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Bangladesh: ढाका में विरोध प्रदर्शन के दौरान इस शख्स ने की खूब कमाई, पल-पल का रहा गवाह

बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन के दौरान सुमन ने खूब कमाई की। पुराने ढाका के अलु बाजार इलाके में रहने वाले सुमन ने बताया कि उसके पिता भारतीय मूल के थे। 1971 के आसपास सुमन के पिता ढाका आए थे और फिर यहीं पर घर बसा लिया था।

Edited By: Amit Mishra @AmitMishra64927
Updated on: August 27, 2024 14:54 IST
Bangladesh Protest- India TV Hindi
Image Source : FILE AP Bangladesh Protest

ढाका: सरकार विरोधी हिंसक प्रदर्शनों के बीच ढाका में राष्ट्रीय ध्वज और 'हैडबैंड' बेचने वाला मोहम्मद सुमन बांग्लादेश के असाधारण घटनाक्रम का पल-पल का गवाह रहा, लेकिन उसकी खुद की जिंदगी बेहद साधारण है। मोहम्मद सुमन का नाम सामाजिक सद्भाव की कहानी बयां करता है, जिसकी इस हिंसाग्रस्त देश में इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है। वर्ष 1989 में ढाका में जन्मा सुमन रोजी-रोटी के लिए तीन अलग-अलग आकार के बांग्लादेशी झंडे और हैडबैंड बेचता है। उसके मुताबिक, देश में एक महीने से अधिक समय तक हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान उसने 'जबरदस्त कमाई' की। 

सुमन ने बताई जीवन की कहानी

बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज से प्रेरित हरा हैडबैंड बेचने वाला सुमन कहता है कि उसके इस उत्पाद की मांग सबसे ज्यादा है, खासकर छात्रों के बीच। यह हैडबैंड बांग्लादेश में अभूतपूर्व विरोध-प्रदर्शनों का प्रतीक बनकर उभरा है। काम से समय निकालकर थोड़ा आराम करते सुमन (35) ने अपने जीवन की कहानी साझा की और बताया कि कैसे उसे 'सुमन' नाम मिला, जो हिंदू समुदाय में रखा जाने वाला एक आम नाम है। 

ऐसे 'सुमन' पड़ा नाम

सुमन ने यहां 'पीटीआई-भाषा' को बताया, ‘‘मेरा जन्म ढाका के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। मेरे नाम की वजह से कई लोगों को लगता है कि मेरे माता-पिता अलग-अलग धर्म के थे, लेकिन ऐसा नहीं है। जब मेरी मां गर्भवती थी, तब हमारे पड़ोस में रहने वाली अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की एक महिला ने उससे कहा था कि वह जन्म के बाद बच्चे का नाम रखेगी। और जब मेरा जन्म हुआ, तो उसने मुझे सुमन नाम दिया।’’ 

सुमन को प्रदर्शन के दौरान डर लगा?

पुराने ढाका के अलु बाजार इलाके में रहने वाला सुमन बताता है कि भारतीय मूल का उसका पिता 1971 के आसपास कलकत्ता (अब कोलकाता) से ढाका आ गया था और यहीं पर घर बसा लिया था। वर्ष 2024 की तरह ही 1971 भी बांग्लादेश के लिए काफी उथल-पुथल भरा और ऐतिहासिक था, क्योंकि मुक्ति संग्राम के बाद वह एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया था। मुक्ति संग्राम में भारतीय सैनिकों ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति योद्धाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा था। सुमन ने कहा, ‘‘2008 में अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए मैं कोलकाता गया था। उसके बाद से मैं कभी भी भारत नहीं गया।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या हिंसक विरोध-प्रदर्शन के दौरान झंडे बेचते समय उसे डर लगता था, सुमन ने कहा, ‘‘डरना क्यों, आखिरकार हर किसी को एक ना एक दिन मरना है।’’ 

वसूले तीन गुना अधिक दाम

सरकारी नौकरियों में विवादास्पद कोटा प्रणाली के खिलाफ जुलाई के मध्य में बांग्लादेश में भड़के विरोध-प्रदर्शन में 600 से अधिक लोग मारे गए थे। विरोध-प्रदर्शनों के बीच पांच अगस्त को शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बड़े पैमाने पर हिंदू समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया था। सुमन के मुताबिक, उसने पांच अगस्त को 'रिकॉर्ड बिक्री' की थी, क्योंकि प्रदर्शनकारी हैडबैंड पहनकर और झंडे लहराकर प्रदर्शन करना चाहते थे। सोशल मीडिया पर प्रसारित तस्वीरों और वीडियो में इसकी झलक भी देखी जा सकती है। सुमन स्वीकार करता है कि उसने दोनों उत्पाद ’’मूल कीमत से तीन गुना’’ से ज्यादा दाम पर बेचे, क्योंकि उस दिन मांग बढ़ गई थी। उसने दावा किया, ‘‘पांच अगस्त को हर आकार के झंडों की मांग थी। मैं तीन आकार के झंडे बेचता हूं। उस दिन सारे झंडे बिक गए। मैं सुबह आया और बेहद कम समय में लगभग 1,500 झंडे और 500 हैडबैंड बेच डाले।’’ 

यह भी जानें

सुमन 2018 से रोजी-रोटी के लिए झंडे बेच रहा है। ढाका में क्रिकेट मैच के दौरान भी उसकी अच्छी बिक्री होती है। वह मुस्कराते हुए कहता है, ‘‘लेकिन पांच अगस्त को मैंने क्रिकेट मैच के दिनों की तुलना में कहीं अधिक झंडे बेचे।’’ झंडे बेचने से पहले सुमन झंडे बनाने वाली एक फैक्टरी में काम करता था। हिंदी और बांग्ला भाषा जानने वाले सुमन ने एक सरकारी स्कूल से कक्षा आठ तक की पढ़ाई की और फिर परिवार के पालन-पोषण के लिए काम करने लगा। वह बताता है, ‘‘मैंने पहले बिजलीकर्मी के रूप में काम किया, लेकिन आय बहुत कम थी, इसलिए झंडा बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी शुरू कर दी।’’ (भाषा)

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