Highlights
- चीन ने पाकिस्तान-श्रीलंका को कर्ज जाल में फंसाया
- चीन की तरफ से दोनों को कोई राहत नहीं दी गई
- कर्ज की वजह से कम हुआ विदेशी मुद्रा भंडार
China Debt Trap: आर्थिक संकट के जिस जाल में श्रीलंका फंसा हुआ है, पाकिस्तान भी तेजी से उसके करीब जा रहा है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार निम्न स्तर पर चला गया है। जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने राहत पैकेज देने से पहले पाकिस्तान के आगे कड़ी शर्तें रख दी हैं। चाहे श्रीलंका हो या फिर पाकिस्तान, दोनों ही देशों की इस हालत के लिए उनका सदाबहार दोस्त चीन जिम्मेदार है। चीन ने इनसे ये झूठ कहा कि वो हमेशा इनकी भलाई का सोचेगा और इनकी भलाई के लिए ही काम कर रहा है। जबकि ऐसा कतई नहीं था। बीते कई सालों से विशेषज्ञ कम और मध्यम आय वाले देशों को चीन के कर्ज जाल को लेकर चेतावनी दे रहे हैं। लेकिन श्रीलंका और पाकिस्तान ने किसी की एक न सुनी।
यही वजह है कि चीन अपनी महत्वकांशी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे कमजोर देशों में अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट हासिल करने में सफल हुआ है। श्रीलंका और पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी राहत पैकेज जारी करने से कतरा रही हैं।
चीन के कर्ज ने दोनों को दीवालिएपन तक पहुंचाया
पाकिस्तान और श्रीलंका के आर्थिक संकट के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। इसके लिए सरकार से लेकर कोरोना वायरस महामारी तक का बड़ा हाथ है। लेकिन इस बात में कोई शक नहीं है कि चीन के कर्ज ने इनकी नैया डुबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बेशक अमेरिका सहित कई देशों ने चीन की बीआरआई परियोजना की निंदा की है। बावजूद इसके पाकिस्तान और श्रीलंका सचेत नहीं हुए। अमेरिका ने कहा कि चीन बीआरआई के जरिए विकासशील देशों को खुद पर निर्भर बना रहा है। लेकिन चीन इन आरोपों को खारिज करता है। उसका कहना है कि वह विकासशील देशों को जरूरी बजट मुहैया कराता है।
पैसे का लॉलीपॉप दिखाकर बना रहा आर्थिक गुलाम
चीन के खोखले दावों से न केवल पाकिस्तान और श्रीलंका कर्ज के जाल में फंसे हैं बल्कि यहां अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट भी अधूरे पड़े हैं। यहां गरीबी इस कदर बढ़ रही है कि यह इन अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट पर काम करने या कर्ज चुकाने के बारे में सोच भी नहीं पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में इन्हें खुद को बचाने के लिए हर कदम पर चीन से मदद लेने तक को मजबूर होना पड़ रहा है। अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो माइकल रूबिन का कहना है कि पाकिस्तान में एक के बाद एक नेता आर्थिक सुधारों से दूरी बना रहे हैं। इसके पीछे का कारण है कि इन्हें चीन की झूठी कहानियों पर अब भी यकीन है। चीन ने पाकिस्तान का आर्थिक सहायक होने की बजाय इस देश को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से अपने जाल में फंसाया है।
चीन ने बीआरआई के जरिए ही पाकिस्तान की तरह श्रीलंका को भी धोखा दिया है। इनमें से अधिकतर प्रोजेक्ट हंबनटोटा बंदरगाह पर धूल फांक रहे हैं। ये बंदरगाह दक्षिणी श्रीलंका में पूर्व-पश्चिम समुद्री मार्ग के निकट स्थित है। बंदरगाह का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था, जिसके लए चीन ने लगभग 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उधार दिया था। शुरुआत में चीन ने श्रीलंका को इस बंदरगाह के विकास के सपने दिखाए थे। चीन ने कहा कि यह बंदरगाह हिंद महासागर से गुजरने वाले एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित है। लेकिन, श्रीलंका को इस बंदरगाह से बिलकुल भी लाभ नहीं हुआ है। यही वजह थी कि श्रीलंकाई सरकार ने कर्ज चुकाने के डर से जानबूझकर बंदरगाह को 99 साल की लीज पर एक चीनी कंपनी को सौंप दिया।
हंबनटोटा की रकम बिजली के बिल लायक भी नहीं
हंबनटोटा बंदरगाह के पास राजपक्षे एयरपोर्ट है। इसे चीन से 200 मिलियन डॉलर लेकर बनाया गया है। एयरपोर्ट का इस्तेमाल बहुत कम होता है। ऐसे भी हालात आए, जब इसके पास अपना बिल भरने तक के पैसे नहीं थे। जिसके बाद से एयरपोर्ट का इस्तेमाल ही नहीं हो रहा। चीनी कंपनी अब अपने फायदे के लिए एयरपोर्ट का इस्तेमाल कर रही हैं लेकिन कर्ज के पैसे में तनिक भी छूट नहीं दे रहीं। यही वजह है कि चीन का कर्ज लौटाने के चक्कर में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो गया है। केवल इतना ही नहीं, कोरोना वायरस महामारी और राजनीतिक स्थिति ने भी श्रीलंका का इतना बुरा हाल किया है।
सीपीईसी के कई प्रोजेक्ट अधूरे पड़े
ठीक इसी तरह चीन ने सीपीईसी से जुडे़ कई प्रोजेक्ट को अभी तक पूरा नहीं किया है। पाकिस्तान सरकार के मुताबिक, सीपीईसी के कई प्रोजेक्ट या तो शुरू ही नहीं हुए हैं, या फिर देरी से चल रहे हैं। मई में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्वादर पर 15 में से तीन प्रोजेक्ट ही अभी तक पूरे हुए हैं। सीपीईडी अथॉरिटी के मुताबिक, जलापूर्ति और बिजली उत्पादन सहित 2 अरब डॉलर तक के दर्जन भर प्रोजेक्ट अभी अधूरे हैं।
पाकिस्तान पर साल दर साल बढ़ रहा कर्ज
चाहे प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हों या अधर में लटके हों, चीन का पाकिस्तान पर बकाया कर्ज साल दर साल बढ़ रहा है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय द्वारा जारी दस्तावेजों से पता चला है कि जून 2013 में पाकिस्तान का कुल सार्वजनिक और सार्वजनिक रूप से गारंटीकृत विदेशी ऋण 44.35 बिलियन डॉलर था, जिसमें से केवल 9.3 प्रतिशत चीन पर बकाया था। आईएमएफ के अनुसार, अप्रैल 2021 तक, यह विदेशी कर्ज बढ़कर 90.12 बिलियन डॉलर हो गया था, जिसमें पाकिस्तान पर चीन का कर्ज कुल विदेशी कर्ज का 27.4 फीसदी था। वास्तव में, पाकिस्तान को अगले तीन वर्षों में चीन को आईएमएफ के दोगुने से अधिक बकाया का भुगतान करने की आवश्यकता है।