जेरुसलम: इस्राइली विशेषज्ञों का मानना है कि फिलिस्तीन के प्रति अपना पारंपरिक समर्थन प्रदर्शित करना भारत की रणनीतिक जरूरत है। साथ ही उन्हें यह भी लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रमाल्ला यात्रा भारत-इस्राइल के मजबूत होते रिश्तों के बीच फिलिस्तीनियों को ‘सहज करने वाला पुरस्कार’ है। मोदी फिलिस्तीन की यात्रा पर गए पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से जेरुसलम को इस्राइल की राजधानी घोषित करने के बाद क्षेत्र में पैदा हुए तनाव के बीच मोदी की यात्रा हो रही है।
भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर फिलिस्तीन के रुख के पक्ष में लगातार वोट किया है, जिससे रणनीतिक साझेदार इस्राइल चिंतित होता रहा है। नई दिल्ली और वॉशिंगटन में एक पूर्व इस्राइली प्रवक्ता लियोर वाइनट्रॉब ने कहा, ‘मेरा मानना है कि फिलिस्तीनी समझते हैं कि पिछले कुछ साल में इस्राइल और भारत के संबंध नाटकीय ढंग से मजबूत होने के बाद यह यात्रा सहज करने वाला एक पुरस्कार है। फिलिस्तीनी प्राधिकरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा का कूटनीतिक महत्व होगा। एक तरफ भारतीयों के लिए यह दिखाना जरूरी है कि बात जब इस्राइल-फिलिस्तीन संघर्ष की हो तो उन्होंने अपनी परंपरागत स्थिति की अनदेखी नहीं की है, दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री नेतन्याहू के करीबी संबंध दोनों पक्षों के बीच बातचीत फिर से शुरू कराने में मदद कर सकते हैं।’
गौरतलब है कि इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कुछ हफ्ते पहले भारत की बहुप्रचारित यात्रा की थी। इस्राइल के वरिष्ठ सूत्रों ने पुष्टि की कि इस्राइली सरकार को नेतन्याहू की भारत यात्रा से बहुत पहले मोदी की फिलिस्तीन यात्रा की जानकारी थी। सूत्र ने कहा, ‘मुझे यहां किसी चीज के बारे में शिकायत करने की वजह नजर नहीं आती। हमारे रिश्ते इस स्तर पर परिपक्व हो चुके हैं कि हम भारत की जरूरतें समझ सकते हैं।’ तेल अवीव यूनिवर्सिटी में व्याख्याता गेनेडी श्लॉम्पर मोदी की यात्रा को अरब जगत के साथ भारत के संवाद के तौर पर देखते हैं।