यांगून: म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजे जाने का दूसरा प्रयास विफल होने का ठीकरा शुक्रवार को बांग्लादेश पर ही फोड़ दिया। एक दिन पहले एक भी शरणार्थी संघर्ष प्रभावित रखाइन प्रांत में लौटने के लिए नहीं आया और उन्हें लेने गई बसें खाली ही लौट गईं। म्यांमार की सेना ने पश्चिम राखाइन प्रांत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर कड़ी कार्रवाई की थी जिससे 7 लाख 40 हजार से अधिक रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी देश बांग्लादेश भागने के लिए विवश हो गए। यह क्षेत्र धार्मिक और जातीय तनाव से ग्रस्त है।
रोहिंग्याओं को सता रहा है यह डर
आपको बता दें कि रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश के मलिन शिविरों या गांवों में रहने के लिए बाध्य हैं और उन्हें आवाजाही की आजादी नहीं है। दोनों देशों के बीच 2017 में समझौते पर हस्ताक्षर होने के बावजूद रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजे जाने का पहला प्रयास विफल रहा और कोई भी रोहिंग्या सुरक्षा एवं नागरिकता की गारंटी हासिल किए बगैर लौटने के लिए राजी नहीं है। रोहिंग्याओं को डर है कि यदि वे बगैर ठोस आश्वासन के म्यांमार जाते हैं तो एक बार फिर से उनके ऊपर कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
वापसी के प्रयास हुए विफल
वापसी के लिए गुरुवार को फिर से प्रयास होने थे और दोनों सरकारों ने करीब 3500 रोहिंग्या मुसलमानों की वापसी का संकल्प जताया था लेकिन यह फिर विफल रहा जब उन्हें सीमा पार ले जाने के लिए तैयार बसों में सवार होने कोई नहीं आया। म्यांमार के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को आरोप-प्रत्यारोप जारी रखा। सरकारी न्यू लाइट ऑफ म्यांमार ने कहा, ‘विस्थापित लोगों की सुचारू वापसी के लिए द्विपक्षीय समझौते का पालन करना जरूरी है।’