Highlights
- अफगानिस्तान में तालिबान को एक साल पूरा
- लड़कियों को अब भी नहीं मिल रही है शिक्षा
- तालिबान राज में अंधकार में लड़कियों का भविष्य
Taliban One Year: अफगानिस्तान में अधिकतर किशोरियों को कक्षा में कदम रखे हुए एक साल हो गया है। ऐसे कोई संकेत भी नहीं हैं कि सत्ता पर काबिज तालिबान उन्हें वापस स्कूल जाने देगा। महिलाओं की एक पीढ़ी शिक्षा से वंचित ना रह जाए, इसके लिए कुछ युवतियां अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं। काबुल के एक घर में, सोदाबा नाजंद द्वारा स्थापित एक अनौपचारिक स्कूल में कक्षाओं के लिए दर्जनों युवतियां हाल के दिनों में एकत्रित हो रही हैं। नाजंद और उसकी बहन उन लड़कियों को अंग्रेजी, विज्ञान और गणित पढ़ाती हैं जिनकी पढ़ाई माध्यमिक विद्यालय में होनी चाहिए। नाजंद ने कहा, ‘जब तालिबान महिलाओं से शिक्षा के अधिकार और काम के अधिकार छीनना चाहता है, तो मैं इन लड़कियों को पढ़ाकर उनके फैसले के खिलाफ खड़ा होना चाहती हूं।’
एक साल पहले देश में तालिबान के सत्ता में आने और लड़कियों को छठी कक्षा के बाद अपनी शिक्षा जारी रखने से प्रतिबंधित करने के बाद से यहां कई भूमिगत स्कूल संचालित किए जा रहे हैं। हालांकि, तालिबान ने महिलाओं को विश्वविद्यालयों में कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दे दी लेकिन यह अपवाद अप्रासंगिक हो गया है जब उच्च विद्यालयों से लड़कियां पढ़ाई ही नहीं कर पा रहीं हैं। नाजंद ने कहा, ‘इस अंतर की भरपाई करना संभव नहीं है और यह स्थिति बहुत निरशाजनक और चिंताजनक है।’ राहत एजेंसी ‘सेव द चिल्ड्रन’ ने शिक्षा प्रतिबंधों के प्रभाव का आकलन करने के लिए सात प्रांतों में 9 से 17 वर्ष की आयु के लगभग 1,700 लड़कों और लड़कियों का साक्षात्कार लिया। मई और जून में किए गए और बुधवार को जारी किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि 20 प्रतिशत लड़कों की तुलना में 45 प्रतिशत से अधिक लड़कियां स्कूल नहीं जा रही हैं।
26 फीसदी लड़कियों को अवसाद
यह भी पाया गया कि 16 प्रतिशत लड़कों की तुलना में 26 प्रतिशत लड़कियों में अवसाद के लक्षण दिखे हैं। अफगानिस्तान की लगभग पूरी आबादी गरीबी के कुचक्र में फंस गई है और लाखों लोग अपने परिवारों का भरण पोषण करने में असमर्थ हैं, क्योंकि दुनिया ने तालिबान के सत्ता में आने के बाद वित्तपोषण बंद कर दिया। शिक्षक, अभिभावक और विशेषज्ञ सभी चेतावनी देते हैं कि अर्थव्यवस्था के पतन सहित देश के कई संकट लड़कियों के लिए विशेष रूप से हानिकारक साबित हो रहे हैं। तालिबान ने महिलाओं को काम पर जाने से प्रतिबंधित कर दिया है, उन्हें घर पर रहने के लिए प्रोत्साहित किया है और ‘ड्रेस कोड’ जारी किए हैं, जिसमें उन्हें अपनी आंखों को छोड़कर, अपने चेहरे को ढंकने की आवश्यकता होती है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय मांग कर रहा है कि तालिबान सभी लड़कियों के लिए स्कूल खोले और अमेरिका तथा यूरोपीय संघ ने तालिबान को धन मुहैया कराए बिना अफगानिस्तान के शिक्षकों को सीधे वेतन देने की योजना बनाई है। लेकिन लड़कियों की शिक्षा का सवाल तालिबान के बीच मतभेदों में उलझा हुआ प्रतीत होता है। तालिबान आंदोलन के कुछ लोग लड़कियों के स्कूल लौटने का समर्थन करते हैं क्योंकि वे दुनिया के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं। वहीं, आंदोलन का हिस्सा रहे विशेष रूप से ग्रामीण, कबायली बुजुर्ग इसका कड़ा विरोध करते हैं।
यूट्यूब से अंग्रेजी सीख रहीं लड़कियां
स्कूल का नया सत्र शुरू होने से पहले मार्च में उम्मीदें जगीं थीं जब तालिबान के शिक्षा मंत्रालय ने घोषणा की कि सभी को स्कूल जाने की अनुमति दी जाएगी। लेकिन, 23 मार्च को फिर से स्कूल खोलने के दिन निर्णय अचानक उलट गया। इस फैसले से मंत्रालय के अधिकारी भी हैरान रह गए। शकीबा कादरी (16) को याद है जब वह 10वीं की पढ़ाई शुरू करने के लिए उस दिन तैयार हुई थीं। कादरी और उनकी दोस्त काफी रोमांचित थीं लेकिन एक शिक्षक ने कहा कि उन्हें घर जाना होगा। लड़कियों की आंखों में आंसू थे। कादरी ने कहा, ‘वह हमारे जीवन का सबसे निराशाजनक क्षण था।’ उसके बाद से कादरी घर पर ही अपने पाठ्यक्रम की किताबें, उपन्यास और इतिहास की किताबें पढ़कर वक्त गुजारती हैं। इन दिनों वह फिल्मों और यूट्यूब के वीडियो के जरिए अंग्रेजी सीख रही हैं।
कादरी के पिता मोहम्मद शाह कादरी (58) ने कहा कि किसी महिला को विश्वविद्यालय की डिग्री मिल भी जाए तो आगे क्या फायदा। मोहम्मद शाह कादरी ने कहा कि वह हमेशा चाहते हैं कि उनके बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करें। अब यह असंभव हो गया है, इसलिए वह वर्षों के युद्ध से बाहर निकलने के बाद पहली बार अफगानिस्तान छोड़ने की सोच रहे हैं। भूमिगत तरीके से संचालित स्कूलों की भी अपनी सीमाएं हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद नाजंद ने अपने घर के पास एक पार्क में अनौपचारिक रूप से कक्षाएं शुरू की। इसमें ऐसी युवतियां, महिलाएं आने लगीं जो पढ़ और लिख नहीं सकती थीं।
नाजंद के स्कूल में करीब 250 छात्राएं हैं जिनमें से 50 से 60, छठी कक्षा से ऊपर के दर्जे की हैं। छात्राओं के लिए भूमिगत स्कूल जीवन रेखा की तरह हैं। एक छात्रा दुनिया अरबजदा ने अपने पूर्व के स्कूल के बारे में कहा, ‘आप स्कूल नहीं जा सकते..यह बहुत कठिन स्थिति है । जब भी मैं अपने स्कूल के पास से गुजरती हूं और बंद दरवाजों को देखती हूं...तो मैं निराश हो जाती हूं।’