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पाकिस्तान: कोर्ट ने कहा, धरने पर बैठे नेताओं से पाकिस्तान सरकार का समझौता अवैध

इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को सरकार व कट्टरपंथी इस्लामी नेताओं के बीच समझौते के कानूनी आधार पर सवाल उठाया है...

Reported by: IANS
Published on: December 04, 2017 19:52 IST
Representational Image | AP Photo- India TV Hindi
Representational Image | AP Photo

इस्लामाबाद: इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को सरकार व कट्टरपंथी इस्लामी नेताओं के बीच समझौते के कानूनी आधार पर सवाल उठाया है। अदालत ने कहा कि किसी भी शर्त को कानूनी तौर पर न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। इन नेताओं ने पिछले दिनों इस्लामाबाद में विरोध-प्रदर्शन किया था। डॉन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शौकत अजीज सिद्दीकी ने हाल ही में पाकिस्तान की राजधानी के फैजाबाद इंटरचेंज पर धरने के संबंध में सवाल किया, ‘आतंकवाद अधिनियम के तहत दायर मुकदमे को खारिज कैसे किया जा सकता है? ’

सप्ताह भर चले विरोध प्रदर्शन से राजधानी ठहर-सी गई थी, जिसके बाद सरकार और तहरीक-ए-लबैक या रसूल अल्लाह (TLA) के बीच 26 नवंबर को एक समझौता हुआ जिसमें सरकार ने प्रदशर्नकारियों के खिलाफ दर्ज सभी मुकदमे समाप्त करने समेत उनकी मांगें मान ली थीं। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने समझौते की शर्तो पर कई गंभीर आपत्तियां जताते हुए प्रदर्शनकारियों के साथ समाधान तलाशने में सेना की भूमिका पर खेद जाहिर किया। न्यायमूर्ति सिद्दीकी ने इससे पहले की सुनवाई में सवाल किया था, ‘सेना मध्यस्थ की भूमिका में कैसे हो सकती है?’ उनका अगला सवाल था कि क्या कानून किसी मेजर जनरल को ऐसी भूमिका निभाने का काम सौंपता है। अदालत ने कहा कि समझौते के कानूनी आधार को लेकर संसद के संयुक्त अधिवेशन में चर्चा होनी चाहिए।

पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (AGP) अश्तर औसाफ ने इस सिफारिश पर असहमति जताई और कहा कि चूंकि हाई कोर्ट ने मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है, इसलिए न्यायपालिका को इसका निरीक्षण करना चाहिए। जस्टिस सिद्दीकी के आदेश पर वह कोर्ट में पेश हुए थे। AGP ने बातचीत में मध्यस्थ के तौर पर सेना की भूमिका की कानूनी स्थिति तय करने को लेकर कोर्ट से समय मांगा। उन्होंने कहा कि वह देश में नहीं थे, इसलिए उन्हें रिपोर्ट तैयार करने में समय लगेगा। हाई कोर्ट की पीठ ने 27 नवंबर को लिखित आदेश में अटॉर्नी जनरल को यह बताने में कोर्ट की मदद करने का निर्देश दिया था कि मध्यस्थ के तौर पर सेना कैसे काम कर सकती है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विरोध-प्रदर्शन करने वाले नेताओं और धरने में हिस्सा लेनेवालों ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया वह उन्हें ईशनिंदा का दोषी ठहराती है। मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी।

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