Taiwan on China: ताइवान में नए राष्ट्रपति चुने गए हैं और लोकतंत्र में पूरा विश्वास रखते हैं। भारत के नजरिए से यह खुशखबरी है, क्योंकि वे चीन के घोर विरोधी हैं। चीन ने राष्ट्रपति चुनाव में उनके पक्ष में मतदान न करने की अपील की थी। वो सत्ताधारी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) पार्टी के नेता हैं। वे ताइवान में लोकतंत्र लाना चाहते हैं। यहां वो बात बिल्कुल सटीक बैठती है कि 'शिकारी खुद यहां शिकार हो गया'। मालदीव पर मुखर होने वाले चीन की टेंशन बढ़ गई है क्योंकि जिसे चीन नहीं चाहता था, वे लाई चिंग ते ताइवान के नए राष्ट्रपति चुने गए हैं। ताइवान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने 13 जनवरी, 2024 को ताइपेई, ताइवान में अपनी जीत का जश्न मनाया। लेकिन चीन के सीने पर सांप लोट गए। ताइवान के नए राष्ट्रपति के चुनकर आ जाने से चीन की हैसियत कैसे घटी, ये हम आपको बताएंगे लेकिन इससे पहले ये जान लेते हैं कि कैसे मालदीव के आने से चीन खुश हो गया था।
दरअसल, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू 'इंडिया आउट' के नारे लगाकर चुनाव जीते और आते ही भारत विरोधी निर्णय लेने लगे। इससे चीन खुश हो गया। क्याेंकि मोइज्जू भारत विरोधी हैं और चीन के पक्षधर। चीन को अपना 'सबकुछ' मानने वाले मोइज्जू चुनकर आते ही पहले चीन की यात्रा पर गए और पहले किसी भी मालदीव के राष्ट्रपति की चुनकर आने पर भारत यात्रा करने की परंपरा को तोड़ दिया। इसके बाद चीन में जाकर चीन से चीनी पर्यटकों को बड़ी संख्या में मालदीव भेजने की गुहार की। ताकि भारत के पर्यटकों की संख्या कम होने पर भरपाई हो सके। चीन ने भी अपने सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' में भारत विरोधी बातें लिखीं। परोक्ष रूप से ही सही लेकिन भारत की ओर इशारा करते हुए चीन ने कहा कि 'कोई मालदीव में हस्तक्षेप करेगा तो चीन बर्दाश्त नहीं करेगा।' लेकिन ताइवान में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लाई चिंग के चुनकर आने के बाद कहानी बदल गई।
ताइवान के मामले में कैसे बदल गया चीन का रुख
ताइवान में विलियम लाई चिंग ते नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बने। वो सत्ताधारी डीपीपी के नेता हैं। भारत के नजरिए से यह बहुत अच्छा रहा। क्योंकि ताइवान में आई विलियन लाई की सरकार के कारण चीन की टेंशन बढ़ गई है. क्योंकि इनकी विचारधार एकदम चीन के खिलाफ है। ताइवान में जब चुनाव अभियान चल रहा था, तब चीन ने बाकायदा वॉर्निंग जारी कीं। उसने कहा कि कोई भी लाई को वोट न दे। ताइवान तो हमारा है, ये चीन से अलग देश नहीं है। हालांकि चीन की इस आधारहीन बातों के बीच ताइवान में लोकतांत्रित तरीके से चुनाव हुए। तमाम रुकावटों के बावजूद यहां विलियम लाई की सरकार सत्ता में आई। लाई ने चुनाव जीतने के बाद कहा कि ताइवान लोकतंत्र से जुड़ा हुआ देश है। उनकी पार्टी की विचारधारा की बात करें, तो उनकी पार्टी डीपीपी का फोकस ताइवान के नेशनलिज्म पर है। जो ताइवान की पहचान को काफी अहम मानती है।
चीन को बर्दाश्त नहीं होगा लाई चिंग का चुनकर आना
लाई चिंग उस पार्टी से आते हैं जो कहती है कि उनका देश पहले से स्वतंत्र है, तो स्वतंत्रता की बात आखिर क्यों ही करनी। लाई चिंग के चुनकर आने से चीन के सीने पर सांप लोट गए। चीन को यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा कि कैसे लाई चिंग चुनकर आ गए। चीन वैसे भी चाहकर भी ताइवान का कुछ बिगाड़ नहीं सकता। क्योंकि अमेरिका ने फिर ताइवान की सुरक्षा को लेकर बयान दिया है। लाई चिंग ने यह भी कहा था कि वो जापान और अमेरिका से रिश्ते अच्छे और मजबूत करेंगे। हालांकि चीन यदि ताइवान से सधे स्वरों में बात करे तो वे चीन के साथ भी संबंध सुधारने के हिमायती हैं, लेकिन बिना शर्त।
ताइवान के नए राष्ट्रपति पर खिसियाए चीन ने क्या कही बात?
विलियम लाई के सत्ता में आने के बाद चीन के ताइवान मामलों के कार्यालय के प्रवक्ता चेन बिनहुआ ने कहा कि डीपीपी मेनस्ट्रीम पब्लिक ओपिनियिन को फॉलो नहीं करती। इसका मतलब ये नहीं कि चीन का एकीकरण न हो। उन्होंने कहा कि वन चाइना पॉलिसी को कायम रखने की चीनी सरकार की स्थिति नहीं बदलेगी और वह 'ताइवान की स्वतंत्रता' की मांग करने वाले अलगाववादी आंदोलनों और बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करेगा।
1940 के दशक से स्वशासित है ताइवान
वैसे देखा जाए तो ताइवान के लिए चीन इतनी धमकी भरी बात तब करता है, जब ये देश 1940 के दशक से स्वशासित है। मगर अब लाई की सरकार आने से इतना साफ हो गया है कि चीन चाहकर भी ताइवान का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। भारत की संप्रभुता की परवाह नहीं करने वाले चीन को ताइवान में हुए चुनाव ने उसकी 'हैसियत' बता दी है। ताइवान के नए राष्ट्रपति के बुलंद इरादे चीन को भी सोचने पर मजबूर कर देंगे।