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वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के उत्परिवर्तन की आशंका को खारिज किया

बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में सुक्ष्म जीवविज्ञान और कोशिका जीवविज्ञान के प्रोफेसर कुमार सोमसुंदरम भी रे की बात से सहमति जताते हैं। उन्होंने कहा कि डी614जी उत्परिवर्तन की किस्म जिसे ‘जी क्लेड’ नाम दिया गया भारत में अप्रैल में ही व्यापक रूप से मौजूद थी। 

Written by: Bhasha
Published : August 20, 2020 18:58 IST
Scientists dismiss fears of mutation of corona virus । वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के उत्परिवर्तन की
Image Source : PTI वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के उत्परिवर्तन की आशंका को खारिज किया

नई दिल्ली. वैज्ञानिकों का कहना है कि मलेशिया में सामने आए नए कोरोना वायरस के कथित उत्परिवर्तित स्वरूप जिसे “10 गुना ज्यादा संक्रामक” बताया जा रहा है, भारत के लिए चिंता का विषय नहीं है क्योंकि यह पहले से ही यहां व्यापक रूप से मौजूद है और यह वुहान से मिली वायरस की किस्म से ज्यादा संक्रामक नहीं है।

देश के स्वास्थ्य महानिदेशक ने एक फेसबुक पोस्ट में इस हफ्ते कहा कि वायरस की ये नयी किस्म डी614जी मलेशिया में एक क्लस्टर से मिली जिसमें भारत से लौटा एक रेस्तरां मालिक भी शामिल है। उन्होंने कहा था कि यह “10 गुना ज्यादा संक्रामक पाया गया और एक व्यक्ति से आसानी से बड़े पैमाने पर प्रसारित हो सकता है”, इसके बाद इसे लेकर घबराहट बढ़ी लेकिन वैज्ञानिकों ने यहां इन आशंकाओं को निर्मूल बताते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है।

विषाणु रोग विशेषज्ञ उपासना रे के मुताबिक, मलेशिया में यह किस्म भले ही अभी सामने आयी हो लेकिन दुनिया के लिये यह नया नहीं है। कोलकाता में सीएसआईआई- भारतीय रसायनिक जीवविज्ञान संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हमने इसे अप्रैल में देखा और कई देशों में इसका प्रभाव है। यह मलेशिया के लिये नया है लेकिन यह नयी किस्म नहीं है।”

कुछ खबरों में दावा किया गया कि उत्परिवर्तन विषाणु की संक्रामकता बढ़ाने में सक्षम है, लेकिन यह स्थापित नहीं है और यह अनिवार्य रूप से बीमारी के ज्यादा संक्रामक या नुकसानदेह होने का संकेत नहीं देती। रे ने कहा कि यहां तक की विषाणु के बेहद संक्रामक स्वरूप में भी हो सकता है कि इंसानों में बीमारी पैदा करने की क्षमता कम हो।

जर्नल सेल में जुलाई में वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन में पाया गया कि नए कोरोना वायरस की एक किस्म ‘डी614जी’ अन्य किस्मों के मुकाबले प्रयोगशाला में बनी ज्यादा कोशिकाओं को संक्रमित करती है। अध्ययन करने वालों में अमेरिका की लॉस एलामोस नेशनल लेबोरेटरी के बेट्टी कोर्बर भी शामिल थे।

बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में सुक्ष्म जीवविज्ञान और कोशिका जीवविज्ञान के प्रोफेसर कुमार सोमसुंदरम भी रे की बात से सहमति जताते हैं। उन्होंने कहा कि डी614जी उत्परिवर्तन की किस्म जिसे ‘जी क्लेड’ नाम दिया गया भारत में अप्रैल में ही व्यापक रूप से मौजूद थी। उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया कि ‘जी क्लेड’ या यह किस्म भारत में कुल 70-75 प्रतिशत मामलों में मौजूद है। सोमसुंदरम के दल ने करेंट साइंस नाम के जर्नल में भारत में विषाणु के सैकड़ों नमूनों का विश्लेषण करते हुए एक अध्ययन प्रकाशित किया था। 

उन्होंने कहा, “अप्रैल में भारत में अगर सौ नमूनों का विश्लेषण किया गया तो उनमें से 40-50 में जी क्लेड वायरस था। अगर आप जून में विश्लेषित आंकड़ों को देखें तो लगभग 95 प्रतिशत में जी क्लेड है…कुल मिलाकर अगर आप सभी नमूनों को जोड़ दें जिनका आपने इन महीनों में विश्लेषण किया तो जी क्लेड भारत में 70-75 प्रतिशत मामलों की वजह है।”

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