China Launched Ballistic Missiles & US on Target: दक्षिण चीन सागर में ड्रैगन की चाल पूरी तरह कामयाब हो गई तो अमेरिका की खैर नहीं होगी। ड्रैगन अब दक्षिण चीन सागर में बैठे-बैठे अमेरिका के कई बड़े शहरों को मिनटों में उड़ाने की क्षमता हासिल कर चुका है। अंतरराष्ट्रीय खुफिया रिपोर्टों के अनुसार चीन इस दायरे को अब लगातार बढ़ रहा है। दरअसल ड्रैगन पूरे दक्षिण चीन सागर को परमाणु बमों से लैस मिसाइलें लांच करने का अड्डा बना रहा है। इस बीच अमेरिकी नौसेना ने पेंटागन को चेतावनी दी है कि चीन अब अमेरिका के तटीय क्षेत्रों को निशाना बना सकने की क्षमता विकसित कर चुका है। इससे ह्वाइट हाउस में भी खलबली मच गई है।
दक्षिण चीन सागर से 10 किमी तक मार कर सकती है चीन की मिसाइल
दक्षिण चीन सागर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपना पूरी तरह दबदबा कायम करना चाहते हैं। वैसे भी चीन अक्सर पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता रहा है। मगर अमेरिका से लेकर, आस्ट्रेलिया, फिलीपींस, जापान और ताइवान जैसे आधा दर्जन से अधिक देशों को इस पर कड़ी आपत्ति है। इसके बावजूद अब जिनिपंग दक्षिण चीन सागर को परमाणु युक्त मिसाइल लांच करने का अड्डा बना रहे हैं। चीन के पास जेएल-3 परमाणु बम से लैस सबमरीन मिसाइल है, जिसकी मारक क्षमता 10 हजार किलोमीटर से भी अधिक है। इससे अमेरिका समुद्री तटीय क्षेत्रों के अलावा उसके कई शहर भी निशाने पर आ सकते हैं। इसके अलावा ड्रैगन की कई परमाणु युक्त पनडुब्बियां दक्षिण चीन सागर में गश्त पर रहती हैं। यह अमेरिका समेत अन्य देशों के लिए भी खतरे की घंटी बचा रही हैं।
साउथ ईस्ट एशिया पर दादागीरी दिखाना चाहता है चीन
विशेषज्ञों के अनुसार अब चीन की मंशा साउथ-ईस्ट-एशियाई देशों पर दादागीरी दिखाना है। दरअसल शी जिनपिंग साउथ-ईस्ट-एशियाई देशों के लीडर बनना चाहते हैं। अगर ऐसा करने में वह सफल रहे तो इससे वह अमेरिका को भी दबाव में ले सकते हैं। इसके बाद चीन खुद को अमेरिका से भी बड़ा सुपर पॉवर बनाना चाहता है। शी जिनपिंग अपने इसी इरादे से आगे बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में कई जगहों पर कृत्रिम द्वीप बना लिया है। साथ ही कई प्राकृतिक द्वीपों को भी कृत्रिम द्वीप का रूप दे दिया है। ताकि वह दुनिया को कृत्रिम होने की बात बताकर पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा कर सकें। दक्षिण चीन सागर पर चीन का बढ़ता दबदबा सिर्फ ताइवान, आस्ट्रेलिया, जापान, फिलीपींस और इंडोनेशिया के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि यह भारत और अमेरिका के लिए भी बड़ी चुनौती है। चीन के इस कदम से पूरे साउथ-ईस्ट-एशिया में हलचल मच सकती है।
दक्षिण चीन सागर में उतर चुकी है चीन की जेएल-3 परमाणु मिसाइल
अभी तक ड्रैगन की परमाणु युक्त कुछ पनडुब्बियां ही समुद्री इलाके में दस्तक दे रही थीं। मगर अब चीन की सबसे खतरनाक परमाणु मिसाइल जेएल-3 भी दक्षिण चीन सागर में उतर चुकी है। सूत्रों का दावा यह है कि चीन इसका समुद्री परीक्षण भी गुप्त तरीके से कर चुका है। हाल ही में एक अमेरिका सबमरीन कमांडर ने भी इस बात का दावा किया था कि चीन की जेएल-3 परमाणु मिसाइल दक्षिण चीन सागर में तैनात की जा चुकी है। इससे अमेरिका खलबली मच गई है। क्योंकि इसकी मारक क्षमता को अमेरिका बखूबी जानता है। अब दक्षिण सागर में बैठे-बैठे ही चीन अमेरिका के समुद्री तटीय इलाकों के अलावा कई अन्य शहरों को निशाने ले लिया है। इससे ह्वाइट हाउस में भी हलचल है।
पेंटागन को लगातार मिल रही चुनौती
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय को चीन अपनी हरकतों से लगातार चुनौती देता आ रहा है। पेंटागन भी पूर्व में यह दावा कर चुका था कि चीन के पास अमेरिका के समुद्र तटीय इलाकों को निशाना बनाने की क्षमता जल्द आने वाली है। अब ड्रैगन वह क्षमता हासिल कर चुका है। दावा है कि चीन परमाणु युक्त बैलिस्टिक मिसाइलों के जरिये बोहाई से अमेरिका के अलास्का प्रांत तक को निशाना बना सकता है। बताया जा रहा है कि चीन की टाइप 094 पनडुब्बियां अमेरिकी हवाई द्वीपों के पास भी गश्त पर हैं। इससे अमेरिका का बड़ा सैन्य अड्डा भी इसकी जद में आ चुका है। चीन जब चाहे तब अमेरिका के इस सैन्य अड्डे को समुद्री रास्ते से ही निशाना बना सकता है। इसके अलावा प्रशांत महासागर क्षेत्र में भी चीन कहीं भी और कैसे भी हमला कर सकता है।
चीन कर सकता है अमेरिका पर हमला
यूएस के ही एक कमांडर ने माह भर पहले दावा किया था कि ड्रैगन समुद्री परमाणु मिसाइल से अमेरिका को निशाना बना सकता है। अब चीन दक्षिण चीन सागर से जेएल-3 परमाणु मिसाइल लांच करने की क्षमता हासिल कर चुका है। चीन ने भी जेएल-3 का परीक्षण करने की पुष्टि कर दी है। मगर वह इसे अपनी क्षमता विकसित करने की दिशा में उठाया जा रहा कदम बता रहा है। चीन की इस ताकत से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के सामने एक नई चुनौती आ गई है। ताइवान पर तनाव के बीच हाल ही में इंडोनेशिया के बाली में अमेरिका और चीन के राष्ट्रपतियों की आपस में मुलाकात हुई थी। इसके बाद माना जा रहा था कि शायद दोनों देशों के बीच तनाव कम होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुई। चीन अपनी चाल पुराने अंदाज में ही चल रहा है। वह दक्षिण चीन सागर पर अपना आधिपत्य लगभग जमा चुका है।