यंगून: म्यांमार ने रोहिंग्या अल्पसंख्यक मुसलमानों की घर वापसी में विलंब के लिए बांग्लादेश को आज जिम्मेदार बताया। म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसक घटनाओं के कारण अगस्त से वहां से भाग कर बांग्लादेश जा रहे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बेहद खराब हालात में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। मुख्य रूप से बौद्ध बहुल म्यांमार से सेना की कठोर कार्रवाई के कारण पिछले दो महीने में करीब 6,00,000 रोहिंग्या मुसलमान भाग कर बांग्लादेश पहुंचे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के भीषण दबाव और जातीय सफाया के संयुक्त राष्ट्र के आरोपों के कुछ ही सप्ताह बाद म्यामां ने उन रोहिंग्या मुसलमानों की देश वापसी का वादा किया है जो ‘‘सत्यापन’’ के मानदंडों पर खरे उतरेंगे। (फ्रेजाइल स्टेट्स इंडेक्स की चेतावनी, नहीं सुधरा पाकिस्तान, तो होगा बर्बाद)
बहरहाल, इन सत्यापन मानदंडों की कोई तय रूपरेखा अभी तक नहीं है। इस कारण लोगों में डर है कि बहुत कम संख्या में रोहिंग्या वापसी कर सकेंगे। म्यांमार सरकार के प्रवक्ता जॉव हत्ये ने अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों की घर वापसी में हो रही देरी के लिए बांग्लादेश को जिम्मेदार बताया। उन्होंने एएफपी को बताया, ‘‘म्यांमार सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वह किसी भी वक्त उन्हें (शरणार्थियों) वापस लेने को तैयार है, लेकिन बांग्लादेश की सरकार अब भी दोनों देशों के बीच समझौते पर विचार कर रही है।’’
उन्होंने कहा कि 25 अगस्त के बाद से भाग कर गये रोहिंग्या मुसलमानों की सूची बांग्लादेश ने अभी तक नहीं सौंपी है। हत्ये का कहना है, ‘‘हमने बांग्लादेश से पहले ही यह देने को कहा है। उसके बाद ही हम सत्यापित करेंगे कि कितने लोगों ने पलायन किया है।’’ उन्होंने रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के नाम पर बांग्लादेश को मिली 40 करोड़ डॉलर की सहायता राशि के तार उनके वापसी में हो रही देरी से जोड़ने संबंधी स्थानीय मीडिया की खबरों पर कुछ नहीं कहा।