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विमान के जरिए अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले रॉकेट विकसित करेगा चीन

बीजिंग: चीन ऐसे रॉकेट विकसित करने जा रहा है, जिन्हें विमान के जरिए अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जा सकेगा। ये रॉकेट अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित कर सकेंगे। चाइना अकेडमी ऑफ लॉन्च व्हीकल टेक्नोलॉजी में वाहक

India TV News Desk
Published on: March 07, 2017 11:35 IST
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बीजिंग: चीन ऐसे रॉकेट विकसित करने जा रहा है, जिन्हें विमान के जरिए अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जा सकेगा। ये रॉकेट अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित कर सकेंगे। चाइना अकेडमी ऑफ लॉन्च व्हीकल टेक्नोलॉजी में वाहक रॉकेट विकास के प्रमुख ली तोंग्यू ने कहा कि हवा में से प्रक्षेपित किए जाने वाले रॉकेट निष्कि्रय हो चुके उपग्रहों को तेजी से बदल सकते हैं। वे आपदा राहत के मामले में मदद के लिए पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रहों को तेजी से भेज सकते हैं। चीन के वाहक रॉकेटों की मुख्य विकासकर्ता एकेडमी में कार्यरत इंजीनियरों ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जो लगभग सौ किलोग्राम के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेज सकता है।

उनकी योजना एक बड़ा रॉकेट बनाने की है, जो 200 किलोग्राम का पेलोड कक्षा में ले जा सकता है। सरकारी अखबार चाइना डेली ने ली के हवाले से कहा, वाई-20 रणनीतिक यातायात विमान इन रॉकेटों को लेकर जाएगा। जेट इस रॉकेट को एक तय उंचाई पर जाकर छोड़ देगा। विमान से अलग होने पर रॉकेट प्रज्जवलित होगा। विशेषग्यों ने कहा कि बड़े उपग्रहों को कक्षा में पहुंचाने के लिए पारंपरिक रॉकेटों का ही इस्तेमाल किया जाएगा। अखबार ने उड्डयन विशेषग्यों के हवाले से कहा कि चीनी वायुसेना को वाई-20 की आपूर्ति जुलाई में शुरू हुई। यह घरेलू तौर पर विकसित चीन का पहला ऐसा यातायात विमान है जो इतना भारी वजन लेकर जा सकता है। यह अपने साथ अधिकतम 66 टन के पेलोड को लेकर जा सकता है।

विशेषज्ञों ने कहा कि जमीन से प्रक्षेपित किए जाने वाले द्रवित ईंधन वाले रॉकेटों की तुलना में ठोस ईंधन वाले रॉकेटों को विमान से तेजी से प्रक्षेपित किया जा सकता है। जमीन से प्रक्षेपित किए जाने वाले द्रवित ईंधन वाले रॉकेटों की तैयारी में कई दिन, सप्ताह या इससे भी ज्यादा समय लग सकता है क्योंकि यह ईंधन को पंप करने में बहुत समय लेता है। चाइनीज एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग के एक शिक्षाविद लोंग लेहाओ ने कहा कि वाई-20 द्वारा प्रक्षेपित किए जाने वाले ठोस-ईंधन के रॉकेट वाले प्रत्येक मिशन में तैयारी के लिए महज 12 घंटे का समय लगेगा। इसके बाद 200 किलोग्राम का उपग्रह पृथ्वी से उपर 700 किमी की सौर-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया जा सकता है।

स्पेस इंटरनेशनल मैगजीन के कार्यकारी प्रमुख संपादक पांग झिहाओ ने कहा कि ऐसे रॉकेटों के कुछ अन्य लाभ ये हैं कि इन्हें आसानी से तैनात किया जा सकता है और इनके लिए जमीनी स्तर पर अवसंरचना की जरूरत नहीं होती। उन्होंने कहा कि ये खराब मौसम के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील नहीं होते और जमीनी से प्रक्षेपित किए जाने वाले रॉकेटों की तुलना में इनकी प्रक्षेपण लागत कम आती है। विश्व का पहला वायु प्रक्षेपित अंतरिक्ष मिशन वर्ष 1990 में अमेरिका ने अंजाम दिया था।

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