यरुशलम: अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इजराइल-हमास के बीच संघर्ष के बाद बुरी तरह से तबाह हुए गाजा की मदद के लिए मंगलवार को ‘अंतरराष्ट्रीय सहयोग’ का आह्वान किया। ब्लिंकन पश्चिम एशिया के अपने दौरे के शुरुआती चरण के तहत इजराइल पहुंच गये हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री की इस यात्रा का उद्देश्य गाजा संघर्ष विराम को प्रोत्साहित करना है। ब्लिंकन ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात के बाद कहा कि अमेरिका तटीय क्षेत्र में पैदा हुए ‘गंभीर मानवीय संकट’ के समाधान के लिए काम करेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी भरोसा दिया कि अमेरिका गाजा के हमास शासकों को इस पुननिर्माण सहायता से कोई फायदा नहीं उठाने देगा।
अमेरिकी विदेश मंत्री मंगलवार की सुबह इजराइल में बेन गुरियन अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा पहुंचे। वह क्षेत्र का दौरा करने वाले राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन के सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं। हवाईअड्डा पर इजराइल के विदेश मंत्री गाबी अशकेनाजी एवं अन्य अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि ब्लिंकन को उन्हीं गतिरोधों का फिर से सामना करना पड़ेगा जिनकी वजह से एक दशक से अधिक समय से शांति प्रक्रिया बाधित हुई है। इनमें इजराइली नेतृत्व, फलस्तीन का विभाजन और यरुशलम एवं उसके धार्मिक स्थलों के आस पास व्याप्त तनाव जैसे मुद्दे शामिल हैं।
11 दिन तक चले इजराइल-गाजा संघर्ष में 250 से अधिक लोग मारे गए जिनमें अधिकतर फिलीस्तीनी हैं। इस संघर्ष में तटीय क्षेत्र में चौतरफा तबाही हुई है, जिसकी हालत पहले से ही दयनीय है। हमास को इजराइल और पश्चिमी देश आतंकवादी संगठन मानते हैं। संघर्ष विराम शुक्रवार से प्रभाव में आया है। हालांकि, इससे अब तक मौजूदा मुद्दों का कोई समाधान नहीं हो पाया है। इजराइल में प्रधानमंत्री नेतन्याहू 2 साल में 4 बार अनिर्णायक चुनाव के बाद अपने राजनीतिक जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
वहीं, इजराइल में कुछ लोगों ने नेतन्याहू के इस कदम के लिए उनकी आलोचना की है और कहा है कि उन्होंने फिलीस्तीन के रॉकेटों को रोके बिना या गाजा के शासकों हमास को जवाब दिए बिना ही बड़े अविवेकपूर्ण तरीके से संघर्ष को खत्म कर दिया। युद्ध की शुरुआत उस वक्त हुई जब कुछ सप्ताह पहले यरुशलम में इजराइली पुलिस और फिलीस्तीन के प्रदर्शनकारियों के बीच अल-अक्सा मस्जिद परिसर के आस-पास झड़प हुई थी। हालांकि, नेतन्याहू के अल-अक्सा या शरणार्थियों के निकाले जाने पर सार्वजनिक रूप से कोई रियायत देने की संभावना नहीं है क्योंकि इससे ऐसा प्रतीत होगा कि वे हमास की मांग को मानने के लिए तैयार हैं। (भाषा)