नई दिल्ली: वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित गलवान और तवांग में भारतीय सेना के साथ हिंसक झड़प के बावजूद चीन चुप नहीं बैठा है। भारत के खिलाफ साजिश रचने के लिए चीन ने अब म्यांमार के कोको द्वीप समूह को नया अड्डा बनाया है। हाल ही में जारी हुई सैटेलाइट तस्वीरों में चीन की इस चाल का भंडाफोड़ हो गया है। इन सैटेलाइट तस्वीरों ने एक बार फिर से म्यांमार के कोको द्वीप समूह पर चीनी 'जासूस आधार' स्थापित करने के संदेह को ताजा कर दिया है।
म्यांमार-नियंत्रित कोको द्वीप समूह पर हाल ही में सैन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण को देखा है, जो चीन सरकार द्वारा भारत के खिलाफ रणनीतिक रूप से इसके इस्तेमाल किए जाने के संदेह को कायम रखता है। इसी साल जनवरी में मैक्सर टेक्नोलॉजीज द्वारा ली गई सेटेलाइट तस्वीरें ग्रेट कोको द्वीप क्षेत्र में नए विकास का खुलासा करती हैं, जहां केंद्र में दो नए हैंगर और उत्तर में कुछ नई इमारतें बनाई गई हैं। साथ ही चीन की नौसैनिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए यहां एक बड़े घाट का निर्माण भी किया गया है।
भारत के खिलाफ इस्तेमाल के उद्देश्य से रनवे की बढ़ाई गई लंबाई
चीन की साजिश का अंदाजा इस बात से भी लाया जा सकता है कि कोको द्वीप समूह पर स्थित एयरबेस की लंबाई को 1300 मीटर से बढ़ाकर 2300 मीटर कर दिया गया है। लंदन स्थित थिंक टैंक चैथम हाउस ने भी भारत के खिलाफ की जाने वाली इस संदेहजनक साजिश का खुलासा किया है। भू-राजनीतिक विशेषज्ञों द्वारा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि म्यांमार जुंटा, जिसे आम बोलचाल की भाषा में तत्माडॉ कहा जाता है, अपने गुप्त समुद्री निगरानी अभियानों के लिए इन द्वीपों को तैयार कर रहा है, जो अक्सर चीन के साथ मिलीभगत से होता है।
म्यांमार में तख्तापलट के बाद सक्रिय हुआ चीन
म्यांमार में सेना द्वारा ताख्तपाल्ट कर दिए जाने के बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर जुंटा की निर्भरता बढ़ गई है। यह भी भारत के लिए चिंता का कारण है। हालांकि म्यांमार की सत्ता हासिल करने के बाद सेना के संबंध बीजिंग के साथ उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। इसके बावजूद चीन ने मदद के नाम पर म्यांमार को मुरीद बना रहा है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट ने अपने निष्कर्षों में म्यांमार के घनी आबादी वाले शहरों के भीतर चीनी संस्थाओं द्वारा निर्मित निगरानी कैमरों की स्थापना में तेजी से वृद्धि देखी है जो जन आंदोलनों को ट्रैक करने के लिए है। इसलिए भी दोनों देशों के बीच वर्तमान यथास्थिति उन अनुमानों को और बल दे रही है जो बनाए जा रहे हैं।
PLA बढ़ा रहा दायरा
कोको द्वीप समूह में एक गुप्त उपस्थिति प्राप्त करने से PLA (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) को एक रणनीतिक बढ़त मिलेगी, क्योंकि यह द्वीप समूह महत्वपूर्ण हिंद महासागर समुद्री लेन तक पर्याप्त पहुंच प्रदान कर सकता है और मलक्का जलडमरूमध्य को दरकिनार कर सकता है। चीन ने म्यांमार की ओर से पारस्परिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे के माध्यम से देश में बड़े पैमाने पर निवेश भी किया है।
कोकोद्वीप पर बनी 200 इमारतें
सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि कोको द्वीप समूह पर करीब 200 इमारतों का निर्माण किया गया है जो सैन्य कर्मियों और द्वीप पर रहने वाले लोगों के लिए हैं। इस रणनीतिक द्वीप पर चीन की संदिग्ध उपस्थिति का विषय कोई नया नहीं है। रिपोर्टों से पता चलता है कि 1990 के दशक की शुरुआत में भी, चीन द्वारा सैन्य और नौसैनिक उद्देश्यों के लिए उन द्वीपों का उपयोग करने का प्रयास किया गया था, जिसका भारत ने म्यांमार से 2009 में विरोध भी दर्ज कराया था। मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के 2014 के एक पेपर में कहा गया है कि "अंडमान सागर में कम से कम मनौंग, हिंगगी, ज़ादेत्की और म्यांमार में कोको द्वीप समूह में चीनी निर्मित SIGINT श्रवण केंद्रों की जानकारी मिली है। चीनी तकनीशियनों और प्रशिक्षकों ने यांगून, मौलमीन और मेरगुई के पास नौसेना के ठिकानों और सुविधाओं में इजाफे के लिए रडार प्रतिष्ठानों पर भी काम किया है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के नजदीक है कोको
भारत की चिंता ऐसे ही बढ़ जाती है कि कोको द्वीप समूह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के काफी नजदीक है। इसकी दूरी महज 50 से 55 किलोमीटर है और यहां पर चीनी रडार समेत टोही गतिविधियां यहां स्थित भारतीय त्रि-सेवा कमान समेत अन्य महत्वपूर्ण सैन्य स्थानों की चीन द्वारा संभावित निगरानी के खतरे को भी बढ़ाती हैं। अब इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मुखरता के साथ भारत भी अपनी समुद्री और निगरानी क्षमताओं को मजबूत करने पर विचार कर रहा है।