नई दिल्ली। कंगाल पाकिस्तान दो वक्त की रोटी को मोहताज हो गया है। आर्थिक तबाही से पाकिस्तान में भूख और गरीबी तांडव दिखा रही है। इस बीच पाकिस्तान के लिए एक और बुरी खबर है। इसके बाद मौजूदा हालातों से उबर पाना पाकिस्तान के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने पाकिस्तान कई बड़ी शर्तें और लगा सकता है। इससे पाकिस्तान की हालत और भी खस्ता हो सकती है।
पाकिस्तान का घटता विदेशी मुद्रा भंडार, राष्ट्रव्यापी बिजली कटौती, सरकार द्वारा संचालित खाद्य वितरण केंद्रों पर अफरा-तफरी और भगदड़ ने उसके रुपये को सबसे गिरी स्थिति में पहुंचा दिया है। पाकिस्तानी रुपया में एक साल के अंदर आई भारी गिरावट ने उसे ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है, जहां से उसके लिये अंतरराष्ट्रीय कर्ज चुकाना बेहद मुश्किल हो गया है। गत एक वर्षों के दौरान पाकिस्तानी रुपये में करीब 50 प्रतिशत की भारी गिरावट देखी गई है। आज एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 260 पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच गई है। अब पाकिस्तान आइएमएफ से कर्ज के लिए नए दौर की वार्ता शुरू कर सकता है, लेकिन इसके लिए उसे नई शर्तों का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे में उसे कर्ज लौटा पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
गहरा सकता है भारी राजनीतिक संकट
अब पाकिस्तान की हालत यह हो गई है जो बड़े राजनीतिक संकट को जन्म दे सकती है। भारत के लिए जोखिम केवल क्षेत्र में बढ़ते चरमपंथ के साथ पाकिस्तान में अस्थिरता ही नहीं होगी, बल्कि अप्रत्याशित कार्रवाई भी होगी, जिसमें बाहरी दुश्मन पर ध्यान केंद्रित करके घरेलू जनता का ध्यान हटाने की कोशिशें शामिल हो सकती हैं। पाकिस्तान में भारत के पूर्व दूत रहे टीसीए राघवन के अनुसार आईएमएफ द्वारा धन जारी करने के लिए जिन शर्तों को लागू करने की संभावना है, वे निश्चित रूप से अल्पकालिक मुश्किलों का एक बड़ा कारण बन सकती हैं। पाकिस्तान को 7 बिलियन डॉलर के आईएमएफ ‘बेल-आउट’ (स्वतंत्रता के बाद से 23वां) पैकेज के वितरण को पिछले नवंबर में रोक दिया गया था, क्योंकि आइएमएफ ने माना था कि पाकिस्तान ने अर्थवस्था को सही आकार देने के लिए राजकोषीय और आर्थिक सुधारों की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।
पांच अरब डॉलर से नीचे गिरा पाकिस्तानी विदेशी मुद्रा भंडार
लगातार गहराते आर्थिक संकट के बीच पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 4.34 अरब डॉलर हो गया है, जो कि एक साल पहले के 16.6 अरब डॉलर था। वहीं पाकिस्तान का दीर्घावधि कर्ज बढ़कर 274 अरब डॉलर हो गया है, जिसमें इस तिमाही में करीब 8 अरब डॉलर का पुनर्भुगतान किया जाना भी बाकी है। पाकिस्तान की निर्भरता गेहूं और तेल के आयात पर है। इस दौरान मुद्रास्फीति 24 प्रतिशत तक बढ़ गई है। चीनी फर्मों समेत विदेशी निवेशक जिन्होंने आर्थिक गलियारे में कारखाने स्थापित करने में रुचि दिखाई थी वे भी एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों को देखते हुए अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं। इससे पाकिस्तान का भविष्य और अधिक अंधकारमय होता जा रहा है।