Highlights
- चीन के विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र में बोले
- ताइवान के मुद्दे पर दुनिया को चेताया
- वांग यी ने करारा जवाब देने की बात कही
China Taiwan: चीन की एक के बाद एक कायराना हरकतों के चलते बीते कुछ समय से ताइवान को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है। खुद को एक स्वतंत्र देश बताने वाले इस द्वीप को चीन अपना हिस्सा मानता है और यहां की यात्रा करने वाले किसी भी बाहरी देश के नेता को नजरें तरेर कर देखता है। अब चीन ने ताइवान के मुद्दे पर सीधे संयुक्त राष्ट्र से दुनिया को धमकी तक दे डाली है। चीन ने ताइवान पर अपने दावे को लेकर प्रतिबद्धता रेखांकित करते हुए शनिवार को विश्व नेताओं से कहा कि जो कोई भी स्वशासित द्वीप एकीकरण के उसके संकल्प के रास्ते में आएगा, उसे करारा जवाब का सामना करना पड़ेगा।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा, ‘जब चीन एकीकृत हो जाएगा तभी ताइवान सागर क्षेत्र में सच्ची शांति हो सकती है।’ उन्होंने कहा कि बीजिंग ‘बाहरी हस्तक्षेप पर जवाब देने के लिए सबसे सशक्त कदम उठाएगा।’ चीन ताइवान पर अपने दावे का जोरदार बचाव करता है। ताइवान 1949 के गृहयुद्ध के बाद चीन से अलग हो गया था। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान की हालिया यात्रा से अमेरिका और चीन के बीच तनाव और बढ़ा है। चीन के लिए ताइवान देश की नीति का मुख्य मुद्दा रहा है।
क्या है चीन और ताइवान का इतिहास
ताइवान दक्षिण-पूर्वी चीन के तट से लगभग 160 किमी दूर एक द्वीप है, जो फूजौ, क्वानझोउ और जियामेन के चीनी शहरों के सामने है। यहां शाही किंग राजवंश का शासन चलता था, लेकिन इसका नियंत्रण 1895 में जापानियों के पास चला गया। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, ये द्वीप वापस चीनी हाथों में चला गया। माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों द्वारा मुख्य भूमि चीन में गृह युद्ध जीतने के बाद, राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग पार्टी के नेता च्यांग काई-शेक 1949 में ताइवान भाग गए। च्यांग काई-शेक ने द्वीप पर चीनी गणराज्य की सरकार की स्थापना की और 1975 तक राष्ट्रपति बने रहे।
चीन ने कभी भी ताइवान के अस्तित्व को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है। उसका तर्क है कि यह हमेशा एक चीनी प्रांत था। ताइवान का कहना है कि आधुनिक चीनी राज्य 1911 की क्रांति के बाद ही बना था, और यह उस राज्य या चीन के जनवादी गणराज्य का हिस्सा नहीं है, जो कम्युनिस्ट क्रांति के बाद स्थापित हुआ था। दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव जारी है। आपको बता दें चीन और ताइवान के आर्थिक संबंध भी रहे हैं। ताइवान के कई प्रवासी चीन में काम करते हैं और चीन ने ताइवान में निवेश किया है।
अमेरिका और दुनिया ताइवान को कैसे देखती है?
संयुक्त राष्ट्र ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देता है। दुनिया भर में केवल 13 देश- मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिकी, कैरिबियन, द्वीपीय और वेटिकन इसे मान्यता देते हैं। वहीं अमेरिका की चीन से बढ़ती दुश्मनी के चलते उसकी नीति स्पष्ट नहीं लग रही है। जून में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि अगर चीन ताइवान पर कब्जा करेगा, तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगी। लेकिन इसके ठीक बाद में बाइडेन के बयान पर सफाई देते हुए अमेरिका ने कहा कि वह ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता है। अमेरिका का ताइपे के साथ कोई औपचारिक संबंध नहीं है, फिर भी वह उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन देता है और हथियारों की आपूर्ति करता है।
साल 1997 में रिपब्लिकन पार्टी के तत्कालीन हाउस स्पीकर न्यूट गिंगरिच ने ताइवान का दौरा किया था। तब भी चीन ने ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी, जैसी वो अभी दे रहा है। चीन के नेताओं के साथ अपनी बैठकों का जिक्र करते हुए गिंगरिच ने कहा था, "हम चाहते हैं कि आप समझें, हम ताइवान की रक्षा करेंगे।" लेकिन उसके बाद स्थिति बदल गई। चीन आज विश्व राजनीति में बहुत मजबूत शक्ति बन गया है। चीनी सरकार ने 2005 में एक कानून पारित किया था, जिसमें कहा गया कि अगर ताइवान अलग होने की बात करता है, तो उसे सैन्य कार्रवाई से मुख्य भूमि में शामिल किया जा सकता है।
ताइवान की सरकार ने हाल के वर्षों में कहा है कि केवल द्वीप के 23 मिलियन लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है और हमला होने पर वह अपनी रक्षा करेगा। 2016 से, ताइवान ने एक ऐसी पार्टी को चुना है, जो ताइवान की स्वतंत्रता की वकालत करती है।