बीते रविवार एक कार्यक्रम के दौरान तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने चीन क् सामने शर्त रखी। दलाई लामा ने शर्त रखते हुए कहा कि, यदि चीन तिब्बत की संस्कृति को विशिष्ट पहचान और सम्मान देने की बात मान ले तो यह चीन का हो सकता है। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय परंपराओं और प्राचीन इतिहास को पुर्नजीवित करने की भा बात कही। दलाई लामा ने कहा कि तिब्बत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर हमेशा स्वतंत्र रहा है। 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। (164 साल पुराने हिंदू मंदिर के पुनर्निर्माण में पहली बार पहुंचे सिंगापुर के प्रधानमंत्री )
उन्होंने कहा कि, जब चीन हमारी संस्कृति और तिब्बत के विशेष इतिहास को महत्व देगा, तब तिब्बत इसका हो सकेगा। दलाई लामा के भारत आने के 60वीं वर्षगांठ के मौके पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जहां दलाई लामा ने यह कहा। इसके साथ ही दलाई लामा ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्याचारों के प्रति अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने इसे बेहद ही भयावह बताया।
तिब्बती बौद्ध के उपदेशों पर प्रकाश डालते हुए दलाई लामा ने कहा, 'भारतीय सभ्यता की महानता इसका आध्यात्मिक भाईचारे और सद्भाव है। इससे महान दार्शनिक विचारकों और प्रचारकों के निर्माण में मदद मिली है जिन्होंने बौद्ध धर्म की नालंदा परंपरा को जन्म दिया।'