Highlights
- ताइवान को परेशान कर रहा है चीन
- ताइवान ने चीनी ड्रोन पर बरसाई गोलियां
- द्वीपीय क्षेत्र में घुसा था चीन का ड्रोन
China Taiwan War: चीन और ताइवन के बीच लंबे समय से जारी तनाव जल्द ही युद्ध का रूप ले सकता है। ऐसी खबर है कि ताइवान की सेना ने पहली बार चीनी ड्रोन पर ताबड़तोड़ गोलीबारी की है। सेना के ऐसा करने से ठीक पहले राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने सेना को आदेश दिया था कि वह चीनी उकसावे के खिलाफ मजबूत जवाबी कार्रवाई करे। ताइवानी सेना ने अपने नियंत्रण वाले द्वीप पर आए चीनी ड्रोन को वापस लौटने की चेतावनी देने के लिए ड्रोन पर गोली चलाई। चीन इस द्वीप पर अपना दावा करता है, जबकि ताइवान चीन के इन संप्रभुता के दावों को सिरे खारिज करता रहा है।
सेना के एक प्रवक्ता ने बताया कि गोलीबारी के बाद ड्रोन वापस चीनी क्षेत्र में चला गया। ताइवान की ये शिकायत रही है कि वह चीनी तटीय क्षेत्र के बेहद करीब जिन द्वीपों के समूहों को नियंत्रित करता है, वहां अकसर चीनी ड्रोन उड़ते हुए देखे जाते हैं। ये हथियार चीन के सैन्य अभ्यास का हिस्सा होते हैं। हाल में किनमेन द्वीप पर ऐसा देखा गया है। चीन तभी से ताइवान के आसपास युद्धाभ्यास कर रहा है, जब से अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान के दौरे पर आई थीं। जिससे चीन आगबबूला हो गया।
आइलेट द्वीप पर पहुंचा था चीनी ड्रोन
किनमेन के रक्षा कमांड के प्रवक्ता चांग जुंग-शुन ने कहा कि स्थानीय समयानुसार जब ड्रोन आइलेट द्वीप पर पहुंचा था, तो उस पर लाइव राउंड फायरिंग की गईं। जिसके बाद ये वापस चीन लौट गया। चीन की तरफ से तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। वहीं सोमवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने ताइवान की ड्रोन को लेकर की गई शिकायत को खारिज कर दिया था। अमेरिकी अधिकारियों ने पहचान छिपाने की शर्त पर बताया कि ऐसा प्रतीत होता है कि चीन इन ड्रोन का इस्तेमाल स्थिति को खराब करने से ज्यादा ताइवान को परेशान करने के लिए कर रहा है। अमेरिका ने कहा कि वह करीबी से निगरानी नहीं कर रहा लेकिन इस तरह की घटनाओं से चिंतित है।
कम से कम दो ड्रोन मिशनों के फुटेज में ताइवानी सैनिक अपनी चौकियों पर दिख रहे हैं और एक वीडियो में ड्रोन पर पत्थर फेंके गए, जो चीनी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इससे पहले मंगलवार को पेंघू द्वीपों पर सशस्त्र बलों का दौरा करते हुए वेन ने ड्रोन और अन्य "ग्रे जोन" युद्ध गतिविधि के लिए चीन की आलोचना की थी। ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने मंगलवार को स्वशासित द्वीप की सैन्य इकाई से कहा था कि वे चीन द्वारा दैनिक आधार पर भेजे जा रहे विमान और युद्धपोतों को लेकर सयंमित रहें। उन्होंने कहा कि ताइवान, चीन को संघर्ष भड़काने का मौका नहीं देगा।
बता दें अगस्त महीने के शुरुआत में नैंसी पेलोसी की ताइपे यात्रा के बाद से चीन ताइवान पर सैन्य दबाव बनाए हुए है। चीन ने शुरुआत में इस यात्रा के जवाब में ताइवान के नजदीक समुद्र में बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास किया था और फिर ताइवान के ऊपर से मिसाइल दागी थी, जो जापान के आर्थिक क्षेत्र में गिरी थी। राष्ट्रपति वेन चीन द्वारा प्रतिदिन डाले जा रहे दबाव के बावजूद सयंमित हैं। उन्होंने ताइवान के पश्चिमी तट पर पेंघु स्थित नौसेना के ठिकाने के दौरा किया और सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा, ‘दुश्मन जितना भी उकसावे की मुद्रा में हो, हमें उतना ही संयमित रहने की जरूरत है। हम उन्हें संघर्ष करने के लिए बहाना नहीं देंगे।’ इस दौरान उन्होंने रडार स्क्वाड्रन, वायु रक्षा कंपनी का निरीक्षण किया था।
क्या है चीन और ताइवान का इतिहास
ताइवान दक्षिण-पूर्वी चीन के तट से लगभग 160 किमी दूर एक द्वीप है, जो फूजौ, क्वानझोउ और जियामेन के चीनी शहरों के सामने है। यहां शाही किंग राजवंश का शासन चलता था, लेकिन इसका नियंत्रण 1895 में जापानियों के पास चला गया। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, ये द्वीप वापस चीनी हाथों में चला गया। माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों द्वारा मुख्य भूमि चीन में गृह युद्ध जीतने के बाद, राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग पार्टी के नेता च्यांग काई-शेक 1949 में ताइवान भाग गए। च्यांग काई-शेक ने द्वीप पर चीनी गणराज्य की सरकार की स्थापना की और 1975 तक राष्ट्रपति बने रहे।
चीन ने कभी भी ताइवान के अस्तित्व को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है। उसका तर्क है कि यह हमेशा एक चीनी प्रांत था। ताइवान का कहना है कि आधुनिक चीनी राज्य 1911 की क्रांति के बाद ही बना था, और यह उस राज्य या चीन के जनवादी गणराज्य का हिस्सा नहीं है, जो कम्युनिस्ट क्रांति के बाद स्थापित हुआ था। दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव जारी है। आपको बता दें चीन और ताइवान के आर्थिक संबंध भी रहे हैं। ताइवान के कई प्रवासी चीन में काम करते हैं और चीन ने ताइवान में निवेश किया है।
अमेरिका और दुनिया ताइवान को कैसे देखते हैं?
संयुक्त राष्ट्र ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देता है। दुनिया भर में केवल 13 देश- मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिकी, कैरिबियन, द्वीपीय और वेटिकन इसे मान्यता देते हैं। वहीं अमेरिका की चीन से बढ़ती दुश्मनी के चलते उसकी नीति स्पष्ट नहीं लग रही है। जून में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि अगर चीन ताइवान पर कब्जा करेगा, तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगा। लेकिन इसके ठीक बाद में बाइडेन के बयान पर सफाई देते हुए अमेरिका ने कहा कि वह ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता है। अमेरिका का ताइपे के साथ कोई औपचारिक संबंध नहीं है, फिर भी वह उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन देता है और हथियारों की आपूर्ति करता है।
साल 1997 में रिपब्लिकन पार्टी के तत्कालीन हाउस स्पीकर न्यूट गिंगरिच ने ताइवान का दौरा किया था। तब भी चीन ने ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी, जैसी वो अभी दे रहा है। चीन के नेताओं के साथ अपनी बैठकों का जिक्र करते हुए गिंगरिच ने कहा था, "हम चाहते हैं कि आप समझें, हम ताइवान की रक्षा करेंगे।" लेकिन उसके बाद स्थिति बदल गई। चीन आज विश्व राजनीति में बहुत मजबूत शक्ति बन गया है। चीनी सरकार ने 2005 में एक कानून पारित किया था, जिसमें कहा गया कि अगर ताइवान अलग होने की बात करता है, तो उसे सैन्य कार्रवाई से मुख्य भूमि में शामिल किया जा सकता है।
ताइवान की सरकार ने हाल के वर्षों में कहा है कि केवल द्वीप के 23 मिलियन लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है और हमला होने पर वह अपनी रक्षा करेगा। 2016 से, ताइवान ने एक ऐसी पार्टी को चुना है, जो ताइवान की स्वतंत्रता की वकालत करती है।