पेरिस: यूरोप में जहां चीन की पूर्व-पश्चिम आधारभूत संरचना कार्यक्रम को अवसर अथवा खतरे दोनों ही रूप में देखा जा रहा है, ऐसे में फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रौं की अगली हफ्ते होने वाली चीन यात्रा के दौरान इस बात पर भी नजर रहेगी कि वह इसका हिस्सा बनने के लिए कितने उत्सुक हैं। चीन ने 2013 में न्यू सिल्क रोड प्लान (रेशम मार्ग योजना) शुरू किया था और तब से यूरोप में इसे लेकर बेहद दिलचस्पी और बेचैनी दोनों ही दिखी हैं। यह योजना एशिया और यूरोप को सड़क, रेल और समुद्र के रास्ते जोड़ने से संबंधित है। फ्रांसीसी थिंक टैंक आइरिस में चीनी मामलों के विशेषज्ञ बार्थेलेमी कोर्मोंट ने कहा, ‘यह आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा होगा और एमैनुएल मैक्रों की यात्रा के दौरान सबसे अहम बिंदु भी।’
1,000 अरब डॉलर की परियोजना को प्राचीन रेशम मार्ग के आधुनिक पुनरुद्धार के तौर पर देखा जा रहा है जिसके जरिए पूर्व में दोनों पक्षों में कपड़ों, मसालों और दूसरे सामानों का व्यापार होता था। चीन में इसे ‘वन बेल्ट, वन रोड’ का नाम दिया गया है। 3 दिन के दौरे पर रविवार को चीन पहुंच रहे मैक्रों के साथ करीब उन 50 कंपनियों के प्रमुख शामिल होंगे जो चीन के साथ व्यापार करने को उत्सुक हैं। फ्रांस अब तक रेशम मार्ग योजना को लेकर एहतियात बरतता रहा है लेकिन कोर्मोंट ने कहा कि चीन के नेता मैक्रों से सकारात्मक एवं साफ रुख का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर मैक्रों चीनी पहल से निपटने के तरीके पर फैसला लेते हैं तो पूरा यूरोप उनका अनुसरण करेगा।’ लेकिन कोर्मोंट ने साथ ही कहा कि यूरोप चीन की महत्वाकांक्षाओं को अलग अलग तरह से देख रहा है।
फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस में चीन मामलों के जानकार एलिस एकमैन ने फ्रांस एवं जर्मनी को लेकर कहा, ‘वे लंबे समय में परियोजना के भूराजनीतिक परिणामों के बारे में खुद से पूछ रहे हैं।’ हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन ने नवंबर में बुडापेस्ट में एक शिखर सम्मेलन में कहा था, ‘कुछ लोग चीन एवं एशिया के उदय को चुनौती के रूप में देखते हैं। हमारे लिए यह एक बड़ा अवसर है।’ वहीं जर्मनी चीन के निवेश के पक्ष में है लेकिन उसकी कुछ आपत्तियां हैं। जर्मनी के विदेश मंत्री सिग्मार ने अगस्त में कहा था, ‘अगर हम चीन को लेकर रणनीति तैयार नहीं करेंगे तो वह यूरोप को विभाजित करने में सफल हो जाएगा।’