हाजी पीर पाकिस्तान को लौटाना क्या एक चूक थी
10 जनवरी 1966 को तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकंद में जंग बंदी का समझौता हुआ। इसमें तय हुआ कि दोनों देशों की सेनाएं जीते हुए इलाकों को लौटा कर युद्ध से पहले वाली जगहों पर लौट जाएं। ताशकंद समझौते में हाजी पीर को वापस करने के फैसले को विशेषज्ञों का एक धड़ा भारत की एक बड़ी चूक मानता है। ऐसी ही सच्ची कहानी अवकाश प्राप्त लांसनायक सदानंद सुनाते हैं। वह सेना की उस टुकड़ी का हिस्सा थे जिसने सतलुज नदी पर बने एक पुल को उड़ा दिया था। सदानंद बताते हैं, "पुल सतलुज पर बना था और पाकिस्तान के नियंत्रण में था। हमें इसे उड़ाने की जिम्मेदारी दी गई थी ताकि पाकिस्तानी हमारी तरफ न आ सकें।" पुल तक सदानंद करीब डेढ़-दो किलोमीटर तक कुहनियों के बल पर घिसट कर पहुंचे थे। उनकी पीठ पर विस्फोटक लदा हुआ था। बीच बीच में दुश्मन की गोलियां आस पास से गुजर रही थीं। वह बताते हैं, "पुल के नीचे रेल की पटरी थी। हम रस्सी के सहारे पुल पर पहुंचे। उस पर विस्फोटक रखा और उड़ा दिया। लेकिन जब जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटा दी गई तो मेरे अंदर का फौजी बहुत आहत हुआ।"
भारत माता ने खोए थे 3000 सपूत
सन 65 की जंग 17 दिन चली थी। भारत ने इसमें अपने 3000 सपूत खोए थे। भारत के कब्जे में पाकिस्तान का 1,920 वर्ग किलोमीटर इलाका आया था। पाकिस्तान ने भारत के 560 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा किया था।
फिलहाल पूर्व सैनिकों की जंग वन रैंक वन पेंशन के लिए
पूर्व सैनिक यह कहने से नहीं चूकते कि फिलहाल तो उनकी 'जंग' वन रैंक वन पेंशन के लिए है। उनका कहना है कि युद्ध के स्वर्ण जयंती समारोह में वे तभी शिरकत करेंगे जब उनकी मांग मान ली जाएगी।
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