टोक्यो: जापान का प्रधानमंत्री चुने जाने से पहले योशिहिता सुगा को पर्दे के पीछे का प्रधानमंत्री कहा जाता था, वह जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे शिंजो आबे के बेहद करीबी माने जाते हैं। जब आबे ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह खराब सेहत के चलते पद छोड़ने वाले हैं तब उनके मंत्रिमंडल के मुख्य सचिव सुगा ने कहा था वह आबे के अधूरे कामों को पूरा करेंगे।
अपने दम पर राजनीति में स्थान बनाने वाले सुगा को संसद ने बुधवार को औपचारिक तौर पर जापान का नया प्रधानमंत्री चुन लिया। इससे पहले, सोमवार को उन्हें जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का नया नेता चुना गया था। सरकारी ब्रिफ्रिंग से सुगा की जो छवि महसूस होती थी वह पर्दे के पीछे नौकरशाहों को संभालने तथा नीतियों को आगे बढ़ाने के उनके काम से ठीक विपरीत है। पर्दे के पीछे वह एक दृढ़ व्यक्तित्व वाले शख्स हैं।
नीति संयोजक के रूप में वह सख्त मिजाज हैं और प्रधानमंत्री कार्यालय की शक्तियों के जरिए नौकरशाहों को प्रभावित करते हैं। इसी कारण राजनीतिक विश्लेषक उन्हें ‘‘पर्दे के पीछे का प्रधानमंत्री’’ कहते हैं। उनकी नीतियों का विरोध करने वाले कुछ अफसरों का कहना है कि उन्हें सरकारी परियोजनाओं से हटा दिया गया या उनका स्थानांतरण कर दिया गया। सुगा ने भी हाल में कहा था कि वह ऐसा करना जारी रखेंगे।
उनके स्कूल के दिनों के साथी उन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति वाला व्यक्ति मानते हैं। सोमवार को सुगा ने कहा था, ‘‘मैं राजनीति में आ गया, जिसमें मेरा कोई जान-पहचान का व्यक्ति या और कोई कनेक्शन नहीं था। मैंने शून्य से शुरुआत की।’’ सुगा 1996 में 47 साल की आयु में निचले सदन में चुने गए। सुगा, आबे के करीबी माने जाते हैं और 2006 से उनके समर्थक रहे हैं।
जब आबे पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तब आबे का कार्यकाल 2006 से 2007 के बीच महज एक साल का था, जिसकी वजह उनकी खराब सेहत थी। 2012 में फिर से प्रधानमंत्री बनने में सुगा ने आबे की खासी मदद की थी। सुगा किसान के बेटे हैं और अपने दम पर राजनीति में आए। उन्होंने आम लोगों तथा ग्रामीण समुदायों के हितों का ध्यान रखने का वादा किया है।
सुगा ने कहा कि वह आबे की अधूरी नीतियों को ही आगे बढ़ाएंगे और उनकी प्राथमिकता कोरोना वायरस से निपटना और वैश्विक महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को बेहतर करना होगा। सुगा (71) का कहना है कि वह स्वस्थ हैं और नेतृत्व भूमिका के लिहाज से फिट हैं। उन्हें क्षेत्रीय सागर में चीन की दमनकारी गतिविधियों समेत कई चुनौतियां विरासत में मिली हैं।