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मलेशिया में सरकार गिरी, प्रधानमंत्री मुहिउद्दीन यासीन ने इस्तीफा दिया

पहले से वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से जूझ रहे देश में अब राजनीतिक संकट भी खड़ा हो गया है। नेताओं के बीच शीर्ष पद के लिए होड़ शुरू हो गई है।

Reported by: Agency
Published on: August 16, 2021 17:37 IST
Malaysian PM resigns after failing to get majority support- India TV Hindi
Image Source : AP मलेशिया के प्रधानमंत्री मुहिउद्दीन यासीन ने सोमवार को देश के नरेश को अपना इस्तीफा सौंप दिया।

कुआलालंपुर: मलेशिया के प्रधानमंत्री मुहिउद्दीन यासीन ने सोमवार को देश के नरेश को अपना इस्तीफा सौंप दिया। वह देश की सत्ता में सबसे कम समय तक आसीन रहे नेता बन गए हैं। वह मार्च 2020 में प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने अपनी खामियों के लिए माफी मांगी तथा सत्ता के भूखे लोगों को आड़े हाथों लिया। मलेशिया नरेश से मुलाकात के बाद टेलीविजन पर प्रसारित अपने संदेश में यासीन ने कहा, ‘‘मैंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, पूरे मंत्रिमंडल का इस्तीफा हो गया है क्योंकि निचले सदन में मेरे पास बहुमत नहीं था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बतौर प्रधानमंत्री मेरी जो भी गलतियां और कमजोरियां रहीं, मैं उनके लिए माफी मांगना चाहता हूं। संकट के इस समय मैंने और मेरे मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने जिंदगियां बचाने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए। हालांकि गलतियां इंसान से ही होती हैं इसलिए मैं माफी मांगता हूं।’’ 

यासीन ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि जब तक कि देश का कोरोना वायरस वैक्सीनेशन कार्यक्रम पूरा नहीं हो जाता, अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं आ जाता तब तक वह सत्ता में रहेंगे लेकिन सत्ता के भूखे लोगों ने ऐसा होने नहीं दिया। इससे पहले उन्होंने यह स्वीकार किया था कि शासन करने के लिए आवश्यक बहुमत का समर्थन उन्हें हासिल नहीं है। विज्ञान मंत्री खैरी जमालुद्दीन ने इंस्टाग्राम पर लिखा, ‘‘मंत्रिमंडल ने नरेश को इस्तीफा सौंप दिया है’’। इससे पहले यासीन सोमवार को मलेशिया नरेश से मिलने राजमहल पहुंचे थे। इसके तुरंत बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उप खेल मंत्री वान अहमद फयहसल वान अहमद कमाल ने फेसबुक पर पोस्ट लिखी जिसमें मुहिउद्दीन के नेतृत्व और सेवा के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया।

पहले से वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से जूझ रहे देश में अब राजनीतिक संकट भी खड़ा हो गया है। नेताओं के बीच शीर्ष पद के लिए होड़ शुरू हो गई है और उप प्रधानमंत्री इस्माईल साबरी समर्थन जुटा रहे हैं। राजमहल की ओर से कहा गया कि नरेश सुल्तान अब्दुल्ला सुल्तान अहमद खान ने यासीन का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। सुल्तान अब्दुल्ला ने कहा कि फिर से चुनाव करवाने का विकल्प नहीं है क्योंकि देश के कई हिस्से कोविड-19 से प्रभावित हैं और स्वास्थ्य सुविधाएं अपर्याप्त हैं। उन्होंने शांति बनाए रखने की अपील की और उम्मीद जताई कि राजनीतिक संकट जल्द दूर हो जाएगा। 

यासीन ने ऐसे समय इस्तीफा दिया है जब महामारी से ठीक से नहीं निबट पाने को लेकर जनता में रोष बढ़ता जा रहा है। दुनिया में सबसे अधिक संक्रमण दर वाले देशों में से एक मलेशिया है जहां इस महीने संक्रमण के दैनिक नए मामले 20,000 के पार चले गए हैं। हालांकि देश में सात महीने से आपात स्थिति चल रही है और संक्रमण से निबटने के लिए जून से यहां लॉकडाउन लगा हुआ है। स्थानीय मीडिया की खबरों के अनुसार राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख, निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष और अटॉर्नी जनरल को महल में बुलाया गया था। इनके बाद यासीन वहां पहुंचे थे। यासीन की सरकार गठबंधन के सबसे बड़े दल के 12 से अधिक सांसदों के समर्थन वापस लेने के बाद गिर गई। 

यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गेनाइजेशन के दो मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया। मलेशिया के संविधान के अनुसार बहुमत खोने वाले प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना होता है और नरेश नए नेता को नियुक्त कर सकते हैं। यासीन ने अनेक बार कहा था कि उनके पास बहुमत का समर्थन है और वह संसद में अगले महीने इसे साबित करेंगे। शुक्रवार को उन्होंने विपक्ष से समर्थन मांगा और वादा किया गया अगले वर्ष जुलाई में आम चुनाव करवाए जाएंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री का कार्यकाल सीमित करने जैसे और भी कई प्रस्ताव दिए जिन्हें सभी दलों ने ठुकरा दिया। 

उन्होंने कहा, ‘‘मैं आसान रास्ता अपना सकता था, अपने सिद्धांतों को त्याग कर प्रधानमंत्री बने रह सकता था लेकिन मैंने यह नहीं चुना।’’ नरेश को नए नेता को चुनना होगा और यह काम आसान नहीं है क्योंकि अभी कोई गठबंधन बहुमत का दावा नहीं कर सकता है। हालांकि सबसे बड़े विपक्षी गठबंधन ने अपने नेता अनवर इब्राहिम को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया है लेकिन तीन दलों के इस गठबंधन के पास महज 90 सांसद है जबकि सरकार बनाने के लिए 111 सांसदों की जरूरत है। माना जा रहा था कि यासीन को 100 सांसदों का समर्थन हासिल है। 

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