कई गुना ताकतवर दुश्मन को धूल चटा सकते हैं। 1814 में जब अग्रेजों की भिड़ंत गोरखाओं से हुई। इस युद्ध के दौरान अंग्रेज इतना तो समझ गए कि गोरखाओं से युद्ध में आसानी से जीत नहीं मिल सकती है। इसके बाद ब्रिटिश इंडिया की आर्मी में गोरखा की भर्ती शुरू हुई।

भारत के अलावा किस देश में है गोरखा रेजिमेंट

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं के बीच गोरखा रेजिमेंटों को विभाजित करने का निर्णय लिया गया। ऐसे में 10 में से छह रेजिमेंट ने भारतीय सेना में रहना पसंद किया जबकि चार रेजिमेंट अंग्रेजों के साथ ब्रिटेन चली गई। इस समझौते में तय हुआ कि भारतीय और ब्रिटिश सेनाओं में गोरखाओं को बिना भेदभाव के समान अवसर दिए जाएंगे। गोरखाओं के हितों का ध्यान रखा जाएगा। भारतीय और ब्रिटिश सेनाओं में गोरखा सैनिकों की नियुक्ति नेपाली नागरिक के तौर पर ही होगी। इस तरह भारत के अलावा ब्रिटेन में गोरखा रेजिमेंट है।

गोरखाओं को चीन की पीएलए में शामिल क्यों करना चाहता है चीन?

चीन गोरखाओं को पीएलए में शामिल करने के लिए ललचा रहा है। अगस्त 2020 में बीजिंग ने नेपाल में एक अध्ययन शुरू किया था कि हिमालयी राष्ट्र के युवा भारतीय सेना में क्यों शामिल हुए। तब यह बताया गया कि भारतीय सेना में शामिल होने वाले युवा लड़कों की सदियों पुरानी परंपरा को समझने के लिए चीन ने नेपाल में अध्ययन के लिए 12.7 लाख रुपये का वित्त पोषण किया था। विशेषज्ञों का कहना है कि यह चीन द्वारा अपनी तरह का पहला अध्ययन था।

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