Highlights
- हसीना सरकार ने कई अरब डॉलर की बड़ी परियोजनाएं शुरू की हैं
- 12 अरब डॉलर की परमाणु परियोजना भी शामिल है
- उनके बेटे साजिब वाजिद सलाहकार के पद पर हैं
Bangladesh Crisis: कुछ साल पहले तक बांग्लादेश को एशिया और दुनिया के कई देशों के सामने तेजी से उभरता हुआ देश बनकर सामने आया था। IMF ने भी दावा किया था कि कुछ सालों में ही बांग्लादेश भारत को भी पिछे छोड़कर आगे निकल जाएगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2026 तक बांग्लादेश को एक विकासशील देशों के लिस्ट में सबसे आगे होगा लेकिन ऐसा क्या हुआ कि इस देश की तुलना अब श्रीलंका से की जा रही है।
कोविड-19 महामारी के दो साल बाद इस देश में हालात बदाल हो गए हैं। देश की मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी लोग अपने ही देश को लेकर तरह-तरह की बाते लिख रहे हैं। देश में मंहगाई अपने चरम पर है, दैनिक जीवन में प्रयोग करने वाले वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं हालांकि प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यालय से लेकर प्रमुख अर्थशास्त्री तक वे यह स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि बांग्लादेश की स्थिति भी श्रीलंका की तरह हो गई है।
सबकुछ ठीक तो डर क्यों?
हाल ही में ढाका में अमेरिकी राजदूत ने भी कहा था कि फिलहाल बांग्लादेश में स्थिति काफी सही यहां श्रीलंका जैसे हालात नहीं होने जा रहे हैं। इस राजदूत की बातों में दम है और इसके कई कारण हैं। अगर आप पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों की अर्थव्यवस्था को मिला दें तो बांग्लादेश की जीडीपी बनती है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 39 अरब डॉलर है, जो पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों के 18 अरब डॉलर के दोगुने से भी ज्यादा है। बांग्लादेश के वित्त मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि जीडीपी पर कुल खर्च 31 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है जबकि श्रीलंका पर 119 फीसदी तक कर्ज है। बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय भी भारत से अधिक है और यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। लेकिन इसके बाद भी देश के नागरिक क्यों डरे हुए हैं। इसका उत्तर यह है कि बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान तीनों देशों में शासन के प्रति समान दृष्टिकोण रखते हैं।
राजनीति में परिवारवाद की मिठास
जिस तरह से राजपक्षे परिवार ने श्रीलंका को बर्बाद करने में अहम योगदान रहा, इसी तरह से बांग्लादेश में हसीना परिवार सब कुछ खत्म करने पर आमादा है। 2009 में जब राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे और उनके भाई रक्षा मंत्री गोटबाया राजपक्षे सत्ता में आए, तो दशकों पुराना गृहयुद्ध अचानक समाप्त हो गया। इसी तरह बांग्लादेश की पीएम हसीना के पिता शेख मुजीबर रहमान ने भी एक युद्ध लड़ने के बाद एक नया देश बांग्लादेश का निर्माण किया। हसीना और राजपक्षे ने युद्ध के दौरान देशों में अपनी गहरी पकड़ बना ली। इसके साथ ही साथ दोनों परिवारों एक हाइपर राष्ट्रवाद की छाप छोड़ी जो देशवासियों के बीच अलग जगह बन गई। श्रीलंका में राजपक्षे ने सरकार में भाइयों से लेकर अपने भतीजों तक सरकार में अहम जगह दी। इसी तरह पीएम शेख हसीना ने भी सरकार में अपने परिवार के सदस्यों को भी अलग-अलग पदों पर काबिज कर दिया। प्रधानमंत्री के लगभग हर कार्यक्रम शेख हसीना की बेटी साइमा वाजेद नजर आती है जिसके कारण लोगों को लगता है कि शेख हसीना के बाद उनकी बेटी साइम वाजेद ही उत्तराधिकारी हो सकती है।
बेटा है बड़े पद पर
इसी तरह उनके बेटे साजिब वाजिद सलाहकार के पद पर हैं। वह वर्तमान में देश में डिजिटल परिवर्तन देख रहे हैं। हसीना की बहन रेहाना, भतीजे, भतीजी और उनके बच्चे महत्वपूर्ण पदों पर हैं। ये सभी न केवल राजनयिक पदों पर मौजूद हैं बल्कि सैन्य मामलों से लेकर संसदीय सदस्यता और व्यवसाय तक हर चीज में उनकी भागीदारी है। जानकारों के मुताबिक परिवार के सदस्यों का सरकारी और निजी व्यवस्था में इस तरह आना देश की व्यवस्था के लिए एक बुरा संकेत है। श्रीलंका में राजपक्षे परिवार पर गुस्सा अपने आप नहीं निकला और परिवारवाद ने देश के लोगों को परेशान किया था।
बांग्लादेश को मांगना पड़ा कर्ज
हसीना सरकार ने कई अरब डॉलर की बड़ी परियोजनाएं शुरू की हैं, जिसमें रूपपुर में 12 अरब डॉलर की परमाणु परियोजना भी शामिल है। इस समय देश में इसी तरह के और भी कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं। विश्व बैंक ने हाल ही में बने पदम ब्रिज को वित्तीय सहायता देने से इनकार कर दिया था। जब पुल आया तो इसकी लागत 1.2 अरब डॉलर थी। लेकिन 6 किलोमीटर लंबे इस पुल का काम 3.8 अरब डॉलर खर्च कर पूरा किया जा सका. पदम ब्रिज के खुलने के बाद देश की ओर से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक को कर्ज के लिए पत्र लिखे गए। कहीं न कहीं इन सब बातों से देश के लोगों को डर सता रहा है कि कहीं उनका देश श्रीलंका के रास्ते में तो नहीं आ गया है।
भारत में भी भाई-भतीजावाद की जड़े
आपने अक्सर सुना होगा कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस को लेकर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाते हैं। अगर एक मायने में देखा जाए तो अगर कांग्रेस इस कगार पर पहुंची है तो परिवारवाद ही देन है। आज कांग्रेस में कई में गुट बन गए है जो मुखर होकर परिवार के खिलाफ बोलते हैं। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद ने भी राहुल गांधी पर कई गंभीर आरोप लगाए। कई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की कर्ताधर्ता सोनिया गांधी को फर्क नहीं पड़ता है कि राहुल गांधी रणनीति क्या है यानी साफ जाहिर हो गया कि सोनिया गांधी पूत्र मोह में पार्टी को बर्बाद करने में लगी है।