
इस्लामाबाद: तालिबानी फरमानों की वजह से अफगानिस्तान की लड़कियों की जिंदगी लगभग नर्क बन चुकी है। उन्हें न तो उच्च शिक्षा हासिल करने की इजाजत है और न ही जॉब करने की। तालिबानियों की इन करतूतों ने अफगानिस्तान की लड़कियों के स्वतंत्र होकर जीने का अधिकार ही छीन लिया है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) बेहद चिंतित है। लिहाजा यूनिसेफ ने अफगानिस्तान के तालिबान शासकों से लड़कियों की शिक्षा पर लगे प्रतिबंध को तत्काल हटाने का शनिवार को आग्रह किया है।
22 लाख से अधिक लड़कियां शिक्षा से वंचित
यूनिसेफ ने यह पहल इसलिए की है, ताकि उन लाखों लड़कियों का भविष्य बचाया जा सके जो 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। यूनिसेफ ने यह अपील ऐसे समय में की है जब अफगानिस्तान में नया अकादमिक वर्ष शुरू हुआ है। एजेंसी ने कहा कि इस प्रतिबंध के कारण 4,00,000 और लड़कियां शिक्षा के अधिकार से वंचित हो गई हैं तथा इसी के साथ ऐसी लड़कियों की कुल संख्या 22 लाख हो गई है जो छठी कक्षा के बाद पढ़ नहीं सकीं।
लड़कियों की शिक्षा पर बैन लगाने वाला दुनिया का पहला देश
अफगानिस्तान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां लड़कियों की माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध है। तालिबान के अनुसार यह प्रतिबंध उचित है क्योंकि यह शिक्षा व्यवस्था शरिया या इस्लामी कानून की व्याख्या के अनुरूप नहीं है। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने एक बयान में कहा, ‘‘तीन साल से अधिक समय से अफगानिस्तान में लड़कियों के अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सभी लड़कियों को अब स्कूल लौटने की अनुमति दी जानी चाहिए।
बैन नहीं हटा तो 40 लाख लड़कियां होंगी शिक्षा से महरूम
अगर इन सक्षम एवं प्रतिभाशाली युवतियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता रहा तो इसके परिणाम कई पीढ़ियों तक रहेंगे।’’ उन्होंने कहा कि इस प्रतिबंध से लाखों अफगान लड़कियों के भविष्य को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि यदि प्रतिबंध 2030 तक जारी रहता है, तो ‘‘40 लाख से अधिक लड़कियां प्राथमिक स्कूल से आगे की शिक्षा के अपने अधिकार से वंचित हो जाएंगी।’’ उन्होंने कहा कि इसके परिणाम ‘‘विनाशकारी’’ होंगे।
अशिक्षा बन सकती है हजारों शिशुओं की मौत का कारण
रसेल ने चेतावनी दी कि महिला चिकित्सकों और दाइयों की संख्या में कमी के कारण महिलाओं एवं लड़कियों को चिकित्सकीय देखभाल नहीं मिल पाएगी जिसके परिणामस्वरूप करीब 1,600 अतिरिक्त माताओं और 3,500 से अधिक अतिरिक्त शिशुओं की मौत होने की आशंका है। उन्होंने कहा, ‘‘ये केवल संख्याएं नहीं हैं, ये आंकड़े खोई हुई जिंदगियों और बिखरते परिवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।’ (एपी)