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'पाकिस्तान में रमजान में मिलने वाले चंदे के कारण भी मस्जिदें बंद रखने का विरोध'

पाकिस्तान में कोरोना वायरस प्रकोप के कारण मस्जिदों और मदरसों को लोगों से मिलने वाले आर्थिक योगदान में भारी कमी आई है। धन की कमी के कारण मस्जिदों और मदरसों का प्रबंधन मुश्किल हो रहा है।

Reported by: IANS
Published : April 28, 2020 19:27 IST
'पाकिस्तान में रमजान...
'पाकिस्तान में रमजान में मिलने वाले चंदे के कारण भी मस्जिदें बंद रखने का विरोध'

कराची: पाकिस्तान में कोरोना वायरस प्रकोप के कारण मस्जिदों और मदरसों को लोगों से मिलने वाले आर्थिक योगदान में भारी कमी आई है। धन की कमी के कारण मस्जिदों और मदरसों का प्रबंधन मुश्किल हो रहा है। पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्लेषकों का कहना है कि रमजान महीने में देश में मस्जिदों को बंद करने के विरोध की एक वजह यह भी है कि इसी महीने सबसे अधिक चंदा एकत्र किया जाता है जिससे मस्जिदों और मदरसों का काम चलता है। अगर इस महीने मस्जिदें बंद रहतीं तो चंदे को एकत्र करना मुश्किल हो जाता। इसीलिए, कोरोना के प्रसार की आशंका के बावजूद धार्मिक नेता मस्जिदों को बंद करने के प्रस्ताव के खिलाफ अड़ गए।

'द न्यूज' ने एक रिपोर्ट के हवाले से अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। गौरतलब है कि पाकिस्तान में मस्जिद व मदरसे लोगों द्वारा दी गई आर्थिक मदद से चलते हैं। रिपोर्ट में हामिद शरीफ नाम के मौलाना का जिक्र है जो कराची के ओरंगी टाउन में एक मस्जिद व मदरसा चलाते हैं। इस्लामी महीने शाबान और रमजान में इन्हें मस्जिद आने वालों और दो फैक्ट्री के मालिकों से इतना चंदा मिलता है कि वह पूरे साल का बजट बनाते हैं।

कोरोना वायरस के कारण दोनों फैक्ट्री दो महीने से बंद है। फैक्ट्री मालिकों व आम लोगों ने कोरोना के कारण धर्मार्थ काम के लिए निकाला जाने वाला पैसा (जैसे जकात) उन लोगों को अधिक दिया जो लॉकडाउन के कारण खाने को मोहताज हो गए हैं। इससे मौलाना शरीफ की मस्जिद और मदरसे को चंदा नहीं के बराबर मिला। शरीफ ने कहा कि अब उनके लिए मस्जिद के इमाम व अन्य कर्मियों व मदरसे के शिक्षकों को वेतन दे पाना मुमकिन नहीं हो रहा है।

एक अन्य मदरसे के प्रधानाध्यापक मुफ्ती मुहम्मद नईम ने कहा, "लोगों ने आर्थिक मदद का मुंह उन संस्थाओं की तरफ मोड़ दिया है जो कोरोना से प्रभावित लोगों के बीच राशन वितरण कर रही हैं। इस वजह से मस्जिदें और मदरसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।" इन हालात में मस्जिद व मदरसा प्रबंधन से जुड़े लोगों की थोड़ी उम्मीद अब उन लोगों पर टिकी है जो नियमित नमाज पढ़ने मस्जिदों में आते हैं।

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