लाहौर: पाकिस्तान में रमजान के महीने में सामूहिक नमाज की अनुमति जिन शर्तो के साथ दी गई है, उनमें से कुछ की पहली रमजान को ही धज्जियां उड़ गईं। पाकिस्तान में कोरोना वायरस के दौरान लॉकडाउन के कारण मस्जिदों में सामूहिक नमाज पर प्रतिबंध था। लेकिन, उलेमा ने साफ कहा कि रमजान में वे यह प्रतिबंध नहीं मानेंगे। इस पर संघीय सरकार व देश के विख्यात धर्मगुरुओं की बैठक में समझौता हुआ कि बीस शर्तो के पालन के साथ मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ी जा सकेगी। इसमें जुमा की नमाज और रात के समय रमजान में पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज तरावीह शामिल होगी।
इस समझौते के खिलाफ समाज के विभिन्न हिस्सों से आवाज उठी। चिकित्सकों ने कहा कि इससे देश में कोरोना वायरस की महामारी इस हद तक फैलने का अंदेशा है कि उस पर काबू पाना मुश्किल होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि शर्तो का पालन लाखों मस्जिदों में कितना होगा, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है। इस आपत्ति के बाद, सिंध सरकार ने कहा कि उसके प्रांत की मस्जिदों में सामूहिक नमाज पर रोक रहेगी।
शर्तों के पालन को लेकर चिकित्सकों का अंदेशा पंजाब प्रांत और राजधानी इस्लामाबाद में पहली ही रमजान को सही साबित हुआ। पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, पट्टन डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में साफ हुआ कि पंजाब प्रांत में और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की 80 फीसदी मस्जिदों में सरकार और उलेमा के बीच हुए करार की कुछ शर्तों का शनिवार को पूरी तरह से उल्लंघन किया गया।
सर्वे में पाया गया कि इस शर्त का पालन नहीं हुआ कि तरावीह सड़क और फुटपाथ पर नहीं पढ़ी जाएगी। इसी तरह इस शर्त का भी पालन नहीं हुआ कि चारों दिशाओं में नमाजियों के बीच छह फीट की दूरी रखी जाएगी। इसी तरह लोग शर्त के मुताबिक घरों से वजू (नमाज से पहले हाथ-मुंह-पैर धुलना) कर नहीं आए बल्कि मस्जिद में आकर किया और न ही घरों से मास्क लगाकर आए। बहुत सी मस्जिदों में बड़ों के साथ बच्चे भी दिखे जबकि शर्त में साफ कहा गया था कि बच्चों को मस्जिद नहीं लाया जाएगा।