Friday, November 01, 2024
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Bullet Train to Moon-Mars: अब चांद और मंगल तक जाएंगे लोग! जापान पृथ्वी से सीधे चलाएगा बुलेट ट्रेन, इस शानदार तकनीक पर कर रहा काम

जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन एक ग्लास बनाने वाले हैं। इसका मतलब है कि इंसान एक आर्टिफिशियल स्पेस हैबिटेट में रहेगा। जिसकी ग्रैविटी पृथ्वी के बराबर होगी।

Written By: Shilpa
Updated on: July 15, 2022 18:35 IST
Bullet Train to Moon Mars by Japan- India TV Hindi
Image Source : PEXELS Bullet Train to Moon Mars by Japan

Highlights

  • जापान ने चांद और मंगल तक बुलेट ट्रेन चलाने का ऐलान किया
  • इस प्रोजेक्ट में एक शानदार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा
  • इसके लिए एक खास तरह का ग्लास तैयार होगा

Bullet Train to Moon-Mars: वो दिन अब दूर नहीं जब बुलेट ट्रेन चंद्रमा और मंगल ग्रह तक जाएगी। ये बात सुनने में आपको अटपटी लग सकती है लेकिन जापान वाकई में ऐसा करने जा रहा है। बीते हफ्ते एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जापान की एक टीम ने बुलेट ट्रेन से जुड़ी अपनी भविष्य की एक योजना का ऐलान किया है। इन्होंने जीरो और कम ग्रैविटी वाले वातावरण में ग्लास हैबिटेट बनाने की योजना बनाई है। जिसमें धरती जैसी ग्रैविटी (Gravity), भूभाग और वातावरण होगा। जिससे वहां इंसानी शरीर को किसी तरह के नुकसान से बचाया जा सकेगा। 

  
ग्लास- चंद्रमा और मंगल पर होगी एक और पृथ्वी

ऐसा भी कहा जाता है कि मानवीय शरीर अंतरिक्ष में कम ग्रैविटी (Japan's Bullet Train to Moon) वाले वातावरण के कारण ठीक से काम नहीं कर सकता है। ऐसे वातावरण में शरीर की हड्डियां, मासपेशियां और पूरी संरचना कमजोर हो जाती हैं और अपनी ताकत का उपयोग नहीं कर पातीं। साथ ही बच्चों को अंतरिक्ष में बड़ा करना भी खतरनाक हो सकता है। इस मामले में अभी तक कोई अध्ययन नहीं किया गया है। उन्हें वहां पैदा करने में दिक्कत आ सकती है। या ऐसा भी हो सकता है कि वह वापस धरती पर लौटकर अपने पैरों पर खड़े न हो पाएं। टीम ने 21वीं सदी के आधा बीतने के बाद तक चंद्रमा और मंगल की ओर प्रवास की भविष्यवाणी की है।

इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए योजना बनाने वाले जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन एक ग्लास बनाने वाले हैं। इसका मतलब है कि इंसान एक आर्टिफिशियल स्पेस हैबिटेट में रहेगा। जिसकी ग्रैविटी पृथ्वी के बराबर होगी। ये नकली ग्रैविटी होगी, यहां पूरी तरह पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था होगी, हरित (पेड़-पौधे) इलाके और नदियां होंगी। ये दिखने में बिलकुल पृथ्वी जैसा ही लगेगा। इंसान के शरीर को कोई नुकसान न हो, इस बात का पूरा ध्यान आर्टिफिशियल स्पेस हैबिटेट में रखा जाएगा। वहां की ग्रैविटी और वायुमंडल धरती के जैसा ही होगा। 

ग्लास क्या है और यह कैसा होगा?

यह ग्लास एक बड़ी कॉलोनी (Glass Colony) की तरह होगा, जिसे चांद और मंगल ग्रह पर बनाया जाएगा। इसमें इंसान आराम से रह सकेंगे। इसके अंदर रहने के दौरान उन्हें स्पेससूट पहनने की कोई जरूरत नहीं होगी। हालांकि इससे बाहर निकलने पर स्पेससूट पहनना पड़ेगा। बीते हफ्ते हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में टीम ने अपनी प्रेजेंटेशन में एक बड़ा ढांचा दिखाया था, जिसमें नदी, पानी और मनुष्यों के रहने के लिए पार्क जैसी सुविधाएं दिखाई गईं। प्रेजेंटेशन (Japan's Mega Space Migration Program) में बताया गया है कि ग्लास कोन जैसा होगा। जो एक 1300 फीट लंबी इमारत होगी, जिसमें आर्टिफिशियल ग्रैविटी होगी। 
 
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि साल 2050 तक इसका प्रोटोटाइप बनकर तैयार हो जाएगा। वहीं इसके आखिरी वर्जन के बनने और संचालित होने में करीब एक सदी का वक्त लग सकता है। चांद (Space Travel) पर बनने वाली इस कॉलनी का नाम लूनाग्लास रखा जाएगा। वहीं मंगल पर बनने वाली कॉलनी का नाम मार्सग्लास होगा। क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन मिलकर स्पेसएक्सप्रेस नाम की एक बुलेट ट्रेन पर काम करने वाले हैं। जो धरती से सीधा चांद और मंगल तक जाएगी। ये ट्रेन एक तरह का इंटरप्लैनेटरी ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम होगा। जिसे हेक्साट्रैक के नाम से जाना जाएगा।
 
हेक्साट्रैक में क्या खूबियां होंगी?

हेक्साट्रैक (Hexatrack) की खासियत यह होगी कि यह लंबी दूरी की अंतरिक्ष यात्रा (how long would it take a bullet to reach the moon) में भी 1जी की ग्रैविटी की ताकत बनाकर रखेगी। इससे लंबे वक्त तक जीरो ग्रैविटी में यात्रा करने से लोगों को नुकसान नहीं होगा। वहीं हैक्साट्रैक पर हैक्साकैप्सूल चलेंगे, जो षट्कोणीय आकार के कैप्सूस (स्पेस कैप्सूल) होंगे और इनके बीच में एक मूविंग डिवाइस होगा। यह पृथ्वी और चंद्रमा के बीच एक छोटा सा (15 मीटर रेडियस) कैप्सूल होगा। और पृथ्वी, मंगल, चंद्रमा और मंगल के बीच यात्रा करने के लिए एक बड़ा कैप्सूल (30 मीटर रेडियस) भी होगा। बड़े कैप्सूल में एक संरचना होगी, जिसमें बाहरी फ्रेम 'तैरता दिखेगा'. सभंव है कि इसके लिए विद्युत चुम्बकीय तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जैसा जर्मनी और चीन में मैग्लेव ट्रेनों पर देखा जाता है।

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