Highlights
- रूस के प्रति भारत के झुकाव से अमेरिका को हो रही दिक्कत
- दो ध्रुवों में बंट चुकी दुनिया के बीच भारत बना ग्लोबल लीडर
- अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देश और रूसी नेतृत्व वाले देशों को भी है भारत की सख्त जरूरत
US Defense Aid to Pakistan: जिस अमेरिका ने पाकिस्तान को कुछ वर्ष पहले दो अरब डॉलर की रक्षा सहायता देने से साफ इंकार कर दिया था, जिस अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाक को साफ शब्दों में कह दिया था कि वह आतंकवादी संगठनों तालिबान और हक्कानी नेटवर्क पर कार्रवाई करने में पूरी तरह विफल रहा है और जिस अमेरिका को पाकिस्तान अब फूटी आंख नहीं सुहाता था... अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि आज उसी देश के राष्ट्रपति ने पाक को F-16 फाइटर जेट विमानों के रखरखाव के लिए 45 करोड़ डॉलर की बड़ी सहायता दे डाली? ... क्या अमेरिका ऐसा करके भारत पर कोई दबाव बनाना चाह रहा है, क्या अमेरिका अब किसी बात को लेकर हमारे देश से चिढ़ गया है?... अगर इसका जवाब हां है तो अब भारत और अमेरिका के बीच आगे का रिश्ता क्या होगा...? इसका ज्यादा नुकसान भारत को होगा या स्वयं अमेरिका को ?... इंडिया टीवी आपको अमेरिका की इस रणनीति के पीछे की पूरी वजह बताएगा। मगर आइए सबसे पहले आपको हम बताते हैं कि अमेरिका ने पाकिस्तान को 45 करोड़ डॉलर देने के बाद क्या कहा....?
पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिकी से बड़ा स्वार्थी देश शायद ही कोई हो। वह कभी भारत से अपनी नजदीकियां बढ़ाता है तो कभी पाकिस्तान को दिल खोलकर फंडिंग करता है। कभी ताइवान को उकसाता है तो कभी यूक्रेन को रूस के खिलाफ भड़काता है और कभी पाकिस्तान में भारत के प्रति आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उसकी मदद भी करता है। मगर वही अमेरिका कभी पाकिस्तान को आतंकवाद में नरमी लाने की बात कहकर भारत को झूठा दिलासा भी देता है। मगर अमेरिका करता कुछ और है तो दिखाता कुछ और है। अगर वह दिखाता कुछ और है तो करता कुछ और है।
देश के जाने माने रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल मेस्टन के हवाले आपको अमेरिका की इस रणनीति की पूरी कहानी बताते हैं, जिससे आपके मन में उठ रहे हर सवाल की जिज्ञासा शांत हो जाएगी। मेजर जनरल मेस्टन भारत-चीन बॉर्डर पर डीजीएमओ के तहत मिलिट्री ऑपरेशन डायरेक्ट्रेट ब्रिगेडियर भी रहे जो चीन के खिलाफ होने वाले ऑपरेशन को कमांड करते थे। जिन्होंने एलएसी और एलओसी पर चीन-पाकिस्तान की गतिविधियों को करीब से देखा तो है ही। साथ ही पूरी दुनिया की स्ट्रैटजी को बारीकी से समझा भी है। वह पाकिस्तान को 45 करोड़ डॉलर दिए जाने की तीन मुख्य वजहें बताते हैं---
पाकिस्तान को अमेरिकी सहायता की तीन प्रमुख वजहें
पहली प्रमुख वजह
मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि जब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे तो उन्हें कई मामलों में ट्रंप और बाइडन दोनों ने ही चुप करा दिया था। इस बीच इमरान चीन के साथ अधिक क्लोज हो गए थे। इतना ही नहीं जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला किया उस दिन इमरान खान रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन के साथ मीटिंग कर रहे थे। इमरान की कोशिश रूस के साथ भी नजदीकी बढ़ाने की थी। मगर यह बात अमेरिका यानि जो बाइडन को पसंद नहीं आई थी। जब पाकिस्तान में सरकार बदली तो जो बाइडन को लगा कि ये पाक सरकार प्रो-अमेरिका (अमेरिका के पक्ष में) रहेगी। इसकी वजह भी है कि पाकिस्तान आर्मी का बेस पूरा अमेरिका द्वारा ही है। पहले तो पाकिस्तानी आर्मी की ट्रेनिंग भी अमेरिका ही करवाता था। फंडिंग और हथियार भी पाकिस्तान को अमेरिका ही उपलब्ध करवाता है।
इसलिए पाकिस्तान आर्मी भी चाहेगी कि वह ज्यादा प्राथमिकता अमेरिका को दे। क्योंकि चीन तो पाकिस्तान को बहुत कुछ देने वाला है नहीं। चीन पाक की जो कुछ भी मदद करेगा वो भी अपने हित में करेगा। चीन सिर्फ इंडिया पर प्रेशर प्वाइंट बनाने के लिए पाक की मदद करता है। उनका संदेश यह देने की कोशिश होती है कि कल को चलकर इंडिया से लड़ाई हुई तो पाक-चीन एक हो जाएंगे। मगर पाकिस्तान का झुकाव अमेरिका प्रति ज्यादा इसलिए होता है कि वहां से उन्हें अत्याधुनिक हथियार और फंडिंग दोनों मिलती है। इसीलिए लगता है कि पाकिस्तान में सरकार बदलने पर अमेरिका का नजरिया भी उसके प्रति बदला है। इसीलिए बाइडन ने ट्रंप के फैसले को पलटते हुए पाकिस्तान को यह 45 करोड़ डॉलर की मदद मुहैया कराई है। वह पाकिस्तान से इसके बदले काफी कुछ फायदा ले भी चुके हैं। आगे भी इरादा रखते हैं।
दूसरी प्रमुख वजह
मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि अभी अफगानिस्तान में तालिबान का शासन है। अमेरिका का मुख्य मकसद वहां अलकायदा को खतम करना था। क्योंकि अलकायदा ने ही उनके यहां 9/11 कराया था। तालिबान से उन्हें इतनी दिक्कत नहीं। इसीलिए अमेरिका और तालिबान के बीच कतर में शांति वार्ता भी हुई थी। पूर्व में पाकिस्तान की आर्मी और तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ भी अमेरिका और तालिबान के बीच होने वाली शांति वार्ता को मैनेज कर रहे थे। अमेरिका के सामने तालिबान को डायलाग में पाकिस्तान ही लेकर आया था। क्योंकि पाकिस्तान तालिबान का समर्थक है। अमेरिका यह भी जानता है कि तालिबान को सिर्फ पाकिस्तान ही कंट्रोल कर सकता है। अगर तालिबान को खतम भी करना तो भी उसके लिए यह काम पाकिस्तान ही कर सकता है।
पाकिस्तान की मदद से अमेरिका ने अलजवाहिरी को मारा
अमेरिका ने अफगानिस्तान में अलजवाहिरी को मारा। जो कि अलकायदा का चीफ कमांडर था। यानि अमेरिका में 9/11 जैसी बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम देने वाले आतंकी संगठन का मुखिया। अमेरिका ने जिस ड्रोन से जवाहरी को निशाना बनाया उसने पाकिस्तान से ही उड़ान भरी थी। अगर पाकिस्तान ने अमेरिका को यह एयरस्पेस नहीं दिया होता तो शायद अमेरिका अलजवाहिरी को टार्गेट नहीं कर पाता। मेजर जनरल कहते हैं कि अलजवाहिरी के बारे में इंटेलिजेंस भी अमेरिका को पाकिस्तान ने ही 200 फीसद दिया होगा। ताकि वह अमेरिका के गुड बुक में फिर से आ जाए। इसलिए अब अमेरिका फिर से पाक पर मेहरबान होने लगा है।
तीसरी प्रमुख वजह
मेजर जनरल मेस्टन के अनुसार पूरे विश्व में आज जो सुरक्षा के नये आयाम गढ़े जा रहे हैं। उसकी प्रमुख कई प्रमुख वजहें हैं। इसमें रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा तालिबान, ताइवान-चीन का मुद्दा और चीन जो भारतीय सीमा में पिछले दो-तीन साल से हरकतें कर रहा है। इन सबके मद्देनजर विश्व फिर दो ध्रुवों में बंट चुका है। इसमें से एक वेस्टर्न ब्लॉक है। यानि जिसमें पश्चिमी देश शामिल हैं। इसमें नाटो देशों के अलावा अन्य बहुत से देश आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हो गए हैं जो कि यूरोप क्षेत्र में आते भी नहीं। वेस्टर्न ब्लॉक को अमेरिका लीड कर रहा है। वहीं दूसरा ब्लॉक वह है जो रूस द्वारा लीड किया जा रहा है। इसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से चीन शामिल है। प्रत्यक्ष तौर पर नार्थ कोरिया, ईरान, सीरिया जैसे देश भी शामिल हैं।
भारत गुट निर्पेक्ष की भूमिका में
वह कहते हैं कि मगर इंडिया अभी तक किसी ब्लॉक में नहीं है। वह गुट निर्पेक्ष है। इसकी वजह भी है कि आज के समय में भारत कोई छोटा देश नहीं है, बल्कि वह मेजर ग्लोबल प्लेयर की भूमिका में है। इंडिया की स्ट्रैटजिक वैल्यू भी बहुत इसक वक्त बहुत ही अव्वल दर्जे की है। इसलिए भारत को अमेरिका और रूस दोनों ही अपने-अपने खेमे में रखना चाहते हैं। भारत इस समय खुद को इस मामले में बहुत संतुलित करके चल रहा है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत ने रूस को यूक्रेन से युद्ध मामले में सपोर्ट भी नहीं किया, लेकिन उससे तेल व गैस अमेरिका और पश्चिमी देशों के विरोध के बावजूद ले रहा रहा है। इसका मतलब है कि हम रूस का विरोध भी नहीं कर रहे। तेल और गैस हमारी ऊर्जा जरूरत भी है। रूस से सस्ता ईंधन मिलने से देश को फायदा भी है। वहीं दूसरी तरफ हम पश्चिमी देशों के साथ भी जुड़े हैं और चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) के साथ भी कर रहे हैं।
पश्चिम को अपने पक्ष में रखना भी भारत की कूटनीति का हिस्सा
इस दौरान वेस्टर्न ब्लॉक को भी भारत ने अपने साथ जोड़ रखा है। यह उसकी उच्च कूटनीति का हिस्सा है। क्योंकि यदि भारत पश्चिम को अपने साथ लेकर नहीं चलता तो इधर चीन बिल्कुल इंडिया के खिलाफ हो जाएगा। फिर इसमें वेस्टर्न ब्लॉक हमारी कोई मदद नहीं करेगा। इस मदद का मतलब सैन्य सहायता से नहीं लगाइये, बल्कि यह एक स्ट्रैटजी होती है कि कौन देश किसके साथ अपना झुकाव दर्शा रहा है। इससे अगले देश पर प्रेशर पड़ता है। इस दौरान भारत का रोल काफी क्रिटिकल है। अभी दो दिन पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन की ईस्ट एशिया फोरम समिट हुई। उसमें हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी वर्चुअल रूप से जुड़े थे। उसमें उन्होंने बोला कि रूस से हम तेल और गैस लेते रहेंगे। जाहिर है यह बात पश्चिमी ब्लॉक और उसके लीडर अमेरिका को पसंद नहीं आ रही। मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि मुझे लगता है कि अब अमेरिका को लग रहा है कि इंडिया का थोड़ा झुकाव उनकी (रूस की) तरफ जा रहा। भारत अपनी कूटनीति के तहत ही इस दौरान जापान के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता कर रहा है।
चीन पर सिर्फ रूस बना सकता है दबाव
रूस भारत का पुराना और ताकतवर मित्र है। इसलिए भारत और रूस दोनों ही एक दूसरे को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते। मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि हमारे लिए प्रिक प्वाइंट चीन है। जो कि बड़ा टेंशन है। चीन को सिर्फ रूस कंट्रोल कर सकता है। हमें लगता है कि अब रूस ने चीन को बोला होगा कि इंडिया के साथ अपनी गतिविधियां कम करो। ताइवान पर जो कर रहे हो उससे हमें ज्यादा तलब नहीं है। लग रहा है कि भारत-चीन बॉर्डर पर से आर्मी की तादाद कम करके दोनों देश इसीलिए तनाव दूर करने की कोशिश कर रहे होंगे। इस कड़ी में मोदी-जिनपिंग की अगले कुछ दिनों में मुलाकात भी हो जाए तो इससे किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि रूस ये सब मैनेज कर रहा होगा। इंडिया के सामने इस दौरान दो प्रमुख मुद्दे हैं। एक चाइनीज मिलिट्री थ्रेट और दूसरी भारत की एनर्जी नीड। एनर्जी नीड में रूस से फायदा मिल रहा है। दूसरे में अगर चीन भारतीय सीमा पर कुछ न करे तो हमारा देश चिंतामुक्त रह सकता है। इसके लिए चीन को रूस ही मैनेज कर सकता है। ऐसे में अब वेस्ट यानि अमेरिका को दिक्कत हो रही है। अमेरिका को लगता है कि भारत के लिए पाकिस्तान भी टेंशन है। इसलिए अब वह पाक को सपोर्ट कर रहा। ताकि इंडिया पर प्रेशर बने कि आप उधर(रूस की तरफ) ज्यादा झुके तो हम पाकिस्तान को सपोर्ट करेंगे।
अमेरिका को भारत से क्या चाहिए
भारत और रूस को तो हमेशा से एक दूसरे की जरूरत रही है। इसीलिए भारत यूक्रेन-रूस युद्ध मामले में हमेशा डिप्लोमैटिक ही बोला है कि डायलॉग और डिप्लोमेसी से इश्यू रिजॉल्व हो। मगर इधर अमेरिका को पाकिस्तान व चीन से भारत को होने वाली मुश्किल को लेकर कोई चिंता नहीं है। उसे तो ताइवान को लेकर चिंता है। इसमें हर हाल में अमेरिका को भारत का साथ चाहिए। क्योंकि चीन-ताइवान में कुछ हुआ तो भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो चीन को परेशान कर सकता है। इसकी वजह है कि चीन की बड़ी लंबी सीमा भारत से लगती है। भारत चीनी सीमा क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा देगा। ऐसे में चीन अपने ज्यादातर सैनिकों को हटाकर ताइवान के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। यानि भारत चीन के लिए बड़ा प्रेशर प्वाइंट बन जाएगा।
इसलिए अमेरिका को ताइवान मामले में भारत का साथ चाहिए। इधर यूक्रेन मामले में भी अमेरिका भारत का साथ चाहता है। क्योंकि वह जानता है कि यदि भारत पूरी तरह रूस के साथ हो लिया तो इससे वेस्टर्न ब्लॉक कमजोर हो जाएगा। भारत की मौजूदा ताकत का अंदाजा इस वक्त पूरे विश्व को है। अमेरिका इसीलिए पाकिस्तान को सपोर्ट करके भारत को यह एहसास कराना चाहता है कि वह रूस की तरफ अधिक नहीं झुके। जबकि यह बात साफ है कि पाकिस्तान को किसी भी तरह की रक्षा सहायता देने का मतलब आतंवाद को बढ़ावा देना है।