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कश्मीर से हटाया था 370 और 35 ए, अब श्रीलंका में भारत लगवाने जा रहा 13 ए; रानिल विक्रम सिंघे का जानें ये प्लान

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रम सिंघे अगले हफ्ते से भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। मगर उससे पहले श्रीलंका में भारत समर्थित संविधान संशोधन 13 ए लागू करने की मांगों ने जोर पकड़ लिया है। हालांकि श्रीलंका भी इसके पक्ष में है। मगर वहां का विपक्ष इसका विरोध कर रहा है। 13 ए लागू होने से तमिलों का विशेष फायदा होगा।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published on: July 17, 2023 14:52 IST
रानिल विक्रम सिंघे, श्रीलंका के राष्ट्रपति- India TV Hindi
Image Source : AP रानिल विक्रम सिंघे, श्रीलंका के राष्ट्रपति

कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाये जाने की घटना तो आपको याद होगी। इससे कश्मीरी लोगों की जिंदगी बदलने लगी है। जम्मू-कश्मीर अब भारत का पूर्ण राज्य हो चुका है। इस दौरान अब भारत श्रीलंका में 13 ए लागू करवाने जा रहा है। भारत की सिफारिश पर श्रीलंका पूर्व में ही इस पर सहमति दे चुका है। अब आप सोच रहे होंगे कि ये 13 ए क्या है और इसके श्रीलंका में लागू होने से भारत का क्या वास्ता है,...तो आइए आपको पूरा मामला समझाते हैं।

दरअसल श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे इस सप्ताह भारत की पहली आधिकारिक यात्रा पर आने वाले हैं। भारत के लिए रवाना होने से पहले वह तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक स्वायत्तता की पुरानी मांग के निपटारे की कोशिश के तहत संसद में मंगलवार को ‘तमिल नेशनल अलायंस’ (टीएनए) के साथ वार्ता करने जा रहे हैं। टीएनए उन दलों का गठबंधन है जो उत्तर और पूर्व क्षेत्रों के तमिलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूत्रों ने बताया कि टीएनए और विक्रमसिंघे के बीच वार्ता मंगलवार दोपहर को संसद में होगी। यहां विदेश कार्यालय के अधिकारियों ने बताया कि विक्रमसिंघे 20 जुलाई को नयी दिल्ली रवाना होंगे और वह 21 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करेंगे।

भारत समर्थित 13 ए लागू करना चाहते हैं श्रीलंका के राष्ट्रपति

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक स्वायत्तता की पुरानी मांग के निपटारे के लिए टीएनए के साथ दिसंबर से वार्ता शुरू की है। विक्रमसिंघे ने भारत समर्थित 13वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू करने का विचार रखा और इसका शक्तिशाली बौद्ध धार्मिक नेताओं ने विरोध किया। पहले भी ऐसा ही हुआ है। संविधान के 13ए संशोधन में तमिल समुदाय को सत्ता सौंपने का प्रावधान है। भारत 13ए को लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है, जिसे 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद लाया गया था। तमिल पक्ष ने सैन्य उद्देश्यों के लिए रखी गई निजी भूमि को छोड़े जाने, तमिल राजनीतिक कैदियों को रिहा किए जाने और संघर्षों में हुई क्षति की भरपाई किए जाने जैसे चिंता के मुद्दों को हल करने पर जोर दिया। कुछ भूमि को छोड़ दिया गया है और कुछ कैदियों को भी रिहा कर दिया है, लेकिन तमिल पक्ष मुख्य रूप से असंतुष्ट हैं।

पीएम मोदी से भी तमिलों ने मांगी थी मदद

कुछ पूर्व तमिल दलों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह विक्रमसिंघे पर 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने का दबाव बनाएं। ये दल टीएनए का हिस्सा नहीं हैं। इस समूह में ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (लिट्टे) के पुनर्वासित पूर्व सदस्य की ‘डेमोक्रेटिक फाइटर्स पार्टी’ भी शामिल है। लिट्टे ने एक अलग तमिल देश बनाने के लिए तीन दशक तक अलगाववादी संघर्ष किया था। इस बीच, मत्स्य पालन राज्य मंत्री पियाल निशांत ने कहा कि भारतीय मछुआरों द्वारा श्रीलंकाई जलक्षेत्र में ‘‘अवैध रूप से मछली पकड़ने’’ के जटिल मुद्दे पर भी भारत यात्रा के दौरान चर्चा की जाएगी। श्रीलंका का तमिलों के साथ विफल वार्ता का पुराना इतिहास रहा है। तमिल-बहुल उत्तर और पूर्व के लिए एक संयुक्त प्रांतीय परिषद की प्रणाली बनाने वाले 1987 के भारतीय प्रयास कमजोर पड़ गए ,क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय ने दावा किया कि यह पूर्ण स्वायत्तता नहीं है। (भाषा)

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