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...तो इन कारणों की वजह से श्रीलंका में आमने सामने आ गए बौद्ध और मुसलमान

श्रीलंका की सरकार ने बौद्ध और मुस्लिम समुदाय के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए कैंडी शहर के कुछ इलाकों में 10 दिन इमरजेंसी लगाने का निर्णय लिया है।

Edited by: India TV News Desk
Published on: March 06, 2018 16:48 IST
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श्रीलंका की सरकार ने बौद्ध और मुस्लिम समुदाय के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए कैंडी शहर के कुछ इलाकों में 10 दिन इमरजेंसी लगाने का निर्णय लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक सिंहला लोगों ने मुसलमानों की दुकानों पर हमले किए और उन्हें आग के हवाले कर दिया। इस समय भारतीय क्रिकेट टीम श्रीलंका के साथ क्रिकेट सीरीज खेलने के लिए कोलंबो में मौजूद है। ऐसे में आज होने वाले टी-20 मैच पर संकट के बादल छा गए थे हालांकि बाद में श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने बीसीसीआई को भरोसा दिया है कि मैच के दौरान किसी तरह की कोई समस्या नहीं आएगी और टीम इंडिया की सुरक्षा से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा। (दो समुदायों के बीच बढ़ते तनाव के बाद श्रीलंका सरकार ने लगाई10 दिन की इमरजेंसी )

इमरजेंसी लगाने की घोषणा होने के बाद मीडिया से बात करते हुए मंत्री एस.बी. डिस्सानयेक ने कहा कि ऐसे आरोप लगाए जा रहे थे कि प्रभावित इलाकों में कानून अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा है ऐसे में राष्ट्रपति सिरिसेना ने 10 दिनों के लिए इमरजेंसी लगाने का निर्णय लिया है। प्रभावित इलाकों में सेना और पुलिस के भेजा गया है साथ ही सुरक्षा लिए सेना और पुलिस को भेजा जा रहा है। इससे पहेल म्यामांर में भी इसी तरह कि मुस्लिम और बौद्धों के बीच हिंसा ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। आइए जानते हैं कि बौद्ध धर्म और मुस्लिमों के बीच चल रही इस लड़ाई की क्या वजह है।

वैसे तो कहा जाता है कि बौद्ध धर्म का मुख्य सिद्धांत अहिंसा होता है। लेकिन ऐसी क्या वजह है कि श्रीलंका में बौद्ध लोग हिंसा पर उतर आए हैं? कई साल पहले श्रीलंका में पशुओं को हलाल करने का मुद्दा चरम पर था। बौद्धों के संगठन बोदु बाला सेना के सदस्य बौद्ध भिक्षुओं के नेतृत्व में रैलियां निकाली गईं, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सीधी कार्रवाई का आह्वान किया गया और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बहिष्कार की अपील की गई। श्रीलंका में 1983 में फैला जातीय तनाव गृह युद्ध में बदल गया। तमिल विरोधी हिंसा के बाद, अलगाववादी तमिलों ने देश के पूर्व और उत्तर में सिंहली बहुल सरकार से अलग होने की मांग की।

इस दौरान श्रीलंकाई मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा की कमान तमिल विद्रोहियों ने संभाल ली थी। लेकिन 2009 में इस हिंसा के ख़त्म होने के बाद लगता है कि बहुसंख्यक सांप्रदायिकता को मुसलमान अल्पसंख्यकों के रूप में एक नया लक्ष्य मिल गया है। बर्मा में बौद्ध भिक्षुओं ने सैन्य शासन को चुनौती देने के लिए अपनी नैतिक सत्ता का इस्तेमाल किया और 2007 में लोकतंत्र की मांग की। उस समय शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में कई बौद्ध भिक्षुओं की जान भी गई।

हाल ही में इन कारणों ने बौद्ध औप मुस्लिमों के विवाद को बढ़ाया

1. कुछ कट्टरपंथी बौद्ध समूहों ने मुसलमानों पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने और बौद्ध मठों को नुक़सान पहुंचाने का आरोप लगाया।

2. साल 2014 में कट्टरपंथी बौद्ध गुटों ने तीन मुसलमानों की हत्या कर दी थी जिसके बाद गॉल में दंगे भड़क गए।

3. साल 2013 में कोलंबो में बौद्ध गुरुओं के नेतृत्व में एक भीड़ ने कपड़े के एक स्टोर पर हमला कर दिया था।

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