यांगून: बांग्लादेश की यात्रा के दौरान पोप फ्रांसिस के रोहिंग्याओं का उल्लेख करने पर म्यांमार में सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कुछ दिन पहले ही म्यांमार की अपनी यात्रा के दौरान पोप ने रोहिंग्याओं की त्रासदी पर सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया था। शुक्रवार को कैथोलिक चर्च के प्रमुख ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में म्यांमार के राज्यविहीन मुस्लिम अल्पसंख्यकों समुदाय के शरणार्थियों के एक समूह से मुलाकात की। उन्होंने उन शरणार्थियों के लिये ‘रोहिंग्या’ शब्द का इस्तेमाल किया। यह शब्द म्यांमार में कई लोगों को अस्वीकार्य है। म्यांमार में उन्हें अलग जातीय समूह की बजाय अवैध ‘बंगाली’ प्रवासी कहा जाता है।
अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान सार्वजनिक भाषण में फ्रांसिस ने नाम से समूह का उल्लेख नहीं किया और न ही राखाइन प्रांत में संकट का सीधे तौर पर उल्लेख किया। राखाइन प्रांत से अगस्त से छह लाख 20 हजार से अधिक रोहिंग्याओं को भागना पड़ा है। पोप के इस सावधानी बरतने की म्यांमार के छोटे कैथोलिक अल्पसंख्यक समुदाय के साथ-साथ कट्टरपंथी बौद्धों ने तारीफ की थी। म्यांमार के कट्टरपंथी बौद्ध इन दिनों रोहिंग्याओं के साथ सलूक को लेकर वैश्विक नाराजगी के बाद रक्षात्मक हैं। रोहिंग्याओं द्वारा अगस्त के उत्तरार्द्ध में पुलिस चौकी पर जानलेवा हमला करने के बाद म्यांमार की सेना ने राखाइन प्रांत में उनके खिलाफ कार्रवाई की थी। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने इसे जातिय सफाये की संज्ञा दी थी।
वेटिंकन लौटने के बाद पोप ने कहा कि उन्होंने म्यांमार में निजी बैठक में रोहिंग्याओं के मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा था कि शरणार्थियों के समूह से मिलने के बाद वह कैसे रोए। उनके इस बयान को लेकर म्यांमार सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। आंग सो लिन नाम के एक व्यक्ति ने फेसबुक पर लिखा, ‘वह गिरगिट की तरह हैं जो मौसम की तरह रंग बदलते हैं।’ सो सो नाम के एक अन्य व्यक्ति ने लिखा, ‘उन्हें अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए सेल्समैन या ब्रोकर होना चाहिए था, हालांकि वह एक धार्मिक नेता हैं।’