नई दिल्ली: नार्थ सेंटिनेल आईलैंड को दुनिया का सबसे खतरनाक टापू कहें, तो ग़लत नहीं होगा। कोई शख्स इस भारतीय टापू पर जिंदा नहीं बच सकता, क्योंकि यहां के वाशिंदों का आधुनिक जगत से कोई वास्ता नहीं। वे आज भी उस आदिमकाल में जी रहे हैं, जब इन्सान खेती करना नहीं जानता था औऱ जीने के लिए शिकार करता था।
बाहरी लोगों को करीब देखते ही हिंसक हो उठते हैं यहां के वाशिंदे
यहां के वाशिंदों की आक्रामकता के किस्सों की वजह से रूह को कंपकंपा देने वाला नार्थ सेंनिनेल आईलैंड बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान टापुओं का हिस्सा है। इस टापू के अधिकांश भाग पर इतने घने जंगल हैं कि सूरज की रोशनी भी वहां तक नहीं पहुंच पाती। ऐसी जगह पर सदियों से रहने वाली सेंटिनेलीज जनजाति के लोग बिल्कुल नहीं जाते कि बिजली, इंटरनेट औऱ फोन क्या होते हैं। भारत सरकार ने कई बार कोशिश की कि सेंटिनेलीज जनजाति भी आधुनिक बनें पर वे तो आधुनिक मानव के निकट आते ही हिंसक हो उठते हैं औऱ तीर-भाले निकाल लेते हैं। शायद वे नहीं चाहते कि कोई उनकी जिंदगी में हस्तक्षेप करे या फिर आधुनिक मानव को वे अपने अस्तित्व के लिए खतरा समझते हैं।
जो भी हाथ लगा बेमौत मारा गया
बताया जाता है कि पुलिस की गिरफ्त से फरार एक कैदी जान बचाने के लिए किसी तरह इस टापू पर पहुंच गया, तो यहां के वाशिंदों ने उसकी जान ले ली। कुछ साल पूर्व एक समुद्री नौका राह भटककर इस टापू पर पहुंच गई, तो नाव पर सवार लोगों की जान सूख गई। समुद्र तट पर टापू के मूल निवासी तीर औऱ भाले लेकर उनके स्वागत में खड़े थे। नौका पर सवार लोग किसी तरह जान बचाकर वहां से भागे, वरना वे सभी के सभी अपनी जान से हाथ धो बैठते।
सन 2006 में दो मछुआरे भटककर इस टापू के पास पहुंच गए औऱ फिर लौटकर अपने घर कभी न पहुंच सके।
सूनामी भी झेल गए यहां के वाशिंदे
सेंटिनेलीज़ सन 2004 में हिंद महासागर में आए भूंकप और उसके बाद उठी भयानक सूनामी लहरों के तूफान को भी झेल गए। पर भारत सरकार को उनकी चिंता थी कि आधुनिकता से दूर सेंटिनेलीज़ का क्या हुआ होगा। इसलिए उनकी खोज-खबर लेने के लिए तूफान के तीन दिनों के बाद भारत सरकार का एक हेलिकॉप्टर ने नार्थ सेंटिनेल आईलैंड के ऊपर उड़ान भरी। पर वहां के मूल निवासियों ने हेलिकॉप्टर को देखते ही उस पर पत्थरों और तीरों की बरसात कर दी।
संपर्क साधने की भारत सरकार की कोशिशें भी बेकार
भारत सरकार ने सन 1967 से 1991 के बीच सेंटिनेलीज़ लोगों को देश की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से उनसे संपर्क साधने के काफी प्रयास किए पर टापू के मूल निवासियों तक अपना संदेश पहुंचाने में वे विफल रहे। हर बार स्थानीय लोगों ने आक्रामकता दिखाई। फिर 1991 के बाद से भारत की तरफ से ऐसे प्रयास नहीं किए गए।
भारत सरकार ने इस इलाके को exclusion zone घोषित करके यहा किसी बाहरी शख्स के प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
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