Highlights
- अल-जवाहिरी अफगानिस्तान में मारा गया
- भारत के खिलाफ जारी करता था वीडियो
- भारतीय युवाओं को भड़काने की कोशिश की
Al Zawahiri Killed: अल-कायदा का खूंखार आतंकी अल-जवाहिरी बीते दो दशक से खुफिया और आतंक रोधी एजेंसियों के निशाने पर था। उसकी मौत आतंक के खिलाफ दुनिया की लड़ाई के लिए जरूरी थी। जवाहिरी का मरना न केवल अमेरिका के लिए भारत के लिए भी बेहद जरूरी था। इसके पीछे कम से कम चार कारण हैं। ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अल-कायदा का इंचार्ज बना जवाहिरी लंबे वक्त से वीडियो जारी कर दुनिया को धमका रहा था। उसने भारत के हिजाब विवाद पर भी वीडियो जारी किया था और मुसलमानों को भड़काते हुए "बौद्धिक रूप से, मीडिया का उपयोग करके और युद्ध के मैदान में हथियारों के साथ" इस्लाम पर कथित हमले से लड़ने के लिए कहा था।
पहला कारण- इस साल अप्रैल में सामने आया अल-जवाहिरी का वीडियो और भारतीय खुफिया एजेंसी हुईं चिंतित
उसके इस वीडियो के बाद से ये साफ हो गया कि वह जिंदा है और भारत के मुद्दों पर नजर रखे हुए है। इसके साथ ही जवाहिरी ने भारतीय छात्रा मुस्कान खान की तारीफ की थी। उसने कहा कि दक्षिणपंथी विचारधारा वाले हिंदू पुरुषों की भीड़ जब उसे परेशान कर रही थी, तो उसने उन्हें जवाब देकर "जिहाद की भावना को बढ़ाया" है। उसने मुस्कान की तारीफ करते हुए एक कविता तक लिख डाली। वीडियो में जवाहिरी बोला, 'उसकी तकबीर (अल्लाहु अकबर) ने मुझे कविता की कुछ पंक्तियां लिखने के लिए प्रेरित किया है। बावजूद कि मैं कवि नहीं हूं। मुझे आशा है कि हमारी आदरणीय बहन मेरी ओर से शब्दों के इस उपहार को स्वीकार करेगी।' हालांकि ये बात बोलते हुए अल-जवाहिरी ने किसी घटना का जिक्र नहीं किया था।
दूसरा कारण- वीडियो को भारतीय मुस्लिम युवाओं की भर्ती की कोशिश का हिस्सा माना गया
अल-कायदा दुनियाभर में कमजोर हो रहा है और उसके क्षेत्रीय ग्रुप या कहें ब्रांच, आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने में असमर्थ हैं। इस वीडियो को भारतीय मुस्लिमों को भड़काने वाला माना गया था। जो कभी भी वैश्विक जिहादी परियोजना में भागीदार नहीं रहे हैं। उसने वीडियो में कहा, 'हमें भारत के हिंदू लोकतंत्र की मृगतृष्णा के बहकावे में नहीं आना चाहिए, जो शुरू से ही इस्लाम पर अत्याचार करने के लिए एक उपकरण से ज्यादा और कुछ नहीं है। हमें यह महसूस करना चाहिए कि इस वास्तविक दुनिया में 'मानवाधिकार' या 'संविधान के प्रति सम्मान' या कानून या ऐसे अन्य निरर्थक विषयों जैसी कोई चीज नहीं है।'
तीसरा कारण- जवाहिरी की काबुल की मौत ने अल-कायदा और नए तालिबानी शासन के संबंधों की पुष्टि की
इस साल जून महीने में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था, 'अल कायदा अफगानिस्तान के नए शासन में खूब आजादी का लाभ उठा रहा है। लेकिन उसकी संचालन की क्षमता सीमित है। उसकी क्षमता की कमी और तालिबान के संयम बरते जाने के चलते अगले एक या दो साल में अफगानिस्तान के बाहर हमले करने या सीधे हमले करने की संभावना नहीं है। आगे बढ़ते हुए, अल-कायदा अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र दिखाई पड़ता है। वह अंतरराष्ट्रीय हमलों और अन्य हाई प्रोफाइल गतिविधि को अंजाम दे सकता है, जो तालिबान को शर्मिंदा कर सकती हैं।'
यूएन की रिपोर्ट में बताया गया कि आतंकी संगठन अल-कायदा के पास 180 से 400 लड़ाके होने की सूचना है। उससे दुनिया के बहुत से देशों के नागरिक भी जुड़े हैं। इनमें बांग्लादेश, भारत, म्यांमार और पाकिस्तान के नागरिक शामिल हैं। जो गजनी, हेलमंद, कांधार, निमरूज, पक्तिका और जाबुल प्रांत में हैं।
चौथा कारण- भारत को तालिबान के साथ रिश्ते में बरतनी चाहिए सवाधानी
अमेरिका के अफगानिस्तान से जाते ही भारत की इस देश तक पहुंच कम हो गई थी। बीते साल अगस्त महीने में यहां तालिबान का कब्जा हुआ था। हालांकि बाद में भारत ने अफगानिस्तान को लेकर क्षेत्रीय बैठकें कीं और इस देश को मानवीय सहायता भी पहुंचाई। जिसके बाद तालिबान शासन में भी भारत ने इस देश तक अपनी पहुंच पहले की तरह बना ली। लेकिन अब अल-जवाहिरी की मौत से साबित हो गया है कि अफगानिस्तान में आतंकी संगठन लगतार संचालित हो रहे हैं।
भारत को अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देने के साथ ही आतंकी गतिविधियों पर भी अपनी नजर बनाकर रखनी होगी, जिनका मकसद अफगानिस्तान की धरती से भारत को निशाने पर लेना है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि जब से तालिबान ने दोबारा अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, तभी से भारत को निशाने बनाने वाले पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद अफगानिस्तान के तालिबान के नियंत्रण वाले हिस्सों में मौजूद हैं। यहां ये संगठन आतंकी कैंप चला रहे हैं और इनके तालिबान के साथ गहरे रिश्ते हैं।