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China-Nepal BRI Project: नेपाल ने ठंडे बस्ते में में क्यों डाला जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट, ड्रैगन के 'जाल' में फंसने से बचा ये देश?

बताया जाता है कि बीआरआई, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट है जिसके तहत वह एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क और जल मार्ग से जोड़ना चाहते हैं लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद अब यह प्रोजेक्ट नेपाल में ठंडे बस्ते में पड़ा है।

Edited by: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published on: May 21, 2022 15:59 IST
Nepal puts on hold China's dream project BRI - India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Nepal puts on hold China's dream project BRI 

Highlights

  • नेपाल-चीन के बीच BRI साइन हुए पांच साल पूरे
  • बीआरआई के तहत नेपाल में बनाने थे 35 प्रोजेक्ट
  • देउवा सरकार की चीन के ड्रीम प्रोजेक्ट में रुचि नहीं

China-Nepal BRI Project: पिछले हफ्ते नेपाल और चीन के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को साइन हुए पांच साल पूरे हो गए। फरवरी 2018 को केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे। कुछ महीनों बाद जून में वह चीन के दौरे पर गए जहां चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग के साथ मीटिंग के दौरान उन्होंने 35 प्रोजेक्ट की जानकारी दी जिन्हें नेपाल बीआरआई के तहत बनाना चाहता है। 

बताया जाता है कि बीआरआई, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट है जिसके तहत वह एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क और जल मार्ग से जोड़ना चाहते हैं। जब इसपर साइन किया गया तो ये नेपाल के लिए बड़ी उपलब्धि माना जा रहा था लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद अब यह प्रोजेक्ट नेपाल में ठंडे बस्ते में पड़ा है।

 
कर्ज लेने के पक्ष में नहीं नेपाल

काठमांडू पोस्ट की एक खबर में कहा गया है कि मजबूत जनादेश के साथ ओली की सत्ता में वापसी और अपने पहले कार्यकाल में बीजिंग के साथ कई समझौतों पर साइन करने के चलते बीआरआई की परियोजनाओं के शुरू होने की उम्मीदें बढ़ गई थीं। लेकिन पांच साल बाद अब ये उम्मीदें धुंधली पड़ती नजर आ रही हैं। मामले से परिचित दो सरकारी अधिकारियों ने कहा कि बीआरआई के तहत परियोजनाओं की ज्यादातर फंडिंग लोन से होती है, यही कारण है कि नेपाल इसमें ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा। लिहाजा चीनी सलाह पर नेपाल ने परियोजनाओं की संख्या को घटाकर 9 कर दिया। अधिकारियों ने कहा कि अब बीआरआई के प्रोजेक्ट्स प्राथमिक भी नहीं हैं।

त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर मृगेंद्र बहादुर कार्की ने कहा कि लोन को लेकर नेपाल की प्राथमिकता, जिसे देउबा सरकार ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी की यात्रा के दौरान स्पष्ट किया था, भी बीआरआई की परियोजनाओं की असफलता का कारण बनी। उन्होंने कहा कि नेपाल के पास विश्व बैंक और एशियन डेवलेपमेंट बैंक जैसी एजेंसियों से लोन लेने का लंबा अनुभव है जिनकी ब्याज दरें भी कम होती हैं और भुगतान का समय भी लंबा होता है। नेपाल उच्च ब्याज दरों वाले कमर्शियल लोन का बोझ नहीं उठा सकता।
 
नेपाल क्यों डाल रहा ढील?

नेपाल में बीआरआई के असफल होने के कई कारण हैं। ओली कैबिनेट में विदेश मंत्री रह चुके प्रदीप ग्यावाली ने कहा, 'हमारी शुरुआत काफी धीमी थी। प्रोजेक्ट्स के चयन में काफी समय लगा और फिर हमने इसकी संख्या 35 से घटाकर 9 कर दी। हम प्रोजेक्ट्स को शुरू करने की योजना पर काम कर रहे थे कि तभी महामारी आ गई और हमारी प्राथमिकता बदल गई।' ग्यावाली के अनुसार बीआरआई को लेकर शेर बहादुर देउबा सरकार का रुख खासा स्पष्ट नहीं है। 

 नेपाल में निवेश के लिए भारत तैयार

नेपाल को अमेरिका की तरफ से मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन के तहत 500 मिलियन डॉलर का अनुदान मिल रहा है। दूसरी ओर भारत भी नेपाल में, विशेष रूप से हाइड्रोपावर सेक्टर में, निवेश करने में रुचि दिखा रहा है। अमेरिका और हिंदुस्तान दोनों ही लंबे समय से बीआरआई को नकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं। अमेरिकी अधिकारियों ने काठमांडू को संभावित कर्ज जाल की भी चेतावनी दी है।

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