नई दिल्ली। एशियाई और यूरोपीय देशों के बीच दो देश अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच की लड़ाई दुनियाभर की सुर्खियों में छायी हुई है। दुनियाभर के अधिकतर देश अर्मेनिया और अजरबैजान से शांति की अपील कर रहे हैं लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जो इस लड़ाई में या तो अजरबैजान या अर्मेनिया का समर्थन कर रहे हैं। बीच में कुछ इस तरह की मीडिया रिपोर्ट्स भी आई थीं कि पाकिस्तान ने अजरबैजान के समर्थन में अपने सैनिक भेजे हैं। लेकिन इन रिपोर्ट्स की कोई आधाकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
आखिर क्यों लड़ रहे हैं अर्मेनिया और अजरबैजान?
अर्मेनिया और अजरबैजान की सीमाओं के बीच लगभग 4400 वर्ग किलोमीटर का एक क्षेत्र है जिसे नोगर्नो काराबाख कहा जाता है। नोगोर्नो काराबाख के क्षेत्र दोनो देश अपना हक जमाते हैं और इसी पर कब्जे के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। अर्मेनिया एक इसाई बहुल देश है और नोगोर्नो काराबाख की अधिकतर आबादी भी इसाई बहुल ही है। जबकि अजरबैजान मुस्लिम बहुल देश है।
कुछ देश अर्मेनिया तो कुछ अजरबैजान को करते हैं समर्थन
दुनिया के अधिकतर देश अर्मेनिया और अजरबैजान से शांति की अपील कर रहे हैं लेकिन कुछ देश अर्मेनिया तो कुछ अजरबैजान का समर्थन भी कर रह हैं। अजरबैजान का समर्थन करने वाले देशों में सबसे अहम नाटो सदस्य तुर्की है। दरअसल तुर्की और अजरबैजान के रिश्ते बहुत मजबूत हैं। नार्गोनो-करबाख के मुद्दे पर तुर्की हमेशा से अजरबैजान का समर्थन करता आया है। नार्गोनो करबाख क्षेत्र को लेकर अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच की लड़ाई में तुर्की ने अजरबैजान को समर्थन किया है और कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अजरबैजान का समर्थन कर चुका है।
भारत पर क्या असर?
क्योंकि अर्मेनिया और अजरबैजान की लड़ाई में तुर्की खुलकर अजरबैजान का समर्थन कर रहा है। भारत के खिलाफ भी तुर्की कई बार कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन कर चुका है। ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम देशों में तुर्की अब खुलकर उन देशों का प्रतिनिधित्व करने की कोशिश में है जो सऊदी अरब से दूर होते जा रहे हैं। कश्मीर के मुद्दे पर एक तरह से सऊदी अरब ने भारत का साथ दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत अर्मेनिया या अजरबैजान की लड़ाई में किसी एक देश का समर्थन करता है तो इसका असर सीधा भारत की कश्मीर नीति पर पड़ सकता है। फिलहाल भारत इन दोनो देशों से शांति की अपील कर रहा है।