यांगून: म्यांमार में ‘सीक्रेट्स ऐक्ट’ के उल्लंघन का दोषी पाए जाने पर रॉयटर्स के दो पत्रकारों को 7 साल कैद की सजा सुनाई गई है। इन दोनों रिपोर्टरों को रोहिंग्या संकट की रिपोर्टिग के दौरान 'स्टेट सीक्रेट ऐक्ट' का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया और सोमवार को उन्हें सजा सुना दी गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेना द्वारा रखाइन राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की जांच करते हुए म्यांमार के आधिकारिक 'सीक्रेट्स एक्ट' का उल्लंघन करने के आरोप में इन दोनों पत्रकारों पर 2017 से मुकदमा चल रहा था।
जमानत के बगैर हिरासत में रखे गए थे पत्रकार
जिन रिपोर्टरों को सजा सुनाई गई है उनके नाम वा लोन और कायो सो ऊ हैं। उन्हें 12 दिसंबर की रात को पुलिस अधिकारियों से मुलाकात के बाद गिरफ्तार किया गया था। प्रतिवादियों के मुताबिक, इन दोनों ने उन्हें गोपनीय दस्तावेज दिए थे। तब से दोनों को जमानत के बिना हिरासत में रखा गया और 30 बार अदालत के समक्ष पेश किया गया, जिसने 9 जनवरी को प्रारंभिक जांच शुरू की और औपचारिक रूप से 9 जुलाई को आरोप निर्धारित किया। इस मामले को म्यांमार में प्रेस की स्वतंत्रता की परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है।
पत्रकारों ने खुद को बताया निर्दोष
पत्रकारों ने खुद को निर्दोष बताया है और कहा है कि वे पुलिस द्वारा फंसाए गए हैं। 32 वर्षीय लोन ने फैसले के बाद कहा, ‘मुझे कोई डर नहीं है। मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है। मैं न्याय, लोकतंत्र और आजादी में विश्वास करता हूं।’ दोनों पत्रकारों के परिवारों में बच्चे हैं और दोनों दिसंबर 2017 में गिरफ्तारी के बाद से जेल में हैं। रॉयटर्स के मुख्य संपादक स्टीफन एडलर ने कहा, ‘आज म्यांमार, रॉयटर्स पत्रकारों वा लोन तथा कायो सो ऊ और कहीं भी प्रेस स्वंतत्रता के लिए एक दुखद दिन है।’
जज ने फैसले में कही ये बात
न्यायाधीश ये लविन ने यांगून में अदालत में कहा कि दोनों का इरादा राज्य के हितों को नुकसान पहुंचाने का था और इसलिए वे स्टेट सीक्रेट्स एक्ट के तहत दोषी पाए गए हैं। लोन और सो उत्तरी रखाइन राज्य में इन दीन गांव में सेना द्वारा की गई 10 पुरुषों की हत्या मामले में सबूत एकत्र कर रहे थे। उनकी जांच के दौरान, उन्हें दो पुलिस अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों की पेशकश की गई लेकिन उन दस्तावेजों को लेने के फौरन बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
आलोचकों ने कहा, सू ची की छवि को पहुंची ठेस
आलोचकों का कहना है कि इन पत्रकारों को जेल में डाले जाने से नोबेल पुरस्कार से सम्मानित म्यांमार की नेता आंग सान सू ची की मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में छवि को ठेस पहुंची है। आलोचकों ने कहा है कि सू ची इन पत्रकारों के पक्ष में नहीं आई और रोहिंग्या अल्पसंख्यक के खिलाफ की गई कार्रवाई पर बोलने में नाकाम रही है। सू ची को एक समय स्वतंत्र प्रेस और विदेश मीडिया की चहेती माना जाता था। म्यामां की पूर्व जुंटा सरकार के तहत कई वर्षों तक नजरबंद रहने के दौरान वे विदेशी पत्रकार ही थे जिन्होंने उनके शांति के संदेश को दुनिया तक पहुंचाया था।
प्रेस से सू ची के नहीं रहे अच्छे संबंध
इस मामले की पूरी सुनवाई के दौरान सू ची से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आह्वान किया गया था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यहां तक कि उन्होंने इस मामले की निंदा भी नहीं की। एक अमेरिकी राजनयिक बिल रिचर्डसन ने आरोप लगाया कि जब एक व्यक्ति के रूप में इन दो पत्रकारों ने अपनी पीड़ा को उठाने का प्रयास किया तो उन्होंने (सू ची) दो पत्रकारों की निंदा की। 3 वर्ष पहले सत्ता में आने के बाद से सू ची के प्रेस के साथ संबंध अच्छे नहीं रहे है। वर्ष 2017 में लगभग 20 पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया जिनमें से कई विवादास्पद ऑनलाइन मानहानि कानून के तहत है।