नई दिल्ली/ठाका/इस्लामाबाद/काबुल: क्या भारत के पड़ोसी देशों में हिंदुओं के दुश्मन बढ़ रहे हैं? यह सवाल इसीलिए जरूरी हो गया है क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान के बाद अब बांग्लादेश में भी हिंदुओं और मंदिरों पर हमलों की घटनाएं सामने आ रही हैं। इन तीनों ही देशों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। तीनों देशों में बस यह एक ही समानता नहीं है, एक और भी समानता, वो है इन तीनों देशों में ही हिंदुओं और मंदिरों पर हमलों की घटनाएं सामने आती रहती हैं। बीते कुछ समय के दौरान बांग्लादेश में हिंदुओं और मंदिरों पर हमलों की संख्या बढ़ी है।
बांग्लादेश: अब इस्कॉन मंदिर पर हमला, पहले पूजा पंडाल में तोड़फोड़
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की वारदातें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। अब इस्कॉन मंदिर पर हमला हुआ है। यहां के नोआखाली में कट्टरपंथियों ने मंदिर को निशाना बनाया है। 200 की भीड़ ने मंदिर पर हमला कियास, उत्पात मचाया, तोड़फोड़ की और एक श्रद्धालु की बेरहमी से हत्या कर दी। जिस हिंदू श्रद्धालु को कट्टरपंथियों ने मार डाला, उसका नाम पार्था दास था। पार्था 25 साल का था लेकिन उन्मादियों ने उसकी जान ले ली। उसका शव मंदिर के पास ही एक तालाब से मिला है।
इससे पहले हाल ही में दुर्गा पूजा के दौरान भी हिंदुओं पर हमले हुए। पूजा पंडालों को निशाना बनाया गया, देवी दुर्गा की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया गया। इस दौरान तो कट्टरपंथियों ने 3 हिंदुओं को मार डाला था। अब इस घटना के कुछ दिन बाद ही नोआखाली में इस्कॉन मंदिर पर हमला किया गया। इस्कॉन की तरफ से साफ-साफ कहा गया है कि हमला बांग्लादेश के बहुसंख्यकों ने किया यानी मुस्लिमों ने अल्पसंख्यक हिंदुओं के मंदिर को टारगेट किया है।'
अगस्त में भी बांग्लादेश के खुलना जिले में करीब 4 मंदिरों पर हमला किया गया। हाल ही में हुई ऐसी और भी कई घटनाएं हैं। इसके अलावा 2013 की वो हिंसा भी याद कीजिए, जिसमें सैकड़ों हिंदुओं को मारा गया, उनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया गया। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, 2013 की हिंदू विरोधी हिंसा में 20 से अधिक जिलों में 50 से अधिक हिंदू मंदिर और 1,500 हिंदू घर नष्ट हो गए थे। करीब 100 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे।
गौरतलब है कि बांग्लादेश सांख्यिकी ब्यूरो (बीबीएस) के अनुसार, 2015 के अंत तक यहां कुल जनसंख्या 15.89 करोड़ थी, जिसमें हिंदुओं की संख्या 1.70 करोड़ थी। भारत सरकार का कहना है कि यहां लगातार अपलसंख्याकों (हिंदुओं के अलावा सिख, जैन आदि कई समुदाय) की संख्या घटी है। भारत सरकार इसी के कारण CAA (Citizenship Amendment Act) भी लाई है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में घटी हिंदुओं की संख्या
भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिसंबर 2019 में संसद में CAA पेश करते हुए कहा था, "1947 में पाकिस्तान के अंदर अल्पसंख्याकों की आबादी 23 प्रतिशत थी और 2011 में वो घट कर 3.7 प्रतिशत हो गई। बांग्लादेश में 1947 में अपलसंख्याकों की आबादी 22 प्रतिशत थी और 2011 में वो कम हो कर 7.8 प्रतिशत हो गई। कहां गए ये लोग? या तो उनका धर्म परिवर्तन हुआ, या वो मार दिए गए, या भाग दिए गए, या भारत आ गए।"
पाकिस्तान से लगातार हिंदूओं और मंदिरों पर हमले, हिंदू लड़कियों के साथ जबरन निकाह करने, उन्हें अगवा करने और उनका धर्मांतरण कराए जाने की खबरें आती रहती हैं। यहां अल्पसंख्यकों की स्थिति बहुत दयनीय हैं, उनपर काफी जुल्म किए जाते हैं। पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में भी बहुत अल्पसंख्यकों को फंसाया जाता है और उनका शोषण किया जाता है। साल 2020 में पाकिस्तान में करीब 200 ईशनिंदा के केस दर्ज किए गए थे।
पाकिस्तान के अल्पसंख्यक आयोग ने अल्पसंख्यकों के धार्मिक संस्थानों की स्थिति पर अप्रैल में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की था, जिसमें बताया गया था कि 'ETPB (इवैक्यूई ट्रस्ट प्रोपर्टी बोर्ड) देश के 365 मंदिरों में से केवल 13 का प्रबंधन करता है। 65 मंदिरों को हिंदू समुदाय द्वारा प्रबंधित करने के लिए छोड़ दिया गया है, जो नियमित रूप से भीड़ के हमलों का सामना करते हैं जबकि बाकी भू-माफियाओं के लिए छोड़ दिए गए हैं। कई सदियों पुराने पवित्र प्राचीन मंदिर भी खराब स्थिति में हैं। ईटीपीबी पूरी तरह से विफल हो गया है।'
2014 में ऑल पाकिस्तान हिंदू राइट्स मूवमेंट (PHRM) ने एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित की। सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया गया कि 1990 के बाद से पाकिस्तान में मौजूद 95% मंदिर नष्ट हो गए या क्षतिग्रस्त हो गए। पूजा के 428 स्थानों में से केवल 20 ही चालू रहे जबकि 408 मंदिरों को या तो व्यावसायिक संपत्तियों में या आवासीय प्रतिष्ठानों में बदल दिया गया। 20 मंदिरों में से 11 सिंध में, 4 पंजाब में, 3 बलूचिस्तान में और 2 खैबर पख्तूनख्वा में हैं।"
अफगानिस्तान के टोलो न्यूज चैनल में 20 जून 2020 को अपने बेवसाइट पर "पिछले तीन दशकों में लगभग 99% हिंदुओं, सिखों ने अफगानिस्तान छोड़ा" हैडिंग के साथ एक लिखा। लेख में लिखा गया, "टोलोन्यूज की एक जांच से पता चलता है कि 1980 के दशक में सिख और हिंदू आबादी की संख्या 220,000 थी। जब 1990 के दशक में मुजाहिदीन सत्ता में थे तब यह संख्या तेजी से गिरकर 15,000 हो गई और तालिबान शासन के दौरान इसी स्तर पर बनी रही। अब अनुमान लगाया गया है कि देश में केवल 1,350 हिंदू और सिख ही बचे हैं।"
लेख में लिखा गया, "हमारे निष्कर्षों के अनुसार, उनके जाने के मुख्य कारणों में धार्मिक भेदभाव और विशेष रूप से तालिबान युग के दौरान अल्पसंख्यक समूह की सरकार की उपेक्षा शामिल है।"