Highlights
- श्रीलंका के सेंट्रल बैंक को डॉलर के दाम ठीक करने होंगे
- पर्यटन के क्षेत्र में श्रीलंका को इंडोनेशिया-थाईलैंड दे रहे टक्कर
- सरकार के फैसले के चलते कृषि उत्पादन में आई गिरावट
Crisis in Sri Lanka: श्रीलंका 1948 में आजाद होने के बाद से अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। यही आर्थिक संकट अब राजनीतिक संकट का रूप ले चुका है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए हैं। जिसके बाद प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया है। आर्थिक संकट को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ के साथ बातचीत होनी थी, लेकिन राजनीतिक संकट की एंट्री के बाद वो बातचीत भी रुक गई। श्रीलंका को विदेशी मुद्रा कोष के गंभीर संकट से निकलने के लिए कम से कम चार अरब डॉलर की जरूरत होगी। इसी के लिए आईएमएफ के साथ बातचीत हो रही थी।
आईएमएफ अब हालात पर नजर रख रहा है। उसकी एक टीम 20 जून को राजधानी कोलंबो आई थी। तब उसने कहा था कि इस देश को आर्थिक मदद के लिए अपने पुराने कर्जदारों से ब्याज और वापसी की शर्तों को लेकर बातचीत करनी होगी। श्रीलंका की हालत मेन 5 पॉइंट से जुड़ गई है। जिसे चक्रव्यूह कहा जाए, तो कुछ गलत नहीं होगा। हालात खराब इसलिए हैं, क्योंकि जरूरी सामान निर्यात करने के लिए डॉलर (विदेशी मुद्रा भंडार) नहीं बचे, कर्जदारों को समय पर ब्याज नहीं मिल पा रहा, पुराने कर्ज वापस नहीं हो रहे, नया कर्ज नहीं मिल रहा, पेट्रोल-डीजल, दवा और खाने का दूसरा सामान डॉलर की तंगी के चलते आयात नहीं हो पा रहा है। चलिए अब उन चीजें की बात कर लेते हैं, जिनपर काम करने से श्रीलंका इस संकट से बाहर निकल सकता है।
1. आईएमएफ से मदद
श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकलने के लिए सबसे पहले आईएमएफ की मदद लेनी होगी। मतलब ये ऑप्शन सबसे ऊपर है। आईएमएफ के मदद देने से श्रीलंका को डॉलर मिल सकेंगे। इसके साथ ही विदेश में रहने वाले श्रीलंका मूल के लोगों को भी अपने देश में पैसा भेजना चाहिए। इससे काफी हद तक संकट से निकलने में मदद मिलेगी।
2. विदेश से आने वाला पैसा
हमने ऊपर वाले ऑप्शन में बात की, विदेश से पैसा भेजने की। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस मामले में भी एक पेंच फंसा है। दरअसल श्रीलंका में विदेश से आने वाले पैसे में हाल के वर्षों में काफी गिरावट आई है। बीते दस साल में सबसे कम 5.49 अरब डॉलर ही देश में आए हैं। दिक्कत सामने आई कि श्रीलंका मूल के लोग कम पैसा भेज रहे हैं या बैंक के जरिए नहीं भेज रहे। वजह ये है कि केंद्रीय बैंक ने डॉलर के दाम तय किए हुए हैं। एक डॉलर के बदले 200 से 203 श्रीलंकाई रुपये मिलते हैं। यही दाम हवाला बाजार में 250 श्रीलंकाई रुपये हुआ करता था। अगर इस स्थिति में सरकार बदलाव करे, तो एक बार फिर अच्छा खासा पैसा विदेश से आने लगेगा।
3. पर्यटन
श्रीलंका को पहले पर्यटन के तौर पर काफी पसंद किया जाता था। लेकिन इस समय वहां जैसे हालात हैं, उसमें कोई यहां आना पसंद नहीं करेगा। इसके बजाय लोग इंडोनेशिया, थाईलैंड या फिर मालदीव जाना अधिक पसंद करेंगे। साथ ही कोई देश भी अपने लोगों को इस समय श्रीलंका जाने की सलाह नहीं देगा। श्रीलंका को इन देशों से इस मामले में चुनौती मिल रही है। क्योंकि यहां पर्यटकों के लिए न केवल दाम कम हैं, बल्कि सुविधाएं भी अधिक हैं। कोरोना वायरस के कारण श्रीलंका को यहां काफी मार झेलनी पड़ी है। पहले उसका विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा पर्यटन क्षेत्र से ही आता था। ऐसे में श्रीलंका को अपने इस क्षेत्र में सुधार करने की जरूरत है।
4. चाय, रबर समेत कई चीजों का निर्यात
श्रीलंका को चाय, रबर, वस्त्र और रत्न जैसी चीजों का निर्यात बढ़ाना होगा। इस मामले में वो कई देशों से प्रतियोगिता देख रहा है। श्रीलंका ने इस मामले में भी अतीत में गलती की है। यहां 1970 के दशक में चाय और रबर के बगानों को निजी हाथों से सरकार ने अपने हाथों में ले लिया था। जिससे उत्पादन कम हो गया। नया निवेश थम गया। जिनके बगान लिए गए, उन्होंने दूसरे देशों का रुख करना शुरू कर दिया। फिर बाजार में श्रीलंका के सामान से बेहतर माल मिलने लगा। कपड़ों के निर्यात में श्रीलंका बांग्लादेश से प्रतियोगिता झेल रहा है। कृषि क्षेत्र में सरकार ने खाद के इस्तेमाल पर रोक लगाई थी, जिससे फसल का उत्पादन कम हो गया। अब श्रीलंका को अपनी इन्हीं सब गलतियों को सुधारना होगा।
5. नए क्षेत्रों की तलाश जरूरी
श्रीलंका को अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए नए क्षेत्रों की तलाश करनी होगी। उसे न केवल वैल्यू चेन बल्कि प्रोडक्शन का हिस्सा बनना होगा। उसे इलेक्ट्रोनिक्स, रक्षा, वाहन, फोन और तकनीक से जुड़े दूसरे सामान तैयार करने पर काम करना होगा। ताकि इनके निर्यात से उसके पास विदेशी मुद्रा आ सके। इन उपायों के अलावा भी श्रीलंका को कर्ज से जुड़े नए नियम बनाने होंगे, सरकारी कंपनियों में सुधार करने की जरूरत होगी, मजदूरी से जुड़े नियमों में सुधार करना होगा और टैक्स की दरों में भारी बदलाव करने होंगे। अगर श्रीलंका बड़े स्तर पर इन सभी क्षेत्रों पर काम करता है, तो भी उसे पुरानी स्थिति तक पहुंचने में पांच से छह साल का वक्त लग जाएगा।