दुनिया अभी रूस और यूक्रेन के युद्ध से उत्पन्न संकट से बाहर नहीं निकल पाई है कि चीन ने अपनी नापाक साजिशों के अंजाम देना शुरू कर दिया है। चीन इस पूरे युद्ध के दौरान रूस के साथ खड़ा नज़र आया। दूसरी तरफ, भारत और चीन भी सीमा पर आमने-सामने है। एक अखबार ने दावा किया कि चीन लद्दाख पर अवैध कब्जा करने का प्रयास कर रहा है।
इस कड़ी में चीन ने लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में मोबाइल टॉवर भी लगाना शुरू कर दिया है। चीन की इस हरकत की जानकारी चारागाह से अपने जानवरों को वापस लेकर आ रहे चरवाहों ने दी है। अब सवाल उठता है कि क्या चीन मोबाइल टॉवर को सहारा बनाकर सीमावर्ती इलाकों में अपनी पैठ मजबूत करना चाहता है?
एक्सपर्ट्स से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि पहली बात तो सीमावर्ती इलाकों में चीन के मोबाइल टॉवर लगाने से एक बात तो साबित हो गई है कि भारत की सीमावर्ती इलाकों में पकड़ कमजोर हो रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो सुरक्षा एजेंसियों को तुरंत इस पर कोई फैसला लेना चाहिए था। अगर ऐसा नहीं हो पाया तो इसमें कहीं न कहीं हमारी ही कमजोरी है।
अरुणाचल प्रदेश में क्या हुआ था?
चीन ने अपने नए सीमा क़ानून के तहत पूर्वी इलाक़े में सीमावर्ती क्षेत्रों में 'दोहरे इस्तेमाल के लिए' गांवों का निर्माण किया था। इन गांवों को खतरे के तौर पर देखा जा रहा था क्योंकि इन्हें लेकर दावा था कि ये गांव स्थायी सैन्य शिविर में तब्दील हो चुके हैं।
एक्सपर्ट्स की मानें तो पहले चीन ने यहां भी सीधे दखल नहीं दिया था। सीमा के नज़दीक ड्रैगन की हलचल तेज हुई थी। इसलिए इससे इनकार तो नहीं किया जा सकता कि चीन अब अरुणाचल की तरह ही लद्दाख में भी अपना जाल बिछा रहा है। ऐसा बिल्कुल संभव है कि इन मोबाइल टॉवर्स का इस्तेमाल वह लद्दाख के बारे में खबर लेने के लिए भी करे। क्योंकि इनका यहां लगने का मतलब है कि इसकी कवरेज पूरे लद्दाख में होगी।