लाहौर: ब्रिटेन के एक पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में भगत सिंह को फांसी देने के 87 साल बाद पाकिस्तान ने सोमवार को पहली बार इन स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़े कुछ दस्तावेजों को प्रदर्शित किया। इन दस्तावेजों में उनकी फांसी का प्रमाणपत्र भी शामिल है। उपनिवेशवादी सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोपों में मुकदमा चलाने के बाद भगत सिंह (23) को अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को लाहौर में फांसी दे दी थी। ब्रिटिश अधिकारी जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के खिलाफ मुकदमा चलाया गया था।
पंजाब अभिलेखागार विभाग भगत सिंह के मुकदमे की फाइल का पूरा रिकॉर्ड नहीं प्रदर्शित कर पाया क्योंकि यह कथित तौर पर पूरी तरह तैयार नहीं था। विभाग के एक अधिकारी ने बताया, ‘भगत सिंह के मामले से जुड़े कुछ रिकॉर्ड को आज हमने प्रदर्शित किया। हम इस मामले से जुड़े और अधिक रिकॉर्ड और संभवत: सभी फाइलों को कल प्रदर्शित करेंगे।’ जिन रिकॉर्ड को प्रदर्शनी के लिए रखा गया उनमें 27 अगस्त 1930 के अदालत का आदेश मुहैया कराने के लिए भगत सिंह का आवेदन, उनकी 31 मई 1929 की याचिका, बेटे तथा उनके साथियों, 0राजगुरू और सुखदेव की मौत की सजा के खिलाफ भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह का आवेदन और जेल अधीक्षक द्वारा 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को लाहौर जेल में फांसी देने का प्रमाण पत्र शामिल है।
इसमें भगत सिंह का वह आवेदन भी शामिल है जिसमें उन्होंने प्रतिदिन अखबार और किताबें मुहैया कराने की अनुमति मांगी थी। भगत सिंह को फांसी दिए जाने संबंधी दस्तावेज में कहा गया है, ‘मैं (जेल अधीक्षक) यह प्रमाणित करता हूं कि भगत सिंह को मौत की सजा की तामील की गई। उन्हें सोमवार, 23 मार्च 1931 को सुबह 9 बजे लाहौर जेल में फांसी के फंदे पर तब तक लटकाए रखा गया जब तक उनकी मौत नहीं हो गई। उनकी मौत होने की चिकित्सा अधिकारी द्वारा पुष्टि किए जाने तक उनके शव को फंदे से नहीं उतारा गया। इस दौरान कोई दुर्घटना, कोई चूक नहीं हुई।’