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ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने को लेकर चीन ने दिया बड़ा बयान, अब भारत क्या करेगा?

चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा बांध बनाने की अपनी योजना के बारे में बृहस्पतिवार को कहा कि इस परियोजना को लेकर किसी तरह से चिंतित होने की जरूरत नहीं है और नदी के निचले प्रवाह क्षेत्र वाले देशों-भारत तथा बांग्लादेश- के साथ बीजिंग का ‘अच्छा संवाद’ जारी रहेगा।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 03, 2020 20:25 IST
Will have good communication with India, China on its plan to build big dam over Brahmaputra river, - India TV Hindi
Image Source : PTI तिब्ब्त में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की योजना से चिंतित होने की जरूरत नहीं: चीन (representational image)

बीजिंग: चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा बांध बनाने की अपनी योजना के बारे में बृहस्पतिवार को कहा कि इस परियोजना को लेकर किसी तरह से चिंतित होने की जरूरत नहीं है और नदी के निचले प्रवाह क्षेत्र वाले देशों-भारत तथा बांग्लादेश- के साथ बीजिंग का ‘अच्छा संवाद’ जारी रहेगा। ब्रह्मपुत्र नदी पर तिब्बत के मीदोंग में बांध बनाने की चीन की योजना का खुलास चीन के पावर कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन के अध्यक्ष यान झियोंग ने हाल ही में एक सम्मेलन में किया था। तिब्बत की सीमा अरूणाचल प्रदेश से लगी हुई है। 

विश्व की सबसे बड़ी नदियों में शामिल और 3,800 किमी से अधिक लंबी ब्रह्मपुत्र नदी चीन, भारत और बांग्लादेश से होकर गुजरती है तथा इसकी कई सहायक एवं उप सहायक नदियां हैं। ग्लोबल टाइम्स में रविवार को प्रकाशित खबर के मुताबिक यान ने कहा कि चीन यारलुंग झांगबो नदी(ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम) के निचले प्रवाह क्षेत्र में पनबिजली पैदा करेगा और यह परियोजना जल संसाधन एवं घरेलू सुरक्षा प्रदान करने में मदद कर सकती है। ’’ 

अरूणाचल प्रदेश, जहां ब्रह्मपुत्र भारत में प्रवेश करती है, के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक नदी पर बांध बनाने की चीन की योजना के बारे में पूछे जाने पर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने बृहस्पतिवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सीमा के दोनों ओर बहने वाली नदियों के उपयोग का जहां तक सवाल है, यारलुंग जांगबो के निचले प्रवाह क्षेत्र वाले हिस्से में पनबिजली परियोजना लगाना चीन का वैध अधिकार है। हुआ ने कहा, ‘‘हमारी नीति विकास और संरक्षण की है तथा सभी परियोजनाएं विज्ञान आधारित योजना के अनुरूप होंगी और नदी के निचले प्रवाह क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव पर पूरा विचार कर आकलन किया जाएगा तथा नदी के ऊपरी एवं निचले प्रवाह क्षेत्रों के हितों को समायोजित किया जाएगा। ’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘यारलुंग जांगबो के निचले प्रवाह क्षेत्र वाले हिस्से में कार्य योजना एवं आकलन के शुरूआती दौर में है। इसका बहुत ज्यादा मतलब निकालने की जरूरत नहीं है। ’’ उल्लेखनीय है कि सीमा पार से बह कर आने वाली नदियों के जल के उपयोग का अधिकार रखने को लेकर भारत सरकार ने निरंतर ही चीनी अधिकारियों को अपने विचारों और चिंताओं से अवगत कराया है। साथ ही, उनसे यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है कि नदी के ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में किसी गतिविधि से इसके निचले प्रवाह क्षेत्र वाले देशों को नुकसान नहीं हो। 

हुआ ने कहा, ‘‘लंबे समय से, चीन, भारत और बांग्लादेश के बीच जल संबंधी सूचना साझा करने, बाढ़ एवं आपदा न्यूनीकरण तथा आकस्मिक प्रबंधन में अच्छा सहयोग रहा है। हम मौजूदा माध्यमों से बातचीत जारी रखेंगे।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या चीन भविष्य में किये जाने वाले कार्य के बारे में भारत और बांग्लादेश के साथ चर्चा करेगा, उन्होंने कहा, ‘‘दरअसल, लंबे समय से तीनों देश--चीन, भारत और बांग्लादेश--का जल संबंधी सूचना साझा करने, बाढ़ की रोकथाम और आपदा न्यूनीकरण तथा आकस्मिक प्रबंधन पर प्रगाढ़ बातचीत होती रही है।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘इससे आगे बढ़ते हुए चीन, भारत और बांग्लादेश तथा अन्य संबद्ध देश अच्छी बातचीत जारी रखेंगे। इस विषय पर कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है।’’ उल्लेखनीय है कि भारत और चीन ने सीमा के आर-पार बहने वाली नदियों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए 2006 में विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र का गठन किया था। मौजूदा द्विपक्षीय सहमति पत्र के तहत चीन ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी पर जल संबंधी सूचना भारत को बाढ़ के महीनों में उपलब्ध कराता है। इसके तहत हर साल 15 मई से 15 अक्टूबर के बीच ब्रह्मपुत्र जुडा डेटा प्रदान किया जाता है। 

मीदोंग में बांध बनाने की खबर से भारत में चिंता पैदा हुई है क्योंकि चीन 2015 में तिब्बत में सबसे बड़ा जाम पनबिजली संयंत्र पहले ही शुरू कर चुका है। तिब्बत में बांधों का निर्माण भारत के लिए चिंता का कारण है क्योंकि चीन इसके जरिए न सिर्फ जल का प्रवाह नियंत्रित कर सकता है, बल्कि वह युद्ध के समय में इन बांधों से भारी मात्रा में पानी भी छोड़ सकता है। यान ने कहा कि यारलुंग जांगबो नदी के निचले प्रवाह क्षेत्र में पनबिजली का दोहन एक पनबिजली परियोजना से कहीं अधिक है। यह पर्यावरण, राष्ट्रीय सुरक्षा, जन जीवन, ऊर्जा के लिए महत्व रखता है।

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