China-Pakistan-Afghanistan: चीन गरीब एशियाई और अफ्रीकी देशों पर गलत नजर रखता है। गरीब देशों को पहले अपनी योजनाओं ओर कर्ज के चंगुल में फंसाता है। इसके बाद उसे बर्बाद कर देता है। श्रीलंका, पाकिस्तान और कुछ अफ्रीकी देश इसके बड़े उदाहरण है। वहीं चीन अब पाकिस्तान को बर्बाद करने के बाद अफगानिस्तान पर टेढ़ी नजर रख रहा है। उसे पता है कि गरीब अफगानिस्तान को लालच देकर चंगुल में फंसाया जा सकता है। यही कारण है कि तालिबान, चीन और पाकिस्तान के साथ अपनपे देश अफगानिस्तान में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विस्तार करने के लिए राजी हो गया है। इससे अफगानिस्तान में अरबों रुपए का निवेश होने के आसार हैं।
60 अरब डॉलर के चीन पाकिस्तान गलियारे को अफगानिस्तान तक ले जाने पर रजामंदी
चीन के विदेश मंत्री छिन कांग और उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने इस्लामाबाद में मुलाकात की और 60 अरब डॉलर के चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को तालिबान के अफगानिस्तान तक ले जाने सहित अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने पर मिलकर काम करने के लिए हामी भरी। इससे यह लग रहा है कि चीन पाकिस्तान को बर्बाद करने के बाद अब अफगानिस्तान को भी कहीं बर्बाद न कर दे।
फिलहाल पाकिस्तान के सिंध, बलूचिस्तान प्रांत में चीन अपने कई प्रोजेक्ट चला रहा है। डेवलपमेंट के नाम पर पाकिस्तान को पहले ही चीन ने काफी कर्जा दे रखा है। ऐसे में चीन के कर्ज के बोझ तले पाकिस्तान दबा हुआ है। चीन की इस चाल को दुनिया जानती है और परेशान भी है।
तालिबान सरकार को जब दिखा पैसा, तो भर दी हामी
'ब्लूममर्ग' के अनुसार चीन और पाकिस्तान के अधिकारियों ने करीब एक दशक पहले शुरू हुई जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना को अफगानिस्तान तक 'एक्सटेंड' करने पर चर्चा की थी। तालिबान सरकार जो आर्थिक और नकदी के संकट से गुजर रही है, उसने इस परियोजना में भाग लेने और जरूरी बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने और निवेश पाने की संभावना जताई है। तालिबान के शीर्ष राजनयिक आमिर खान मुक्ताकीने अपने चीनी और पाकिस्तानी समकक्षों से मिलने के लिए इस्लामाबाद की यात्रा की और एक समझौते पर पहुंचे।
तालिबान सरकार ने चीन के साथ किया यह करार
तालिबान ने भी चीन से उनके देश अफगानिस्तान में समृद्ध संसाधनों में निवेश को प्रोत्साहित करने की उम्मीद जताई है। इसका अनुमान 1 ट्रिलियन डॉलर है। सरकार ने उत्तरी अमु दरिया बेसिन से तेल निकालने के लिए चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन की सहायक कंपनी के साथ जनवरी में अपना पहला एग्रीमेंट किया। वैसे ईरान, रूस और चीन ऐसे चंद देश हैं जो तालिबान से अच्छे संबंध बनाए रखते हैं लेकिन सरकार को औपचारिक मान्यता देने की बात आती है, तो पीछे हट जाते हैं।
यूएन ने बताया था अफगानिस्ताना को 4.6 अरब डॉलर की जरूरत
पिछले दिनों यूनाइटेड नेशन ने कहा था कि तालिबान को इस साल 4.6 अरब डॉलर की आवश्यकता है, जिससे कि देश की चार करोड़ आबादी में से दो तिहाई से अधिक की मदद की जा सके, जो कि बहुत ज्यादा गरीबी में जी रही है। अफगानिस्तान को आर्थिक मदद मिलने वाली थी, लेकिन महिलाओं पर लगाए गए हालिया प्रतिबंधों के चलते यह मदद रोक दी गई।