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भारत की इस चीज का मुरीद हुआ चीन, तनाव घटाने के लिए साथ बैठकर किया यह काम

भारत और चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ विभिन्न देशों के राजनयिकों ने रविवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) द्वारा आयोजित एक योग कार्यक्रम में भाग लिया।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: October 18, 2020 21:39 IST
Senior Indian, Chinese officials attend SCO cultural event, take part in Yoga- India TV Hindi
Image Source : PTI Senior Indian, Chinese officials attend SCO cultural event, take part in Yoga

बीजिंग: भारत और चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ विभिन्न देशों के राजनयिकों ने रविवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) द्वारा आयोजित एक योग कार्यक्रम में भाग लिया। एससीओ में चीन, भारत, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिसरी के साथ ही एससीओ के महासचिव व्लादिमीर नोरोव, चीनी पीपुल्स एसोसिएशन फॉर फ्रेंडशिप विद फॉरेन कंट्रीज (सीपीएएफएफसी) के अध्यक्ष लिन सोंगटियान और एससीओ की समिति के अधिकारी कुई ली ने योग कार्यक्रम में हिस्सा लिया। 

पाकिस्तान समेत एससीओ में शामिल सभी देशों के राजनयिकों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया, जिसमें चीनी मार्शल आर्ट ताई ची और योग के साथ ही अन्य सदस्य देशों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी प्रदर्शन किया गया। एससीओ का एक ऑनलाइन शिखर सम्मेलन 10 नवंबर को होना प्रस्तावित है, जिसमें संगठन के सदस्य देशों के प्रमुख नेता भी हिस्सा लेंगे। 

इसकी मेजबानी रूस करेगा और इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी हिस्सा ले सकते हैं। कार्यक्रम के दौरान रविवार को अपने संबोधन में मिसरी ने कहा, '' भारत एससीओ का एक नया सदस्य है लेकिन 'एससीओ परिवार' के सदस्य देशों से हमारे संबंध सदियों पुराने हैं और कुछ के साथ तो और भी अधिक पुराना जुड़ाव है।''

एलएसी पर शांति अत्यधिक बाधित, भारत-चीन संबंधों पर पड़ रहा असर: एस जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और अमन-चैन गंभीर रूप से बाधित हुए हैं और जाहिर तौर पर इससे भारत तथा चीन के बीच संपूर्ण रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं। जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच पांच महीने से अधिक समय से सीमा गतिरोध की पृष्ठभूमि में ये बयान दिये जहां प्रत्येक पक्ष ने 50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है। जयशंकर ने अपनी पुस्तक ‘द इंडिया वे :स्ट्रटेजीस फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड’ पर आयोजित वेबिनार में पिछले तीन दशकों में दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच संबंधों के विकास के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कहा कि चीन-भारत सीमा का सवाल बहुत जटिल और कठिन विषय है। 

विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के संबंध ‘बहुत मुश्किल’ दौर में हैं जो 1980 के दशक के अंत से व्यापार, यात्रा, पर्यटन तथा सीमा पर शांति के आधार पर सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से सामान्य रहे हैं। जयशंकर ने कहा, ‘‘हमारा यह रुख नहीं है कि हमें सीमा के सवाल का हल निकालना चाहिए। हम समझते हैं कि यह बहुत जटिल और कठिन विषय है। विभिन्न स्तरों पर कई बातचीत हुई हैं। किसी संबंध के लिए यह बहुत उच्च लकीर है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं और अधिक मौलिक रेखा की बात कर रहा हूं और वह है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में एलएसी पर अमन-चैन रहना चाहिए और 1980 के दशक के आखिर से यह स्थिति रही भी है।’’ 

जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख में सीमा के हालात का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘अब अगर शांति और अमन-चैन गहन तौर पर बाधित होते हैं तो संबंध पर जाहिर तौर पर असर पड़ेगा और यही हम देख रहे हैं।’’ विदेश मंत्री ने कहा कि चीन और भारत का उदय हो रहा है और ये दुनिया में ‘और अधिक बड़ी’ भूमिका स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन ‘बड़ा सवाल’ यह है कि दोनों देश एक ‘साम्यावस्था’ कैसे हासिल कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह मौलिक बात है जिस पर मैंने पुस्तक में ध्यान केंद्रित किया है।’’ 

जयशंकर ने बताया कि उन्होंने किताब की पांडुलिपि पूर्वी लद्दाख में शुरू हुए सीमा विवाद से पहले अप्रैल में ही पूरी कर ली थी। जब विदेश मंत्री से पूछा गया कि क्या भारत की जीडीपी विकास दर और अधिक होनी चाहिए ताकि आर्थिक, सैन्य और अन्य कारणों से चीन के साथ विषम-रूपता कम हो, इस पर उन्होंने अलग समाजशास्त्र, राजनीति और दोनों पड़ोसी देशों के बीच शासन की अलग प्रकृति का जिक्र किया। जयशंकर ने कहा कि वह चाहते हैं कि भारत और अधिक तेजी से विकास करे और ज्यादा क्षमतावान हो लेकिन चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण यह नहीं होना चाहिए। 

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा सोचना है कि हमें अपने लिए यह करना होगा। एक तरह से हम दुनिया में सभी के खिलाफ स्पर्धा कर रहे हैं। इस दुनिया में हर बड़ी महाशक्ति अन्य सभी देशों के खिलाफ स्पर्धा कर रही है।’’ विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम चीन से कुछ सीख सकते हैं। चीन जिस तरह से बढ़ा है। लेकिन उसी समय यह बात भी बहुत साफ है कि हम चीन नहीं हैं। जब लोग सुझाव देते हैं कि आप इसे सही करो। उन्होंने ऐसा किया, आपने वैसा किया। हमारा समाजशास्त्र अलग है, हमारी राजनीति अलग है, हमारे शासन की प्रकृति अलग है।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘आप किसी अलग रास्ते के अनुभवों से कैसे सीख सकते हैं? अगर हम अलग भी हैं तो पाठ सीखे जा सकते हैं।’’ पिछले सात दशकों के प्रमुख भू-राजनीतिक घटनाक्रमों का जिक्र करते हुए जयशंकर ने यूरोप की समृद्धि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान के उबरने, सोवियत संघ का पतन और बाद में अमेरिका के उभरने का जिक्र किया, लेकिन कहा कि निर्णायक मोड़ 2008 में आया जब वैश्विक आर्थिक संकट सामने आया और चीन, भारत तथा 10 देशों के आसियान समूह का उदय हुआ। 

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