Friday, November 22, 2024
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US China Taiwan: चीन को लगातार गुस्सा दिलाने की कोशिश में अमेरिका, एक और प्रतिनिधिमंडल पहुंचा ताइवान

US China Taiwan: फ्लोरिडा से डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य स्टेफनी मर्फी की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल ने ताइवान की राष्ट्रपति से मुलाकात की है। चीन के सैन्य खतरों का जिक्र करते हुए साई ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल की यात्रा ‘ताइवान के प्रति अमेरिकी कांग्रेस के अडिग समर्थन को दर्शाती है।’

Written By: Shilpa
Updated on: September 08, 2022 18:21 IST
US Delegation in Taiwan- India TV Hindi
Image Source : PTI US Delegation in Taiwan

Highlights

  • अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ताइवान पहुंचा है
  • चीन के साथ तनाव के बीच पहुंचे अधिकारी
  • लगातार इन दौरों का विरोध कर रहा है चीन

US China Taiwan: अमेरिकी कांग्रेस का एक और प्रतिनिधिमंडल ताइवान पहुंचा है और उसने ताइवान की राष्ट्रपति साई इन वेंग से गुरुवार सुबह मुलाकात की। अमेरिका और ताइवान के नेताओं के बीच यह मुलाकात ऐसे वक्त में हो रही है, जब चीन के साथ दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण हैं। चीन पूरे ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। इससे पहले अमेरिकी प्रतिनिधिसभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी अगस्त में ताइवान की यात्रा पर आई थीं, हालांकि चीन ने इस यात्रा का काफी विरोध किया था और उसने अपने सैन्य अभ्यास को तेज करते हुए लगभग रोज ही ताइवान की ओर लड़ाकू विमान, ड्रोन आदि भेजे थे।

फ्लोरिडा से डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य स्टेफनी मर्फी की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल ने ताइवान की राष्ट्रपति से मुलाकात की है। चीन के सैन्य खतरों का जिक्र करते हुए साई ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल की यात्रा ‘ताइवान के प्रति अमेरिकी कांग्रेस के अडिग समर्थन को दर्शाती है।’ उन्होंने कहा, ‘ताइवान दबाव में नहीं आएगा। हम हमारे लोकतांत्रित प्रतिष्ठानों और जीवन जीने के तरीकों की रक्षा करेंगे। ताइवान पीछे नहीं हटेगा।’ इस पर मर्फी ने कहा कि संसद को ‘अंतराष्ट्रीय संगठनों में ताइवान की वृहद भागीदारी की वकालत करनी चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘ताइवान ने दिखाया है कि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक जिम्मेदार सदस्य है, खासतौर पर जन स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर। वह अंतरराष्ट्रीयों मंचों पर भागीदारी का हकदार है।’ गौरतलब है कि मर्फी उन सांसदों में शामिल हैं, जिन्होंने वह विधेयक पेश किया है जिसके तहत अमेरिका ताइवान की मदद करने के लिए उसे हथियार दे सकता है, ठीक उसी प्रकार से जैसे उसने यूक्रेन को हथियार दिए हैं। पिछले सप्ताह राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने ताइवान को एक अरब डॉलर की हथियार ब्रिकी की मंजूरी दी थी। इस पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने बुधवार को कहा कि वाशिंगटन और ताइपे के बीच रक्षा सहयोग को लेकर चीन की आपत्ति ‘स्पष्ट’ है। 

क्या है चीन और ताइवान का इतिहास 

ताइवान दक्षिण-पूर्वी चीन के तट से लगभग 160 किमी दूर एक द्वीप है, जो फूजौ, क्वानझोउ और जियामेन के चीनी शहरों के सामने है। यहां शाही किंग राजवंश का शासन चलता था, लेकिन इसका नियंत्रण 1895 में जापानियों के पास चला गया। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, ये द्वीप वापस चीनी हाथों में चला गया। माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों द्वारा मुख्य भूमि चीन में गृह युद्ध जीतने के बाद, राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग पार्टी के नेता च्यांग काई-शेक 1949 में ताइवान भाग गए। च्यांग काई-शेक ने द्वीप पर चीनी गणराज्य की सरकार की स्थापना की और 1975 तक राष्ट्रपति बने रहे।

चीन ने कभी भी ताइवान के अस्तित्व को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है। उसका तर्क है कि यह हमेशा एक चीनी प्रांत था। ताइवान का कहना है कि आधुनिक चीनी राज्य 1911 की क्रांति के बाद ही बना था, और यह उस राज्य या चीन के जनवादी गणराज्य का हिस्सा नहीं है, जो कम्युनिस्ट क्रांति के बाद स्थापित हुआ था। दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव जारी है। आपको बता दें चीन और ताइवान के आर्थिक संबंध भी रहे हैं। ताइवान के कई प्रवासी चीन में काम करते हैं और चीन ने ताइवान में निवेश किया है।

अमेरिका और दुनिया ताइवान को कैसे देखती है?

संयुक्त राष्ट्र ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देता है। दुनिया भर में केवल 13 देश- मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिकी, कैरिबियन, द्वीपीय और वेटिकन इसे मान्यता देते हैं। वहीं अमेरिका की चीन से बढ़ती दुश्मनी के चलते उसकी नीति स्पष्ट नहीं लग रही है। जून में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि अगर चीन ताइवान पर कब्जा करेगा, तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगी। लेकिन इसके ठीक बाद में बाइडेन के बयान पर सफाई देते हुए अमेरिका ने कहा कि वह ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता है। अमेरिका का ताइपे के साथ कोई औपचारिक संबंध नहीं है, फिर भी वह उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन देता है और हथियारों की आपूर्ति करता है।

साल 1997 में रिपब्लिकन पार्टी के तत्कालीन हाउस स्पीकर न्यूट गिंगरिच ने ताइवान का दौरा किया था। तब भी चीन ने ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी, जैसी वो अभी दे रहा है। चीन के नेताओं के साथ अपनी बैठकों का जिक्र करते हुए गिंगरिच ने कहा था, "हम चाहते हैं कि आप समझें, हम ताइवान की रक्षा करेंगे।" लेकिन उसके बाद स्थिति बदल गई। चीन आज विश्व राजनीति में बहुत मजबूत शक्ति बन गया है। चीनी सरकार ने 2005 में एक कानून पारित किया था, जिसमें कहा गया कि अगर ताइवान अलग होने की बात करता है, तो उसे सैन्य कार्रवाई से मुख्य भूमि में शामिल किया जा सकता है। 

ताइवान की सरकार ने हाल के वर्षों में कहा है कि केवल द्वीप के 23 मिलियन लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है और हमला होने पर वह अपनी रक्षा करेगा। 2016 से, ताइवान ने एक ऐसी पार्टी को चुना है, जो ताइवान की स्वतंत्रता की वकालत करती है।

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