Monday, December 02, 2024
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पूर्व पीएम हसीना के आवास पर ग्रेनेड हमले का मामला, खालिद जिया के बेटे तारिक और पूर्व मंत्री बाबर समेत सभी आरोपी बरी

पूर्व पीएम हसीना के आवास पर 2004 में किए गए ग्रेनेड हमले के मामले में हाईकोर्ट ने खालिद जिया के बेटे तारिक और पूर्व मंत्री बाबर समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। हसीना के घर के पास हुए हमले में कुल 24 लोगों की मौत हुई थी और 300 से ज्यादा घायल हुए थे।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Dec 01, 2024 16:37 IST, Updated : Dec 01, 2024 16:37 IST
खालिदा जिया, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री। - India TV Hindi
Image Source : REUTERS खालिदा जिया, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री।

ढाकाः बांग्लादेश में ढाका उच्च न्यायालय ने रविवार को पूर्व प्रधानमंत्री खालिद जिया के परिवार को बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के घर 2004 में ग्रेनेड बम से हमला करने के मामले में उनके बेटे समेत अन्य सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। बता दें कि हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए 2004 में अवामी लीग की नेता शेख हसीना की रैली में हुए ग्रेनेड हमले के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान और पूर्व राज्य मंत्री लुत्फोज्जमां बाबर सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

अटॉर्नी जनरल कार्यालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया और तारिक रहमान सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया।’’ रहमान (57) बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। ढाका के बंगबंधु एवेन्यू में अवामी लीग की रैली पर ग्रेनेड हमले के बाद दो मामले - एक हत्या का और दूसरा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत दर्ज किए गए थे। इस हमले में 24 लोग मारे गए और लगभग 300 लोग घायल हुए।

24 लोगों की हत्या मामले में 49 लोग थे आरोपी

न्यायमूर्ति ए.के.एम.असदुज्जमां और न्यायमूर्ति सैयद इनायत हुसैन की पीठ ने मामले के सभी 49 आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि मामलों में निचली अदालत का फैसला ‘‘अवैध’’ था। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी प्रतिबंधित हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी (हूजी) आतंकवादी संगठन के शीर्ष नेता मुफ्ती अब्दुल हन्नान के कबूलनामे के आधार पर यह फैसला सुनाया था। हन्नान को एक अन्य मामले के सिलसिले में फांसी की सजा दी गई है। उच्च न्यायालय ने कहा कि इकबालिया बयान कोई ठोस साक्ष्य नहीं है क्योंकि इसे बलपूर्वक लिया गया था और संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा इसकी उचित जांच नहीं की गई थी। (भाषा)

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