कराची: तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं करता तो आज वो अपनी आजादी का दिन मना रहा होता। आज भी अफगानिस्तान की सड़कों पर आम अफगानी अपने देश का झंडे लेकर उतरे लेकिन तालिबान ने उनपर गोलियां चलाई, कोड़े मारे। तालिबान के कब्जे के बाद अफगान की महिलाओं पर खतरा मंडराने लगा है। भारत में रह रहीं अफगान बेटियों को अपने परिवार की चिंता सताने लगी है। आज दिल्ली में रह रही अफगान बेटियां अपने परिवार की सुरक्षा के लिए सड़कों पर उतरी और ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा के एंबेसी के सामने जुटीं। वो दुनिया के इन बड़े देशों को बताना चाहती है कि उनका मुल्क मुश्किल में है। अफगानिस्तान में रह रहे उनके परिवार की जिंदगी खतरे में है।
भारत में रह रही अफगान बेटियों का ये हाल है तो सोचिए जो लोग अफगानिस्तान में रह रहे है, खास तौर पर महिलाएं जो अभी अफगानिस्तान में हैं उनका क्या हाल हो रहा होगा। यहां तालिबान के नियंत्रण के बाद बड़ी संख्या में अफगान नागरिक देश से बाहर जाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में अफगानिस्तान की सीमा से लगे क्षेत्रों में सक्रिय पाकिस्तानी मानव तस्करों के कारोबार में खासी वृद्धि हुयी है। तालिबान के शासन से बचने के लिए हजारों अफगान देश से भाग रहे हैं और बेहतर जीवन की तलाश में अमेरिका और यूरोप सहित विभिन्न देशों में शरण मांग रहे हैं।
अफगानिस्तान से लगती चमन-स्पिन बोल्डक सीमा के पास एक छोटे से कस्बे से काम कर रहे हमीद गुल ने टेलीफोन पर कहा, “तालिबान के काबुल में प्रवेश करने से पहले से ही कारोबार फल-फूल रहा है। हमने पिछले हफ्ते से अब तक सीमा पार से करीब 1,000 लोगों की तस्करी की है।’’ हालांकि गुल ने यह नहीं बताया कि वे अफगान लोगों को पाकिस्तान में लाने के लिए कितने पैसे लेते हैं लेकिन गुल ने यह भी पुष्टि की कि उसके जैसे कई अन्य लोग सीमावर्ती शहरों से काम कर रहे हैं।
गुल ने कहा, "ये लोग इस बात से डर रहे हैं कि तालिबान शासन में क्या होगा ? वे किसी भी तरह से अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहते हैं और इसके लिए जो कुछ भी मांगा जाता है, वे लोग भुगतान करने को तैयार हैं।’’ मानव तस्करी में शामिल गिरोहों से वाकिफ एक सूत्र ने कहा कि ऐसे लोग ज्यादातर अशांत बलूचिस्तान प्रांत के चमन, चाघी और बदानी जैसे सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय हैं।
सूत्र ने कहा कि अधिकतर अनौपचारिक शरणार्थी पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद क्वेटा या अन्य पाकिस्तानी शहरों में चले जाते हैं। उनमें से कुछ लोगों के पहले से ही कराची या क्वेटा में काम करने वाले रिश्तेदार हैं जो उनका समर्थन करते हैं। क्वेटा से एक साहित्यिक पत्रिका चलाने वाले डॉ शाह मुहम्मद मारी ने कहा कि तालिबान के सत्ता में आने से पहले से ही अफगान नागरिकों की तस्करी होती रही है। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि सिर्फ इस साल करीब 55,000 अफगान नागरिक बलूचिस्तान के रास्ते पाकिस्तान में आए हैं, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं। वे लोग वहां युद्ध और टकराव से भागना चाहते हैं।"
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