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...तो हरा-भरा नजर आएगा थार मरुस्थल, बदली हुई नजर आएगी पूरी दुनिया की तस्वीर

जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिलेगा। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि थार मरुस्थल हरा-भरा हो सकता है। यहां हरियाली नजर आएगी और बारिश भी होगी।

Edited By: Amit Mishra @AmitMishra64927
Updated on: April 29, 2024 14:26 IST
मरुस्थल (फाइल फोटो)- India TV Hindi
Image Source : AP मरुस्थल (फाइल फोटो)

जलवायु परिवर्तन का असर किस कदर हमारे ग्रह को प्रभावित कर रहा है इसका उदाहरण एक नए अध्ययन में सामने आया है। मौसम में हो रहे बदलाव साफ नजर आ रहे हैं और इसका ताजा उदाहरण हाल ही में रेगिस्तानी शहर दुबई में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ है। जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहे बदलाव आगे भी देखने को मिलेंग। इन परिवर्तनों का प्रभाव इतना व्यापक होगा कि भारत के थार रेगिस्तान में भारी बदवाल देखने को मिल सकता है।  थार मरुस्थल सदी के अंत तक हरा-भरा क्षेत्र बन सकता है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। अध्ययन में शामिल शोधकर्मियों के अनुसार तापमान बढ़ने के साथ ही दुनियाभर के कई रेगिस्तानों का और विस्तार होने का अनुमान है वहीं थार रेगिस्तान में इससे उलट रुख देखने को मिल सकता है और यहां हरियाली नजर आएगी।  

बारिश में वृद्धि का अनुमान 

अर्थ फ्यूचर जर्नल में प्रकाशित हुए शोध के मुताबिक, सहारा रेगिस्तान का आकार 2050 तक 6,000 वर्ग किलोमीटर बढ़ सकता है। वहीं, थार रेगिस्तान में औसत वर्षा में 1901 और 2015 के बीच 10-50 फीसदी की वृद्धि हुई है। ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव को देखते हुए आने वाले वर्षों में यहां बारिश में 50 से 200 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है। साथ ही अध्ययन इस धारणा की पुष्टि भी करता है कि भारतीय मानसून के पूर्व की ओर खिसकने से पश्चिम और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सूखा पड़ा और धीरे-धीरे यह इलाके रेगिस्तान में बदल गए, जबकि हजारों वर्ष पूर्व यहां क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता मौजूद थी और तब यहां भरपूर मानसूनी बारिश होती थी। 

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चिंता का विषय

शोधकर्ताओं का दावा है कि अगर भारतीय मानसून के पश्चिम की ओर लौटने की प्रवृत्ति जारी रही, तो पूरा थार रेगिस्तान आर्द्र मानसूनी जलवायु क्षेत्र में बदल जाएगा। भारत के लिए यह निश्चित रूप से राहत की बात होगी, क्योंकि इससे देश की बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा। वर्षा में बढ़ोतरी से खाद्य उत्पादकता में पर्याप्त सुधार की उम्मीद है, जो क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। हालांकि, यह वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चिंता का विषय भी है। क्योंकि थार रेगिस्तान के हरे-भरे क्षेत्र में बदलने से पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन पर व्यापक प्रभाव हो सकते हैं। 

धूल के स्तर में कमी

अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर माइकल बी मैकलेराय के अनुसार नवीनतम निष्कर्षों से पता चलता है कि मानव गतिविधियों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि से धूल के स्तर में कमी आई है। इसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे मनुष्य शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का पीछा करते हैं इन क्षेत्रों में हवाएं उसी प्रकार से बहने की संभावना है। जैसे वो प्री-वीर्मिंग से पहले चलती थी। यही कारण है कि दुनियाभर में उत्सर्जन शमन के साथ-साथ शोधकर्ताओं ने धूल के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए स्थानीय सरकारों द्वारा मरुस्थलीकरण विरोधी अभियानों को अपनाने का आह्वान किया है। 

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