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तेज होती आलोचनाओं के बीच शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी का पुरजोर बचाव किया

‘जापानी आक्रामकता के खिलाफ प्रतिरोध युद्ध’ की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर गुरुवार को शी ने कहा कि चीनी लोग किसी व्यक्ति या ताकत द्वारा उन्हें CPC से अलग करने के प्रयास को मंजूर नहीं करेंगे।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : September 04, 2020 19:17 IST
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Image Source : AP FILE चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का पुरजोर बचाव करते हुए कहा कि उसके नेतृत्व में देश ‘व्यापक बदलावों’ का गवाह बना।

बीजिंग: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का पुरजोर बचाव करते हुए कहा कि उसके नेतृत्व में देश ‘व्यापक बदलावों’ का गवाह बना। उनका यह बयान तेज होती आलोचनाओं खासकर अमेरिका के द्वारा उसे अधिनायकवादी विचारधारा का अनुसरण करने वाली बताए जाने के बीच आया है। ‘जापानी आक्रामकता के खिलाफ प्रतिरोध युद्ध’ की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर गुरुवार को शी ने कहा कि चीनी लोग किसी व्यक्ति या ताकत द्वारा उन्हें CPC से अलग करने के प्रयास को मंजूर नहीं करेंगे।

आधिकारिक मीडिया ने बीजिंग में शी के हवाले से कहा, ‘CPC के इतिहास को विकृत करने या उसकी प्रकृति और उद्देश्यों को कलंकित करने, चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद की राह को विकृत करने या बदलने अथवा समाजवाद के निर्माण में चीनी लोगों की महान उपलब्धियों को खारिज करने या उन्हें तिरस्कृत करने के किसी भी प्रयास का चीनी लोगों द्वारा पुरजोर विरोध किया जाएगा।’

सरकारी मीडिया ने कहा कि जापानी आक्रामकता के प्रतिरोध में किए गए युद्ध में जीत के बाद से देश के ‘आमूलचूल बदलाव’ का गवाह बनने का जिक्र करते हुए शी ने कहा कि चीनी राष्ट्र का कायाकल्प एक ‘उज्ज्वल भविष्य’ की शुरुआत कर रहा है क्योंकि चीन गरीबी उन्मूलन के अपने लक्ष्यों को लगभग पूरा करने के साथ ही हर लिहाज से एक समृद्ध समाज का निर्माण कर रहा है।

CPC का नेतृत्व करने वाले सबसे शक्तिशाली नेता के तौर पर देखे जाने वाले शी जिनपिंग ने अमेरिका पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि चीन पर ‘धमकाने वाली रणनीति’ के तहत अपनी इच्छा थोपने और देश के विकास की राह को बदलने की कोशिश करने वाले किसी व्यक्ति या किसी ताकत को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

शी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब अपनी आर्थिक और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं के लिए चीन को अमेरिका के बढ़ते राजनीतिक व आर्थिक दबाव के साथ ही भारत के साथ लगने वाली अपनी सीमा पर तनाव का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही यूरोपीय और दक्षिणपूर्वी एशियाई देश भी उसकी नीतियों को लेकर उसपर दबाव बना रहे हैं।

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