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कश्मीर पर चौधराहट दिखाने वाला चीन बुरी तरह फंसा, छाता क्रांति ने की बोलती बंद

कश्मीर और लद्दाख पर बुरी नजर रखने वाले चीन का चेहरा पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो रहा है। जिस हॉन्ग कॉन्ग को चीन अपना हिस्सा मानता है और उस पर कब्जा बनाए रखने के लिए बर्बरता की सारी हदें पार करता रहा है, उसी हॉन्ग कॉन्ग ने अब जहरीले ड्रैगन की दुम पर पांव रख दिया है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: August 20, 2019 14:00 IST
कश्मीर पर चौधराहट दिखाने वाला चीन बुरी तरह फंसा, छाता क्रांति ने की बोलती बंद- India TV Hindi
कश्मीर पर चौधराहट दिखाने वाला चीन बुरी तरह फंसा, छाता क्रांति ने की बोलती बंद

नई दिल्ली: कश्मीर पर चौधराहट दिखाने वाला चालबाज चीन इस बार बुरी तरह से फंस गया है। इस बार चीन की छाती पर कोई महाशक्ति नहीं, बल्कि हॉन्ग कॉन्ग सवार हो गया है। हॉन्ग कॉन्ग की छतरी में इस बार चीन ऐसा फंस चुका है कि ना तो उससे निगलते बन रहा है, ना ही उगलते। ड्रैगन की दुम पर हॉन्ग कॉन्ग ने पांव रख दिया है और हॉन्ग कॉन्ग की अनोखी छाता क्रांति से चीन की बोलती बंद हो गई है। हॉन्ग कॉन्ग का बच्चा-बच्चा चीन के खिलाफ है। ड्रैगन के मुल्क में हर पांचवां आदमी चीन के विरोध में खड़ा है।

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जो चीन कश्मीर पर अपनी टांग अड़ाता है, उसी चीन में बगावत की सुनामी उठ रही है। ड्रैगन के जबड़े में फंसे हॉन्ग कॉन्ग में आजादी की सबसे बड़ी जंग छिड़ी हुई है। हॉन्ग कॉन्ग चीन की कैद से आजादी चाहता है जिसके लिए वहां के लोग छाते लेकर और चेहरे पर मास्क लगाकर प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध जताने के लिए यहां के लोग लेजर बीम का इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां तक कि घरों में खुद ही स्मोक बम बनाकर पुलिस से लोहा ले रहे हैं।

कश्मीर और लद्दाख पर बुरी नजर रखने वाले चीन का चेहरा पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो रहा है। जिस हॉन्ग कॉन्ग को चीन अपना हिस्सा मानता है और उस पर कब्जा बनाए रखने के लिए बर्बरता की सारी हदें पार करता रहा है, उसी हॉन्ग कॉन्ग ने अब जहरीले ड्रैगन की दुम पर पांव रख दिया है। हॉन्ग कॉन्ग में उठी बगावत से चीन बिलबिला उठा है। दूसरों के लिए बारूद तैयार करने वाला चीन अपनी ही आग में झुलस रहा है।

एक तरफ चीन कश्मीर के मुद्दे को यूएनएससी तक ले जाने के लिए पाकिस्तान के साथ मिलकर हर चाल चल रहा है, वहीं दूसरी तरफ चीन खुद हॉन्ग कॉन्ग की आवाज को कुचल रहा है। अब तक प्रदर्शनकारियों से वहां की पुलिस लड़ रही थी लेकिन अब चीन ने हॉन्ग कॉन्ग की सीमा के पास अपनी फौज तैनात कर दी है। यहां तक कि चीन की सरकार हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी घोषित करती जा रही है। चालबाज चीन हिंदुस्तान के निजी फैसलों पर दखल दे रहा है जबकि खुद पूरा हॉन्ग कॉन्ग चीन के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है।

दो महीनों से ज्यादा वक्त हो गया है हॉन्ग कॉन्ग की आवाज चीन दबा नहीं सका। हॉन्ग कॉन्ग में हर जगह लोगों का सैलाब उमड़ रहा है। दरअसल, हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनकारियों को चीन में लाकर मुकदमा चलाने का एक विधेयक लाया गया था। बिल में प्रावधान था कि कोई व्यक्ति चीन में अपराध करता है तो उसे जांच के लिए प्रत्यर्पित किया जा सकेगा। इस बिल से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी हॉन्ग कॉन्ग पर अपना दबदबा कायम करना चाहती है। हॉन्ग कॉन्ग के लोग इस बिल का जोरदार विरोध कर रहे हैं।

हॉन्ग कॉन्ग के लाखों प्रदर्शनकारियों की बगावत को देखकर सरकार ने विधेयक तो वापस ले लिया, लेकिन प्रदर्शनकारियों के विरोध की आंधी नहीं रुक रही है। आजादी की इस जंग को कुचलने के लिए चीन हर हथकंडे अपना रहा है। इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए चीन ने वहां के आम नागरिकों पर हमले तक कराए जिसमें कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। इसके बावजूद प्रदर्शनकारी जिनपिंग सरकार की तानाशाही के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। यहां तक कि हांगकांग में लोगों ने एक आंख पर पट्टी बांधकर भी विरोध किया। 

चीन की सरकार के सामने अपना मुकम्मल विरोध जताने के लिए हॉन्ग कॉन्ग के लोग ना तो कोई हिंसक रास्ता अपना रहे हैं और ना ही फेसबुक और वाट्सअप जैसे सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। चीनी सरकार इनके आंदोलन को कुचलने के लिए अपनी फौज, पुलिस और टेक्नोलॉजी का सहारा ले रही है लेकिन प्रदर्शनकारी पुराने तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए वो सांकेतिक भाषा का सहारा ले रहे हैं।

अपनी आजादी और स्वायत्तता हासिल करने के लिए ये प्रदर्शनकारी चीनी सरकार के हर जुल्म और ज्यादती का डटकर मुकाबला कर रहे हैं। चीन हॉन्ग कॉन्ग में इस आंदोलन को रोकने में नाकाम साबित हुआ। ऐसे में वो अब अपनी सेना का सहारा ले रहा है। बख्तरबंद गाड़ियों के साथ चीनी सेना पुलिस के साथ मिलकर प्रदर्शनकारियों के आंदोलन को कुचलने के लिए हर तरह की सख्ती कर रही है। असल में ये प्रदर्शनकारी हॉन्ग कॉन्ग में पूर्ण लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं जो धीरे-धीरे आज़ादी की जंग में तब्दील हो गई है।

हॉन्ग कॉन्ग में ज्यादातर लोग चीनी नस्ल के हैं और यहां के लोग अपनी चीनी पहचान नहीं रखना चाहते हैं। हॉन्ग कॉन्ग में सिर्फ 11 फीसदी लोग खुद को चीनी कहते हैं जबकि 71 फीसदी लोग खुद को चीनी नागरिक नहीं मानना चाहते। यही वजह है कि हांगकांग में हर रोज आजादी के नारे बुलंद हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों ने चीन की नाक में दम कर रखा है। हॉन्ग कॉन्ग में इस विशाल आंदोलन के लिए अब चीन अमेरिका और विदेशी ताकतों को जिम्मेदार ठहरा रहा है। दरअसल, सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मुद्दे पर चीन मात खा चुका है ऐसे में अब वो हॉन्ग कॉन्ग के मसले पर अपनी असलियत छुपाने में जुट गया है।

हॉन्ग कॉन्ग पर चीन के दबदबे की कहानी अफीम युद्ध से जुड़ी है। अफीम बेचने और चीनियों को अफीमची बनाने के विरोध में चीन और इंग्लैंड के बीच 1839 से 1842 तक एक युद्ध हुआ जिसे प्रथम अफीम युद्ध कहते हैं। इस युद्ध में चीन की हार हुई और उसे इंग्लैंड को हॉन्ग कॉन्ग भेंट कर देना पड़ा। 1842 से लेकर 1997 तक हॉन्ग कॉन्ग इंग्लैंड का उपनिवेश रहा। 

हॉन्ग कॉन्ग लगभग 200 छोटे-बड़े द्वीपों का समूह है और इसका शाब्दिक अर्थ है सुगंधित बंदरगाह। कहते हैं कि हॉन्ग कॉन्ग में ही पूरब और पश्चिम का मिलन होता है। हॉन्ग कॉन्ग में गगनचुम्बी इमारतें दुनिया के किसी भी शहर से ज्यादा हैं। अत्याधुनिक ट्रैफिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार से रहित प्रशासन और सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली आर्थिक प्रगति हॉन्ग कॉन्ग की पहचान है। हॉन्ग कॉन्ग की इसी समृद्धि पर चालबाज चीन की नजर है और वो इसे किसी भी कीमत पर आजाद और स्वायत्त नहीं रहने देना चाहता है।

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