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कोलंबो में रामायण को लेकर क्या है मान्यता, श्रीलंका के मंत्री ने बताई ये अद्भुत बात

श्रीलंका के मंत्री जीवन थोंडामन ने यह भी कहा,‘‘ सीता के हरण के बावजूद भी हम रावण को खलनायक नहीं मानते। इस दौरान भगवान श्रीराम पर लगी प्रदर्शनी का उद्घाटन श्रीलंकाई मंत्री और केंद्रीय संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने संयुक्त रूप से नई दिल्ली में किया।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Mar 02, 2024 12:09 IST, Updated : Mar 02, 2024 12:09 IST
रामयण गाथा का एक दृश्य।
Image Source : PTI रामयण गाथा का एक दृश्य।

भारत में पवित्र श्री रामायण ग्रंथ का क्या महत्व है, यह किसी से बताने की जरूरत नहीं है। मगर श्रीलंका में रामायण को लेकर लोगों के दिल और मन में क्या श्रद्धा है, शायद इस बारे में आप नहीं जानते होंगे। श्रीलंका के मंत्री जीवन थोंडामन ने शुक्रवार को इस बारे में अद्भुद जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि रामायण श्रीलंका और भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत है और इससे दोनों देशों की सांस्कृतिक चेतना और संबंधों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। श्रीलंका के मंत्री ने कहा कि भारत और श्रीलंका के संबंध बेहतरीन स्थिति में पहुंच गए हैं।

बता दें कि थोंडामन ने यहां ‘नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट’ (एनजीएमए) में दो महीने तक आयोजित होने वाली प्रदर्शनी ‘चित्रकाव्यम रामायणम’ के उद्घाटन के दौरान यह बात कही। श्रीलंका के जलापूर्ति और संपदा अवसंरचना विकास मंत्री थोंडामन ने अपने संबोधन में कहा,‘‘लोगों के बीच संपर्क हमारे सभ्यतागत और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करता है। रामायण को लेकर वही सम्मान श्रीलंकाइयों के भी दिल में है, जो भारतीयों के है।

रामायण भारत और श्रीलंका की है सांस्कृतिक गाथा

 थोंडामन ने प्रदर्शनी का उल्लेख करते हुए कहा,‘‘ इन असाधारण दृश्यों को देखकर कोई भी समझ सकता है कि कैसे रामायण श्रीलंका और भारत दोनों के लिए एक साझा सांस्कृतिक कथा है, साझा सांस्कृतिक चेतना में योगदान देती है और संबंधों को मजबूत बनाने में मदद करती है।’’ इस दौरान उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में रावण के चरित्र पर भी चर्चा की और बताया कि भारत में जनमानस के बीच रावण की जो छवि है उनके देश में लोग उसे वैसा नहीं देखते। उन्होंने कहा, ‘‘ हमारी तरफ रावण को एक कुशल प्रशासक माना जाता है और यहां तक कि संत वाल्मीकि की रामायण में.रणभूमि में रावण के मरणासन्न होने पर भगवान राम उनके पास बैठे और उनसे प्रशासन एवं नेतृत्व के गुर लिए।’ ​ (भाषा) 

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